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रांची/डेस्क: एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है जिसमें एक किसान बैल की तरह हल को खींचकर अपने खेत को जोत रहा है. ये वीडियो गुमला जिले के चैनपुर प्रखंड के एक गांव का है. बताया जा रहा है कि किसान के दोनों बैल मर गये जिसके करण गरीब किसान ने खुद से हल जोतने की ठानी. वो पिछले साल से ही अपने खेत को खुद हल से जोत रहा है. सुबह उठते ही वो अपने खेत में लग जाता है. किसान का ये वीडियो एक साथ कई सवालों को जन्म दे रहा है. एक तरफ जहां सरकारी उदासीनता नजर आ रही है वहीं ये वीडियो मानवीय संवेदनाओं की बढ़ती कमी भी दिखा रहा है.
सरकारी सुविधाओं से वंचित है किसान
किसान का नाम कल्याण टोप्पो है. पिछले ही साल इसके दोनों बैल मर गये थे. बैल मरने के बाद इसने अपनी तरफ से खूब हाथ-पैर मारे. कई सरकारी बाबुओं की खुशामद की, दफ्तरों के चक्कर लगाये लेकिन कोई असर नहीं हुआ. प्रवीण आदिवासी बहुल गांव का रहने वाला एक आदिवासी किसान है. आदिवासी होने के नाते इसे तत्काल जीरो प्रतिशत ब्याज पर ऋण दिया जा सकता है. सरकारी नियमों के अनुसार किसान क्रेडिट कार्ड दिया जा सकता है. अब तक प्रवीण का घर कच्चा है, इसे भी पक्का बनवाया जा सकता है. लेकिन सभी सरकारी सुविधाओं से ये किसान वंचित है. गरीब किसान के घर राशन की भी कमी दिखी. उसे स्थानीय स्तर पर राशन दिया जा सकता है लेकिन राशन जैसी चीज के लिए भी उसे योग्य नहीं समझा गया.
भाई ने भी नहीं की मदद
अब आइये बात करें मानवीय संवेदना की. गांवों में अमूमन ऐसा कम ही देखा गया है जब कोई ऐसी विकट स्थिति से जूझ रहा हो और गांव के स्तर पर उसे कोई मदद नहीं मिली हो. आमतौर पर छोटे किसानों की जमीन को दूसरे निकट के किसान जोत देते हैं. बदले में उनसे अलग काम लिया जाता है जैसे वे रोपा में मदद कर देते हैं या फिर बिचड़ा उखाड़ने में मदद करते हैं या फिर दूसरे किसान का हल जोत देते हैं. उसके भाई ने भी मदद नहीं की. गरीब होने के साथ प्रवीण पढ़ा-लिखा भी नहीं है. यदि किसी ने मदद की होती तो शायद उसे सरकारी सहायता भी मिल गई होती. लेकिन गांव में उसकी किसी ने मदद नहीं की. उसके भाई ने बैल की तरह हल जोतने पर दुख जताया लेकिन मदद को आगे नहीं आया.
वीडियो वायरल होने के बाद कई लोग मदद के लिए आए सामने
वीडियो वायरल होने के बाद कई लोग उसकी मदद की बात कर रहे हैं. कई राजनीतिक दल भी सामने आ रहे हैं. हर कोई सरकार से मदद देने का आग्रह कर रहा है. लेकिन अब तक कहीं से उसे मदद नहीं मिली. अब तक प्रवीण को कोई सरकारी सहायता नहीं मिली. आज एक किसान अपने ही हल से अपने खेत को बैल की तरह जोतने को बाध्य है. कब तक उसे सहायता मिलेगी कोई नहीं जानता.