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स्वास्थ्य


Artificial Kidney Transplant : अब इंसानों को किडनी देंगे जानवर

Artificial Kidney Transplant : अब इंसानों को किडनी देंगे जानवर

न्यूज़11 भारत


रांची/डेस्क: इंसानों की कई जरूरतों को जानवर पूरी करते आये हैं. कई बार जानवरों ने अपनी जान देकर भी इंसानों की जान बचाई है. एक बार फिर जानवर इंसानों की जान बचाएंगे. इसमें जानवरों की जान तो नहीं जाएगी लेकिन उनकी किडनी निकाली जाएगी. जीवन देने वाला ये जीव सुअर होगा. तो बेकार और कुछ लोगों के लिए घृणित माने जाने वाले सुअर अब इंसानों के काम आएंगे. इस तरह का एक प्रयोग अमेरिका में हो चुका है और ये किडनी प्रत्यारोपण पूरी तरह से सफल हुआ है. मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के चिकित्सक-वैज्ञानिकों ने ये प्रयोग किया है. पहले सुअर की किडनी को आनुवंशिक रूप से संपादित किया गया फिर उसे मानव में प्रत्यारोपित किया गया. इस खबर पर दुनियां की नजरें हैं और ये प्रयोग मानव को जीवनदान देने वाल प्रयोग माना जा रहा है. ये अंतिम चरण के किडनी फेल्योर पेशेंट के लिए आशा की नई किरण लेकर आई खबर है और इससे किडनी की कमी से जूझ रहे लोगों में आशा का संचार हुआ है.

 

कैसे हुआ प्रत्यारोपण-

मैसाचुसेट्स के वेमाउथ के रिचर्ड (रिक) स्लेमन को टाइप 2 डायबिटीज थी और वे उच्च रक्तचाप से भी गुजर रहे थे. वे सालों से क्रॉनिक किडनी डिजीज के रोगी थे. 62 वर्षीय इस मरीज को पहले मानव किडनी प्रत्यारोपित किया गया. लेकिन कुछ ही सालों में वो किडनी बेकार हो गई. एक बार उनके सामने जीने और मरने की नौबत आ गई. वे फिर डायलिसिस पर आ गये. वैज्ञानिकों ने इसके लिए सुअर की किडनी में सुधार करनी शुरू कर दी. सूअर के अंगों को आनुवंशिक रूप से संशोधित करना शुरू कर दिया. इंसानों के साथ किडनी की अनुकूलता के लिए कुछ इंसानी जीनों को इसमें शामिल किया गया. फिर सुअर के जीनोम में उपस्थित वायरसों को निष्क्रिय किया गया. इस प्रकार सुअर के 69 जीनोमिक संपादन किये गये. फिर ऐसी किडनी तैयार हुई जिसे इंसनों में प्रत्यारोपित किया जा सकता था. और इसका प्रत्यारोपण रिचर्ड में किया गया. 

 

किडनी प्रत्यारोपण, एक नया अनुभव-

रिचर्ड की किडनी प्रत्यारोपण का नेतृत्व रिएला, कावई और नाहेल एलियास कर रहे थे. ये सभी एचएमएस के सर्जरी के सहायक प्रोफेसर, ट्रांसप्लांट सर्जरी के अंतरिम प्रमुख और मास जनरल में किडनी ट्रांसप्लांटेशन के सर्जिकल निदेशक हैं. प्रत्यारोपण के बाद सभी डॉक्टरों ने अपने अनुभव साझा किये. डॉक्टरों ने कहा कि किडनी को जोड़ना जैसे ही खत्म हुआ, नया अंग तुरंत गुलाबी हो गया. यानी तुरत ही काम करना शुरू कर दिया. टीम में शामिल विनफ्रेड विलियम्स ने कहा कि उन्होंने मूत्रवाहिनी को पकड़ा और उसमें से मूत्र निकल रहा था. ये एक चमकरिक क्षण था जिसका स्वागत सभी साथियों ने ताली बजा कर किया. ऑपरेशन में करीब 4 घंटे का लंबा समय लगा. 

 

किडनी रोग और जटिलता-

किडनी फेल्योर को दो भागों में बांटा जाता है. पहला एक्यूट किडनी फेल्योर और दूसरा क्रोनिक किडनी डिजीज. एक्यूट किडनी फेल्योर में किडनी को फिर से रिवर्स किया जा सकता है. लेकिन क्रॉनिक किडनी डिजीज धीरे-धीरे बढ़ता है और फिर अंत में या तो डायलिससि पर रूकता है या फिर ट्रांसप्लांट करवाना पड़ता है. ट्रांसप्लांट एक जटिल प्रक्रिया है. इसके साथ किडनी का जुगाड़ भी बड़ी समस्या है. लाखों मरीज हर साल किडनी नहीं मिलने से काल के गाल में समा जाते हैं. इस संदर्भ में पूरी दुनियां में सख्त नियम हैं. किडनी मिलना बड़ी बात हो जाती है. अनुमान लगा लें कि अकेले अमेरिका में ही 36 मिलियन लोग क्रॉनिक किडनी रोग से प्रभावित हैं. जिनके लिए या तो नई किडनी की आवश्यकता होती है या फिर दर्दनाक, लंबे समय तक डायलिसिस सत्र की आवश्यकता होती है. 

 

मानव अंगो की तस्करी रूकेगी-

इस नई खोज से इंसानों को नई किडनी तो मिलेगी ही साथ ही मानव अंगों खासतौर पर किडनी के ब्लैक मार्केट पर भी असर पड़ेगा. ब्लैक मार्केटिंग पूरी तरह से बंद हो सकती है. वैज्ञानिक जितनी चाहें उतनी किडनी तैयार कर सकते हैं. पहली बार में इस भाारी खर्च आया लेकिन यदि बड़े स्तर पर इसे तैयार किया जाय ते खर्च बहुत कम आएगा.

 

उम्मीद की किरण-

फिलहाल किडनी प्रत्योरोपित की जा चुकी है. मरीज को घर जाने की अनुमति दे दी गई है. अब मरीज का बराबर अध्ययन किया जा रहा है. टीम को उम्मीद है कि किडनी लंबे समय तक काम करेगी. भारत और दुनियां के अन्य देशों में अब तक ऐसा प्रत्यारोपण नहीं हुए हैं. न तो ऐसी किडनी ही बनी है. ऐसे में हर मरीज अमेरिका में प्रत्यारोपित किडनी की प्रतीक्षा भारत और अन्य देशों में कर रहा है.
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