अजय लाल/न्यूज़11 भारत
रांची/डेस्क: यदि आपने अपने सपनों को पूरा करने के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक या फिर स्नात्तकोत्तर किया है समझिए आपने अपनी किस्मत को खराब कर रखा है. झारखंड की सरकार इन डिग्रीयों को मान्यता नहीं देती है. मतलब, यह डिग्री झारखंड में रद्दी के कागज जैसा है.
क्या है मामला, समझिए
दरअसल, झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग द्वारा विज्ञापन संख्या दो / 2023 और 3 / 2023 के तहत एक विज्ञापन निकाला था. इसके तहत राज्य में पीजीटी यानी स्नात्तकोत्तर प्रशिक्षित शिक्षक हिन्दी, संस्कृत, अर्थशास्त्र और इतिहास विषय के पदों पर शिक्षकों की नियुक्ति होनी थी. यहां तक सबकुछ ठीकठाक रहा. बड़ी संख्या में अभ्यर्थियो ने परीक्षा दी और कई लोगों ने परीक्षा पास भी की. विवाद तब शुरू हुआ जब सफल अभ्यर्थियों की मेधासूची तैयार की जाने लगी. मेधा सूची जबकर बनकर तैयार हुआ तो ऐसे अभ्यर्थियों के होश उड़ गये. ऐसे अभ्यर्थी जिन्होंने बनारश हिन्दू विश्वविद्यालय से संस्कृत में एमए यानी आचार्य की डिग्री ली थी उन्हें यह कहते हुए मेधासूची से बाहर कर दिया कि उनकी डिग्रीयों को झारखंड सरकार मान्यता नहीं दे रही है.
केस संख्या एक
झारखंड के गुमला का रहने वाला कन्हाई लाल पांडेय ने बनारस के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्याल से संस्कृत से आचार्य यानी एमए किया था. उन्होंने पीजीटी की परीक्षा पास की थी लेकिन मेधा सूची के दौरान उसके डिग्री को अवैध करार दे दिया गया. जबकि संपूर्णानंद विशविद्यालय यूजीसी से मान्यता प्राप्त विवि है. और वहां की डिग्रीयां पूरे देश में मान्य है.
केस संख्या दो
सौरव मिश्रा भी झारखंड के रहने वाले हैं और उन्होंने भी उच्च शिक्षा के लिए देश के प्रतिष्ठित संस्थान काशी हिन्दू विवि यानी बनारस हिन्दू विवि से संस्कृत में एमए किया था. डिग्री का नाम था - आचार्य एमम की डिग्री, उसने भी पीजीटी की परीक्षा पास की. मेधा सूची बनी तो उसका नाम भी सफल अभ्यर्थियों की सूची से गायब कर दिया गया.
पहले क्या हुआ था
इसके पूर्व पीजीटी 2012 और पीजीटी 2017 में संस्क़त विषय के शिक्षक के लिए आचार्य यानी एमए संसंकृत अभ्यर्थियों का चयन पीजीजी पद के लिए हुआ था. यह सब तब है जब वक्त वक्त पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और भारत सरकार का उच्च शिक्षा विभाग यह निर्देश जारी करता रहा है कि आचार्य की उपाधि एमए के समतुल्य है.
क्या था विज्ञापन में
विज्ञापन में कहा गया था कि किसी मान्यता प्राप्त विवि से राज्य के सरकारी विद्यालयों में + टू स्तर पर पढाये जाने वाले विषयों में से नियुक्ति में कम से कम 50 अंको सहित स्नात्तकोत्तर सहित बीएड की डिग्री अनिवार्य होगी.
क्या कहते हैं जिम्मेदार
जेएसएससी ने इस मुद्दे पर कहा है कि उसके पास स्कूली शिक्षा विभाग का जो दिशा निर्देश है उसके मुताबिक इन डिग्रीयों को झारखंड में मान्यता नहीं दी गयी है. इस संबंध में स्कूली शिक्षा विभाग के सचिव से बातचीत करने की कोशिश की गयी लेकिन उन्होंने अपनी व्यस्तता का हवाला देकर बात करने से मना कर दिया.
अब आगे क्या
ऐसे अभ्यर्थियों की संख्या झारखंड में 40 से 45 के आसपास है. फिलहाल, अभ्यर्थियों ने आंदोलन करने की बात कही है. यदि विभाग ने बात को साकारात्मक नहीं लिया तो निश्चित तौर पर यह मामला अदालत की चौखट पर जायेगा.