प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: न कोई आरोप, न कोई अनुशासनहीनता, तो फिर अकारण और बेमौसम विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग स्नातकोत्तर शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉक्टर के के गुप्ता विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग, उपाध्यक्ष डॉ सुकल्याण मोइत्रा विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान विभाग, कार्यकारिणी के पदेन सचिव डॉ विकास कुमार विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग, संघ के उपाध्यक्ष डॉ सुबोध सिंह शिवगीत एवं संघ के सक्रिय सदस्य डॉक्टर गंगानाथ झा के अकस्मात स्थानांतरण से विश्वविद्यालय परिसर में हतप्रभ की स्थिति है. शिक्षक संघ के प्रतिनिधिमंडल नवनियुक्त कुलपति से मिलकर पांच शिक्षकों के स्थानांतरण पर पुनर्विचार करने के लिए प्रयासरत है. शिक्षक संघ की ओर से कुलाधिपति से भी शिक्षकों के पक्ष को सुनने एवं स्थानांतरण पर पुनर्विचार करने का अनुरोध पत्र प्रेषित किया गया है. तीन विभागाध्यक्षों व दो वरीय शिक्षकों हित होगा, यह समझ से परे है. ऐसा संज्ञान में आया है कि विश्वविद्यालय स्तर से कुलाधिपति कार्यालय को प्रेषित प्रतिवेदन के आधार पर राजभवन सचिवालय से निर्गत पत्र के आलोक में स्थानांतरण किया गया है. इस स्थानांतरण से शिक्षक व कर्मियों में असमंजस व निराशा का भाव हैं. संबंधित विभागों के छात्र छात्राओं में भी घोर निराशा का भाव है. शिक्षकों को ऐसा महसूस हो रहा है कि यह स्थानांतरण एक प्रकार से अनुशासनात्मक स्थानांतरण है. प्रभावित शिक्षकों को स्थानांतरण के कारण व आधार का भी ज्ञान नहीं है. शिक्षकों का मानना है कि स्थानांतरण में विश्वविद्यालय के नियमों की भी अवहेलना परिलक्षित होती है.
तीन विभागाध्यक्षों को कार्यकाल पूर्ण होने के पूर्व ही स्थानांतरित कर दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. वरीय शिक्षकों का स्थानांतरण स्नातकोत्तर विभागों से महाविद्यालय में किया जाना किसी भी दृष्टिकोण से विश्वविद्यालय के हित में नहीं है. शिक्षकों का मानना है कि यह स्थानांतरण प्रायोजित तरीके से करवाया गया प्रतीत होता है. स्नातकोत्तर विभाग में ऐसे ही शिक्षकों की घोर कमी है. पांच शिक्षकों के स्थानांतरण से अध्यापन व शोध कार्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ना सुनिश्चित है. शिक्षकों का मानना है कि स्थानांतरण में विश्वविद्यालय परिनियमों की भी अवहेलना की गई प्रतीत होती है. कुछ वर्ष पूर्व विश्वविद्यालय शिक्षकों के स्थानांतरण के संदर्भ में कुलाधिपति कार्यालय से निर्गत पत्रों के दिशा निर्देशों का भी अनुपालन नहीं किया गया प्रतीत होता है. पांच शिक्षकों के स्थानांतरण से विश्वविद्यालय परिसर में उदासी का माहौल है. स्थानांतरित शिक्षकों के विभाग एवं विश्वविद्यालय में समर्पित व ईमानदार कार्यशैली के सभी कायल हैं. उनके स्थानांतरण से संबंधित विभागों के अध्यापन कार्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ना सुनिश्चित है. तीन-तीन विभाग अध्यक्षों एवं दो वरीय अध्यापकों का स्थानांतरण किसी भी दृष्टिकोण से विश्वविद्यालय के हित में नहीं है. स्थानांतरित शिक्षक विश्वविद्यालय के विभिन्न पदों पर अपना ईमानदारी पूर्ण दायित्वों का निर्वहन करते आए हैं. विश्वविद्यालय स्तर पर आयोजित विविध प्रकार के कार्यक्रमों में इन शिक्षकों की सक्रिय भूमिकाएं रही हैं. शिक्षकों का मानना है कि यह सभी पांच शिक्षक समय-समय पर विश्वविद्यालय से परिनियमों के आलोक में कार्य करने का अनुरोध करते रहते थे. विश्वविद्यालय में होने वाली विविध प्रकार की विसंगतियों के प्रति विश्वविद्यालय प्रशासन को सचेत करने का प्रयास करते थे. विश्वविद्यालय परिसर में हो रही चोरियों एवं सुरक्षा एजेंसी की भूमिका के संदर्भ में विश्वविद्यालय को संज्ञान लेने का अनुरोध किया करते थे. शिक्षकों के प्रमोशन एवं हित के लिए विश्वविद्यालय परिसर में अपनी आवाज उठाया करते थे. स्थानांतरण इन सब का प्रतिफल है. शिक्षकों का मानना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कुलपति को शिक्षक संघ के प्रतिनिधियों से दूर रखकर अपने तरीके से कार्यों को अंजाम दिलाने में यह स्थानांतरित शिक्षक अड़चन पैदा कर रहे थे. बताया जा रहा है कि शोध व अन्य शैक्षणिक गतिविधियां कम, एक अलग ही सिंडिकेट का अंदरूनी गेम चल रहा है. इस सिंडिकेट में चार पदाधिकारियों की अहम भूमिका बताई जा रही है. इनमें एक पदाधिकारी सेवानिवृत्त होने के बाद भी विश्वविद्यालय के छोटे-बड़े कार्यक्रमों में अपना चेहरा चमकाते रहते हैं. उनकी पैंट राजभवन तक बताई जाती है. इन पांचों शिक्षकों का तबादला कराने में उनकी अहम भूमिका बताई जा रही है. यहां तक चर्चा है कि महामहिम को भी अंधेरे में रखकर वहीं के एक व्यक्ति के माध्यम से यह सारा खेल खेला गया है. बहरहाल मामला जो भी हो, लेकिन इस खेल में शामिल सभी पदाधिकारियों के चेहरे से जल्द ही नकाब उतरने की बात कही जा रही है. इनमें एक ऐसे पदाधिकारी हैं, जो विश्वविद्यालय का महत्वपूर्ण पद संभाल रहे हैं और वह सूचना आयोग से दंडित भी हो चुके हैं. वहीं एक पदाधिकारी नियमों का घोर उल्लंघन कर तीन-तीन पद पर काबिज हैं. जानकारों का कहना है कि निष्पक्ष और ईमानदारी से शिक्षक संघ के उठाए 23 बिंदुओं पर जांच हो जाए, तो दूध का दूध और पानी का पानी.