प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: अकेला ही चला था जानिब-ए- मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारों बनता गया ये पक्तियां दूधमटिया वन से शुरू हुई पर्यावरण संरक्षण की मुहिम पर बिल्कुल ही सटीक बैठती हैं. हजारीबाग से 25 किमी की दूरी पर एनएच-522 के किनारे अवस्थित टाटीझरिया का दूधमटिया वन पर्यावरण संरक्षण को लेकर अन्य इलाके के लोगों के लिए मिसाल बन गया हैं. दूधमटिया में लगे हरे भरे लहलहाते पेड़ चन संरक्षण में लगे ग्रामीणों की पहल का उदाहरण हैं.
यहां ग्रामीण न केवल हर वर्ष वृक्षाबंधन की वर्षगांठ मनाते है वरन इसकी पहरेदारी भी करते हैं. जंगल बचाने का यह आंदोलन दूधमटिया से निकलकर जिला और राज्य की सरहदों को पार कर गया हैं. हजारीबाग जिले के टाटीझरिया स्थित दुधमटिया जंगाल को बचाने के लिए पेशे से शिक्षक पर्यावरणविद महादेव महतो के नेतृत्व में 7 अक्टूबर 1995 की जंगल बचाने की यह मुहिम शुरू की गई थी. इसके लिए उन्होंने वन देवी की पूजा-अर्चना कर लाल बेर बांधकर पेड़ों से नेपहाते खुद रिश्ता बनाया और फिर आमपास के ग्रामीणों को भी पेड़ और उसके वृक्षाबंधन कार्यक्रम से भावनात्मक रूप से जोड़ा. यह भी तब जम दूधमटिया में गिनती के पेड़ बचे थे.
अब यहां ऐसा सघन वन है कि उसकी घनी सांव के बीच धूप भी दबे पांव कोई सुराग ढूंढ कर आहिस्ता आहिस्ता पहुंच पाती हैं. दुधमटिया बन से हरभंगा, पेंटा, टाटीरिया व आसपास क्षेत्र के ग्रामीण दतुअन-पत्ता थी तोडना पाप मानते हैं. हो आतंक में बचने और जंगल बचाने के मकसद से शुरू हुए इस अभियान ने दूधमटिया की सूरत बदल दी हैं. दूधमटिया के प्रभाव से ही आसपास के करीब 50 किलोमीटर के दायरे में भी चनों का घनत्व बड़ा हैं. इसी के तर्ज पर वन विभाग अस सैकड़ों जंगलों में राज्यभर में रक्षाबंधन कर उन्हें बचाने का काम कर रही है और उसमें वन्य प्राणी सुरक्षा समिति के के सदस्य टाटीझरिया से पहुंचकर ग्रामीणों में उत्साह भर रहे हैं. वनों के संरक्षण में इस अनोखी पहल के लिए महादेष महतो को 6 मार्च 2017 को राष्ट्रपति भवन में सृष्टि सम्मान प्रदान किया गया. इसे नेशनल फाउंडेशन के आयोजित किया गया था.
13 नागंबर 2017 को रांची के प्रोजेक्ट भवन में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के हाथों महादेव महतो को झारखंड सम्मान मिल चुका हैं. गुजरात के अहमदाबाद समेत देश के अन्य स्थानों पर महादेव महतो को कई बार सम्मानित किया गया हैं.