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सिमडेगा/डेस्क: सिमडेगा में भादो कर एकादशी करम गड़ाए रे… सहित कई करम गीतों के साथ अखरा गुंजायमान रहा. पूरे विधि-विधान के साथ नृत्य-संगीत के साथ प्रकृति पर्व करम की पूजा-अर्चना हुई. हालांकि बारिश के कारण कुछ परेशानी हुई.
शनिवार को युवतियां दिनभर उपवास कर शाम में करम डाली की पूजा की. इसके बाद ढोल नगाड़े की थाप पर रातभर रिझ रंग करेंगी. शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र में करमा पूजा का खास उत्साह देखा जा रहा है. करमा पूजा करने वाली यूवतियां सोमवार हीं तैयारी में जुटी थी. बताया गया कि शहरी क्षेत्र के सरना पूजा स्थल और सरस्वती शिशु मंदिर में सामूहिक करमा पूजा का आयोजन किया गया है. जहां युवतियां विधि विधान से करम पूजा की. हालांकि लगातार हो रही बारिश के कारण पूजा करने में परेशानी भी हुई है. करम पर्व को शांति और खुशहाली का प्रतिक माना जाता है. साथ इसे भाई बहनों के प्यार का पर्व भी माना जाता है. शहर के सरना स्थल पर पूजा अर्चना के बाद देर रात अखरा में ढ़ोल-नगाड़ा के बीच लोग थिरकते रहे. पूरे शहर में करम पर्व की धूम रही. आदिवासी समाज में इसको लेकर उत्साह दिखा. सरना स्थल अखरा में एक दिन पूर्व मिट्टी के बर्तन में रखे गए जावा फूल को अखरा में लाया गया. इसके बाद पुरूष वर्ग करम डाली को नृत्य करते हुए अखरा तक लाए और पूरे विधि के साथ उसे अखरा के पूजा स्थल में गाड़ा गया. धर्म बहनें जो उपवास में रही घर में पकवान बनायीं. इसके बाद अखरा में दीप जलाया गया. इसके बाद सामुहिक विनती, प्रार्थना शुरू हुआ. पाहन एवं पहनाईन ने करम कहानी शुरू किया. जिसे सरना धर्म बहनों से सुना. पूजा संपन्न होने के बाद प्रसाद का वितरण किया गया.
करम पूजा के लिए अखरा में सरना स्थल और सरस्वती शिशु मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया गया. आकर्षक विद्युत सज्जा किया गया. साऊंड सिस्टम की भी व्यवस्था की गयी थी. आदिवासी महिलाएं लाल पाड़ साड़ी जबकि पुरूष धोती-कुर्ता एवं कंधे पर सरना गमछा ओढ़े नजर आए. पूरा महौल आदिवासी संस्कृति में सरोबर नजर आया. सिमडेगा जिले में सौ से अधिक अखरा में हुई करम पूजा.
झारखंड की कुछ जनजातियों का मानना है कि कर्मी नामक वृक्ष पर कर्मसेनी देवी रहती हैं. यदि उन्हें प्रसन्न कर लिया जाये, तो घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है. देवी को खुश करने के लिए ही लोग घर में करम वृक्ष की डाली गाड़कर उसकी पूजा करते हैं. रात भर लोग नाचते-गाते हैं. झारखंड से सटे छत्तीसगढ़ में अलग-अलग जिलों की अलग-अलग जनजातियों का मानना है कि करम पर जब विपत्ति आन पड़ी, तो उसने अपने ईष्ट देव को मनाने के लिए पूरी रात नृत्य किया. इसके बाद उसकी विपत्ति दूर हो गयी. इसलिए इस त्योहार में लोग रात भर नाचते हैं. उरांव जनजाति की मान्यता है कि करम देवता की पूजा करने से फसल अच्छी होती है. उन्हें प्रसन्न करने के लिए ही लोग रात भर नृत्य करते हैं. आदिवासियों के धार्मिक ग्रंथों और लोक कथाओं के अनुसार, करमा पूजा की शुरुआत पिलचू बूढ़ी ने अपनी बेटियों के लिए की थी. तब से बहनें अपने भाइयों की रक्षा और प्रकृति की पूजा के रूप में करम डाली की पूजा करती हैं.