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रांची/डेस्क: मां छिन्नमस्तिका की महिमा पर आधारित भोजपुरी फिल्म *"जय मां छिन्नमस्तिका रजरप्पा वाली"* का भव्य मुहूर्त चितरपुर के सोढ़ गांव में धूमधाम से हुआ. इस अवसर पर फिल्म की शूटिंग की शुरुआत विधिवत पूजा-अर्चना के बाद नारियल फोड़कर और क्लैपिंग के साथ की गई. इस खास मौके पर अभिनेता संजीव मिश्रा और अभिनेत्री जे. नीलम पर मुहूर्त शॉट फिल्माया गया.
फिल्म यूनिट के सदस्य पहले रजरप्पा धाम पहुंचे, जहां उन्होंने मां छिन्नमस्तिका का दर्शन किया और आशीर्वाद लिया. फिल्म के निर्माता शैलेंद्र कुमार सिंह के नेतृत्व में इस परियोजना को शुभम फिल्म प्रोडक्शन के बैनर तले बनाया जा रहा है.
कास्ट और क्रू
फिल्म में भोजपुरी सिनेमा के चर्चित कलाकारों का जमावड़ा है, जिनमें अभिनेत्री अंजना सिंह, अभिनेता राहुल सिंह राजपूत, रोहित सिंह 'मटरू', जे. नीलम, उमाकांत राय, सूर्या द्विवेदी, अर्पणा, श्वेता सिंह, प्रीति कौर, संजीव मिश्रा, मनीष सिंह सहित कई अन्य प्रमुख कलाकार शामिल हैं. फिल्म का निर्देशन कर रहे विष्णु शंकर 'बेलू' ने बताया कि यह फिल्म पूरी तरह से मां छिन्नमस्तिका की महिमा पर आधारित है, और इसकी कहानी पारिवारिक संबंधों के बीच बुनी गई एक मार्मिक कथा है. फिल्म में एक्शन सीन के अलावा वीएफएक्स का भी शानदार इस्तेमाल किया जाएगा, जो दर्शकों को स्क्रीन पर एक नई अनुभव प्रदान करेगा.
निर्माता और टीम
इस धार्मिक फिल्म की कथा और पटकथा संदीप स्वरांश द्वारा लिखी गई है, जबकि फिल्म के सिनेमेटोग्राफर विजय मंडल और संपादक गोविंद दूबे हैं. प्रोडक्शन मैनेजर संतोष प्रजापति और पीआरओ संजय पुजारी सहित पूरी टीम इस फिल्म को एक बेहतरीन रूप में पेश करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है.
निर्देशक ने किया शारदा सिन्हा के निधन पर शोक व्यक्त
फिल्म के निर्देशक विष्णु शंकर 'बेलू' ने बिहार की प्रसिद्ध लोकगायिका शारदा सिन्हा के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया. उन्होंने कहा, "शारदा सिन्हा का निधन पूरे हिंदुस्तान के लिए एक बड़ी क्षति है. उनकी गायकी में एक ऐसी शुद्धता थी जो कभी नहीं मिल पाएगी. उनका योगदान भारतीय संगीत और लोक गायन में हमेशा याद किया जाएगा."
धार्मिक फिल्मों के ट्रेंड पर अभिनेता का बयान
फिल्म के अभिनेता रोहित सिंह 'मटरू' ने धार्मिक फिल्मों के बारे में बात करते हुए कहा कि भोजपुरी सिनेमा में धार्मिक फिल्मों का एक लंबा इतिहास रहा है. हालांकि, आजकल निर्माता इन फिल्मों में रिस्क लेने से कतराते हैं, लेकिन उनका मानना है कि धार्मिक और सामाजिक फिल्में हमेशा दर्शकों का प्यार प्राप्त करती रहेंगी. युवाओं और परिवारों के बीच यह फिल्म एक मजबूत संदेश के साथ अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्य को जीवित रखने का प्रयास करेगी.