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झारखंड की राजनीति में अमिट छाप छोड़ने वाले नेता दिशोम गुरु शिबू सोरेन का आज है 81वां जन्मदिन

जानें इनके जीवन के अब तक की दास्तां
झारखंड की राजनीति में अमिट छाप छोड़ने वाले नेता दिशोम गुरु शिबू सोरेन का आज है 81वां जन्मदिन
न्यूज़11 भारत

रांची/डेस्क: आज झारखंड के लोकप्रिय नेता और आदिवासी समाज के मसीहा दिशोम गुरु शिबू सोरेन का 81वां जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाएगा. राजधानी रांची समेत पूरे राज्य में उनके समर्थक और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकर्ता इस दिन को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं. शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी, 1944 को हजारीबाग जिले के गोला (अब रामगढ़) के नेसरा गांव में हुआ था. 

 


रघुवर दास भी पहुंचे शिबू सोरेन के आवास जन्म दिवस पर दी बधाई 

पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा "आज गुरुजी को जन्मदिन की बधाई दी. साथ ही सक्रिय राजनीति में वापसी के बाद गुरुजी का आशीर्वाद लिया. विकसित राज्य बनाने के लिए उनके मुख्यमंत्री रहते मैं उनके साथ डिप्टी सीएम था. गुरुजी राज्य के सर्वमान्य नेता है, जो झारखंड के विकास झारखंड के तरक्की को लेकर लगातार प्रयास करते रहे हैं. इस खास मौके पर विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो ने बधाई दी.


 


गुरूजी के आवास पर कटेगा 81 पाउंड का केक

रांची के मोरहाबादी स्थित उनके सरकारी आवास पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की मौजूदगी में यह भव्य कार्यक्रम आयोजित होगा. इस अवसर पर 81 पाउंड का केक काटा जाएगा, जिसमें शिबू सोरेन के परिवार के सदस्य और पार्टी कार्यकर्ता भी शामिल होंगे. मुख्यमंत्री के अलावा राज्य के तमाम मंत्री, विधायक और सहयोगी दलों के नेता जैसे कांग्रेस, राजद और भाकपा माले के प्रतिनिधि भी इस समारोह में भाग लेंगे. इसके अलावा जन्मदिन के मौके पर पार्टी के मंत्री, विधायक और पदाधिकारी बधाई देने पहुंचे. रांची जिला अध्यक्ष मुस्ताक आलम के नेतृत्व मे जिला के पदाधिकारी, प्रखंड के पदाधिकारी, महानगर के नेतागण और कार्यकर्तागण शामिल होंगे. इस खास अवसर पर निःशुल्क हेल्थ चेकअप कैंप, जरूरतमंदों के बीच फल वितरण और कंबल वितरण भी किया जाएगा. 


 

पिता के संघर्ष और आदिवासी समाज के लिए समर्पण

शिबू सोरेन का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जहां उनके पिता सोबरन मांझी ने आदिवासियों की शिक्षा और अधिकारों के लिए संघर्ष किया. सोबरन मांझी उस समय के सबसे पढ़े-लिखे आदिवासी शिक्षक थे और उन्होंने सूदखोरों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था. उनका मानना था कि आदिवासियों का शोषण रोकने के लिए उन्हें शिक्षा की आवश्यकता हैं. महाजनों द्वारा आदिवासियों को कर्ज के जाल में फंसा कर उनका शोषण करने की परंपरा के खिलाफ उन्होंने संघर्ष शुरू किया.

 

पिता की हत्या के बाद का टर्निंग पॉइंट

साल 1957 में शिबू सोरेन के जीवन का सबसे बड़ा हादसा हुआ, जब उनके पिता की हत्या कर दी गई. उस समय शिबू सोरेन पढ़ाई में व्यस्त थे लेकिन इस घटना ने उनकी दिशा बदल दी. उन्होंने अपने पिता की मौत का प्रतिशोध लेने के बजाय आदिवासी समाज को शोषण से मुक्त कराने की कसम खाई. उन्होंने महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ आंदोलन किया और आदिवासियों को एकजुट किया. इस संघर्ष ने उन्हें दिशोम गुरु की उपाधि दिलाई, जिसका मतलब होता है देश का गुरु.

 

राजनीति में कदम और झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन

साल 1972 में शिबू सोरेन और उनके सहयोगियों ने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया. इसके बाद उनकी लोकप्रियता बढ़ी और उन्होंने आदिवासी समाज के लिए संघर्ष को और तेज किया. 1980 में पहली बार चुनाव लड़ा हालांकि वे हार गए लेकिन 1983 में हुए मध्यावधि चुनाव में उन्होंने शानदार जीत हासिल की. बाद में झामुमो का कांग्रेस के साथ गठबंधन हुआ और पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया. 

 

झारखंड के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री के रूप में योगदान

शिबू सोरेन तेन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने हालांकि उनके कार्यकाल में कई बार राजनीतिक हलचलें हुई और वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए लेकिन उनके बेटे हेमंत सोरेन ने उनके संघर्ष को आगे बढ़ाया. शिबू सोरेन ने राज्य के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए और हमेशा आदिवासी समाज की आवाज उठाई. उन्होंने अपनी आवाज को सिर्फ झारखंड तक सीमित नहीं रखा बल्कि देश के सबसे बड़े जनप्रतिनिधि संस्था यानी लोकसभा में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. वे 9 बार दुमका लोकसभा से निर्वाचित हुए और 3 बार राज्यसभा के सदस्य बने.

 

शिबू सोरेन का जीवन एक प्रेरणा है, जो न केवल आदिवासी समाज के लिए बल्कि पूरे राज्य और देश के लिए संघर्ष करने का प्रतीक बन चुका हैं. उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता और उनका 81वां जन्मदिन झारखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में याद किया जाएगा. उनका संघर्ष और उनकी नीतियां आज भी राज्य और देश की राजनीति में प्रभावी हैं. झारखंड के लोग उन्हें आज भी आदर्श और मार्गदर्शक के रूप में मनाते हैं. 

 

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