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रांची/डेस्क: गुमला जिले के भरनो प्रखंड अंतर्गत पबिया टोली की जयंती भगत आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहीं थीं. उनका पूरा परिवार एक दो कमरे के कच्चे मकान में रहता था, जिससे उन्हें काफी मुश्किल होती थी. पारंपरिक खेती से पूरे परिवार का भरण पोषण नहीं हो पा रहा था. जयंती को किसी नए रोजगार की तलाश थी, लेकिन कोई रास्ता नहीं मिल रहा था.
इसी दौरान वह किरण स्वयं सहायता समूह में शामिल हो गईं. समूह के बैठकों से उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला. समूह से आसानी से ऋण भी मिल जाता था जिससे वे अपनी छोटी-छोटी जरूरतें पूरी करतीं थीं. खेती में उनकी रुचि को देखते हुए उन्हें पलाश (जेएसएलपीएस) के तहत फील्ड विजिट पर ओरमांझी लाया गया. वहां उन्होंने उन्नत तकनीक से तरबूज की खेती देखी और टपक सिंचाई के बारे के जानकारी प्राप्त की. इस दौरे के बाद जयंती ने ठान लिया कि उन्हें पारंपरिक तरीके से हट कर टपक सिंचाई से खेती करनी है. उन्होंने समूह के जरिए और प्रशिक्षण लिए और साल 2020 में झिमड़ी परियोजना में अपना पंजीकरण कराया.
शुरुवात में जयंती 25 डेसिमल में खेती कर रहीं थीं, इसके फायदे को देखते हुए आज वह एक एकड़ में खेती कर रहीं है. अभी उनके खेतों में टमाटर की फसल लगी हुई है, जिससे 70 से 80 हजार तक कमाई होने की उम्मीद है. साल भर में जयंती लगभग 3 लाख रुपए तक आमदनी कर लेती हैं. आज अपने गांव में उन्हें एक लखपति दीदी के नाम से हर कोई पहचानता है. जयंती के बच्चे भी अब अच्छे स्कूलों में पढ़ने जाते हैं, और इस खेती से जो उनकी जीवनशैली में बदलाव आया है वह इससे बहुत खुश हैं.
जयंती भगत ने कहा “सब मुझे लखपति दीदी कहकर बुलाते हैं. समूह से जुड़कर मेरी जिंदगी बदल गई है. मुझे इसके जरिए जो मार्गदर्शन मिला उसके कारण आज मैंने अपना पक्के का मकान बनवा लिया है. आज मेरा परिवार एक आरामदेह जिंदगी जी रहा है.”