न्यूज11 भारत
रांची/डेस्कः ईद-उल-अजहा इस्लाम धर्म का दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है और आज देश-विदेश में इस पर्व को मनाया जा रहा है. इस अवसर पर आज मस्जिदों और ईदगाहों में इस्लाम समुदाय के लोग विशेष नमाज अदा कर रहे हैं. बता दें, ईद उल अजहा को बकरा ईद, बकरीद, ईद उल बकरा के नाम से भी जाना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, यह पर्व आज यानी 17 जून को मनाई जा रही है. इस कैलेंडर में 12 महीने होते है जिसका अंतिम महीना धुल्ल हिज होता है. इसी महीने की 10वीं तिथि को बकरीद यानी ईद-उल-अजहा का पर्व मनाया जाता है. जो कि रामजान के महीने के खत्म होने के 70 दिनों बात आता है.
जानें क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी
इस्लाम समुदाय का यह पर्व वैश्विक स्तर पर बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है इस समुदाय में कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्व होता है. इस पर्व को लेकर पवित्र धर्म ग्रंथ कुरान में भी कहा गया है कि अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की एक बार परीक्षा लेनी चाही. उन्होंने हजरत इब्राहिम को आदेश दिया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को उन्हें कुर्बान करें. अल्लाह के हुक्म के बाद इन बातों को हजरत इब्राहिम ने अपने सबसे प्रिय चीज अपने बेटे हजरत ईस्माइल को बताई. क्योंकि हजरत ईस्माइल उनके सबसे प्यारे थे.
बता दें, 80 वर्ष की उम्र में हजरत इब्राहिम को औलाद नसीब हुई थी. और अब अल्लाह ने उनसे उनके सबसे प्यारे चीज को कुर्बान देने का हुक्म दिया है ऐसे में हजरत इब्राहिम के लिए अपने बेटे की कुर्बानी देना बेहत मुश्किल काम था लेकिन उन्होंने अल्लाह के हुक्म और बेटे की मोहब्बत में से अल्लाह के हुक्म को चुना और उसकी कुर्बानी देने का फैसला ले लिया. और फिर अल्लाह का नाम लेते हुए हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे के गले पर छुरी चला दी. मगर जब हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखे खोली तो उन्होंने देखा कि उनका प्यारा बेटा उसके बगल में जिंदा खड़ा है और उसकी जगह पर बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा और लेटा हुआ है. कुरान के इसी कथा के बाद से अल्लाह की राह में इस्लाम समुदाय के लोगों ने कुर्बानी देने की शुरूआत की. तब से यह पर्व वैश्विक स्तर पर बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है.