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रांची/डेस्क: राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने आज चाकुलिया, पूर्वी सिंहभूम में आयोजित 'परंपरागत स्वशासन व्यवस्था' में वर्चुअल माध्यम से लोगों से संवाद किया. राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि झारखण्ड की जनजातीय संस्कृति में पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था का एक विशिष्ट महत्व है. मानकी-मुण्डा, पाहन, प्रधान, माँझी जैसी व्यवस्थाएँ न केवल जनजातीय संस्कृति का संरक्षण करती हैं, बल्कि ग्रामीण समाज की सामान्य समस्याओं का समाधान भी प्रदान करती हैं. उन्होंने कहा कि ग्रामीण जनजातीय समुदाय का इस परंपरागत व्यवस्था पर सदियों से अटूट विश्वास रहा है और इसे और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है.
राज्यपाल ने पेसा अधिनियम का जिक्र करते हुए कहा कि इस अधिनियम के तहत पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को विशेष शक्तियाँ प्रदान की गई हैं. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि झारखण्ड राज्य में अभी तक पेसा नियमावली लागू नहीं हो सकी है और इस दिशा में उन्होंने राज्य सरकार को स्मरण कराया है. आशा है व्यक्त कि नई सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाएगी.
राज्यपाल ने जनजातीय समाज को जागरूक करने, समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने और सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए नागरिकों से नियमित संवाद करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि यदि हमारी जनजातीय स्वशासन व्यवस्थाएँ प्रभावी ढंग से कार्य करें, तो डायन प्रथा जैसी कुप्रथाओं से जनजातीय समाज को मुक्ति दिलाने में यह सहायक हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ प्रत्येक ग्रामवासी तक पहुँचना चाहिए. राज्यपाल ने कहा कि पाँचवीं अनुसूची के अंतर्गत अपने दायित्वों का निर्वहन करने के लिए वे सदैव तत्पर हैं. राज भवन के द्वार सभी नागरिकों के लिए हमेशा खुले हैं. उन्होंने कहा कि अपनी समस्याओं को लेकर वे लोग कभी भी उनसे संपर्क कर सकते हैं.