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रांची/डेस्क: वेपिंग को अक्सर सिगरेट से कम हानिकारक माना जाता है, लेकिन यह भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है. ई-सिगरेट में तम्बाकू सिगरेट की तुलना में कम विषैले रसायन होते हैं, लेकिन इसमें कुछ हानिकारक रसायन भी हो सकते हैं. वेपिंग से गले और मुंह में जलन, सिरदर्द, खांसी, और सामान्य बीमारी जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
वेपिंग और फेफड़ों की बीमारी
वेपिंग के दीर्घकालिक प्रभावों पर अभी पूरी तरह से शोध नहीं हुआ है. कुछ अध्ययन बताते हैं कि वेपिंग फेफड़ों की बीमारियों और हृदय रोगों के जोखिम को बढ़ा सकता है. वेपिंग अत्यधिक नशे की लत का कारण बन सकता है, और बच्चों में यह सिगरेट पीने से कहीं ज्यादा लोकप्रिय हो गया है. वेपिंग से जुड़ी फेफड़ों की चोटों और मौत के मामले भी सामने आए हैं.
ई-सिगरेट और दिल की बीमारियाँ
कुछ शोधों से यह भी पता चला है कि ई-सिगरेट हृदय से जुड़ी समस्याओं का कारण बन सकती है, जैसे कि दिल की धमनियों में पट्टिका का निर्माण, जिससे दिल का दौरा पड़ सकता है. इसके चलते, FDA ने ई-सिगरेट में निकोटीन और अन्य सामग्री को विनियमित करना शुरू कर दिया है. विशेषज्ञों के अनुसार, ई-सिगरेट का उपयोग केवल धूम्रपान छोड़ने या तंबाकू की ओर वापस जाने से रोकने के लिए किया जाना चाहिए. यदि आपने कभी धूम्रपान नहीं किया है, तो आपको ई-सिगरेट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
ई-सिगरेट का निर्माण कैसे होता है?
2019 में विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि वेपिंग से फेफड़ों से जुड़ी गंभीर बीमारी हो सकती है. ई-सिगरेट और वेपिंग से फेफड़ों को भारी नुकसान हो सकता है, जिसके कारण EVALI जैसी खतरनाक बीमारी हो सकती है. सीडीसी के अनुसार, फरवरी 2020 तक EVALI से 2,807 मामले सामने आए थे, जिनमें से 68 लोगों की मौत हो चुकी थी. इस पर अभी भी शोध जारी है.
नॉर्मल सिगरेट से ज्यादा खतरनाक हो सकती है ई-सिगरेट
ई-सिगरेट एक छोटे उपकरण की तरह होती है, जो सिगरेट, सिगार, पाइप, पेन या यूएसबी ड्राइव जैसा दिखता है. इसमें जो लिक्विड होता है, वह फ्रूट या अन्य सुगंध दे सकता है, लेकिन इसमें निकोटीन की मात्रा काफी ज्यादा होती है. उदाहरण के तौर पर, JUUL डिवाइस जो USB ड्राइव की तरह दिखता है, अब अमेरिका में ई-सिगरेट का सबसे अधिक बिकने वाला ब्रांड बन चुका है. यह युवाओं में बहुत लोकप्रिय हो गया है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है. इसके रिफिल में खीरे, आम, पुदीना जैसे फ्लेवर हो सकते हैं, जो स्वाभाविक और ऑर्गेनिक लगते हैं, लेकिन एक रिफिल में 20 सिगरेट के पैक जितना निकोटीन हो सकता है.
ई-सिगरेट कैसे काम करती है?
1. माउथपीस: यह एक ट्यूब के सिरे पर लगा हुआ कार्ट्रिज होता है, जिसमें लिक्विड भरा होता है.
2. एटमाइज़र: यह लिक्विड को गर्म करता है, जिससे वेपर (वाष्प) बनता है, जिसे व्यक्ति श्वास के जरिए ग्रहण करता है.
3. बैटरी: यह लिक्विड को हीट करने का कार्य करती है.
4. सेंसर: जब उपयोगकर्ता डिवाइस को चूसता है, तब सेंसर से हीटर सक्रिय हो जाता है.
5. ई-तरल (ई-जूस): इसमें निकोटीन, प्रोपलीन ग्लाइकोल (एक आधार) और स्वाद होता है.
जब उपयोगकर्ता माउथपीस को चूसता है, तो हीटिंग एलिमेंट लिक्विड को वेपर में बदल देता है, जिसे श्वास के जरिए ग्रहण किया जाता है. इसमें निकोटीन की अधिक मात्रा होती है.
नोट: इस लेख में दी गई जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले कृपया विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.