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रांची/डेस्कः झारखंड में चुनावी मुद्दे कई रहे हैं.विस्थापन, ज़मीन लूट, अवैध खनन, बेरोजगारी, पलायन और घुसपैठ जैसे मुद्दों यहां के राजनीतिक दलों का हमेशा से मुद्दा रहा है.लेकिन एक और चीज़ ऐसी है जो हमेशा चुनाव के समय एक बड़ा मुद्दा बन जाती है.वो है राजधानी रांची स्थित हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन.
करीब 6 दशक पहले HEC को रांची का लाइफलाइन कहा जाता था.1960 के दशक में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसका उद्घाटन किया था. उस ज़माने में देश में केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम की सबसे बड़ी कंपनी के लिए 20 हज़ार से अधिक युवाओं की ज़रूरत थी. प्रबंधन ने ज़मीन देने वाले हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का फैसला किया. इसके साथ ही रांची में रहने वाले लोगों को बुला-बुलाकर नौकरी दी गयी. लेकिन इससे भी महज 8 हज़ार पद ही भर पाये थे.ऐसे में देश भर से विशेषज्ञ, इंजीनियर और तकनीकी लोगों को बुलाकर नौकरी दी गयी.
HEC ने रांची की तस्वीर ही बदलकर रख दी. एकीकृत बिहार की उपराजधानी का दर्जा रांची को मिला. HEC के बेहतर काम की वजह से बाद में यहां नौकरी पाना युवाओं का ख्वाब बन गया लेकिन तब वहां नौकरी मिलनी मुश्किल हो गयी.देश के स्थापित पहले भारी उद्योग को लेकर आधुनिक टाउनशिप विकसित किया गया. यहां HEC के कर्मचारियों के लिए 10 हज़ार से अधिक क्वार्टर बनाये गये. चौड़ी सड़कें, सिवरेज-ड्रेनेज और हरे-भरे बाग-बगीचों के साथ इस टाउनशिप को बेहद खूबसूरत बसाया गया. आज भी यह इलाका बेहद खूबसूरत नज़र आता है.
करीब 4 दशकों तक HEC की स्थिति काफी अच्छी रही.लोग बाहर से यहां आकर बसने लगे. यहां कई तरह के रोजगार के अवसर बढ़े. लेकिन वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य बनने तक HEC की स्थिति बेहद खराब हो गयी.हालात इतने खराब हो गये कि HEC को जिंदा बचाये रखने के लिए अस्तित्व की लड़ाई जारी है. यहां HEC के कर्मियों और इंजीनियरों को सालों का बकाया वेतन भी नहीं मिल पा रहा है. लगातार आंदोलन कर केंद्र सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया जाता है, लेकिन कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है. एक समय यहां करीब 22 हज़ार कर्मचारी कार्यरत थे, वहीं अब कुछ हज़ार कर्मचारी ही बचे हैं
एक जमाने में ये कॉरपोरेशन कभी भारत-सोवियत मैत्री का एक बड़ा प्रतीक हुआ करता था. इसे कंपनियों की रैंकिंग में द इकोनॉमिक टाइम्स में 12वां स्थान भी मिल चुका है. HEC अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.कभी एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कॉम्प्लेक्स आज खत्म होने की कगार पर है. जानकार इसका सबसे बड़ा कारण मानते हैं भारी उद्योग और इस्पात मंत्रालय का अलग होना. HEC के हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि अब यहां काम कर रहे कई इंजीनियर और कर्मचारियों के घरों में चूल्हा जलने की चिंता सताने लगी है. कुछ इडली के तो कुछ गोलगप्पे के खोमचे लगाकर या अन्य किसी जगह पार्ट टाइम काम कर किसी तरह अपना जीवनयापन कर रहे हैं.
झारखंड में जब चुनाव आता है, HEC का मुद्दा सबसे पहले उठता है.हर राजनीतिक पार्टियां दावा करती हैं कि वो HEC को पुनर्जीवित करने की दिशा में ठोस पहल करेंगी.लेकिन ये सिर्फ आश्वासन की घुट्टी बनकर ही रह जाता है. झारखंड के तीसरी बार सीएम बने हेमंत सोरेन ने HEC को लेकर गंभीरता दिखायी है.HEC के ही प्रभात तारा मैदान में एक कार्यक्रम के दौरान खुले मंच से हेमंत सोरेन ने केंद्र को चुनौती दी.उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि अगर केंद्र से HEC नहीं संभल रहा तो उसे राज्य सरकार के हवाले कर दें.हेमंत ने कहा कि एचईसी उद्योगों की जननी है.देश और विदेश के हज़ारों उद्योगों में एचईसी निर्मित मशीनों का उपयोग हो रहा है.बावजूद इसके HEC की हालत बद से बदतर हो चुकी है.