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खालिस्तान, वर्तमान, इतिहास और भविष्य

खालिस्तान, वर्तमान, इतिहास और भविष्य

राजदेव/न्यूज़11 भारत


रांची/डेस्क: 31 अक्टूबर 1984, स्थान नई दिल्ली का प्रधानमंत्री आवास. अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजी और तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों ने उनके ही आवासीय परिसर में हत्या कर दी. घटना अप्रत्याशित थी. किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि एक प्रधानमंत्री की उनके ही अंगरक्षक हत्या करेंगे. ये सभी अंगरक्षक इंदिरा जी को बड़े प्रिय थे. इस घटना ने पूरे देश ही नहीं, पूरे विश्व को उद्वेलित कर दिया. आखिर इंदिरा गांधी की हत्या क्यों हुई? वे अंगरक्षक जो इंदिरा गांधी के सबसे वफादार थे अचानक विद्रोही क्यों हो गये? 

 

सिख अंगरक्षकों ने की थी इंदिरा गांधी की हत्या 

खालिस्तान समर्थक दो सिख अंगरक्षकों ने हत्या की इस घटना को अंजाम दिया. स्वर्ण मंदिर परिसर में हुई कार्रवाई से वे आहत थे. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मंदिर पर छापे के आदेश दिये थे. सिख अंगरक्षकों का मानना था कि इससे स्वर्ण मंदिर की पवित्रता भंग हुई है. 

 

एक बार फिर चर्चा में है खालिस्तान 

आज खालिस्तान की चर्चा एक बार फिर होने लगी है. कई देशों से भारत के राजनयिक संबंधों में खटास आई है. सरकार भी इस मामले में गंभीर नजर आ रही है. अब ये समझने की जरूरत है कि आखिर खालिस्तान आंदोलन क्या है? ये कब से है और इसके क्या उद्देश्य हैं? खालिस्तान राज्य का नाम है जो कुछ सिखों द्वारा प्रस्तावित है. गुरु गोबिंद सिंह ने 1699 में खालसा, जिसका अरबी भाषा में शाब्दिक अर्थ शुद्ध या पवित्र है, के नाम से धर्म को पुनः परिभाषित किया. इसका उद्देश्य था सिख शासन की स्थापना के लिए एक राजनीतिक दृष्टिकोण पैदा किया जा सके. साल 1947 में ही इस आंदोलन का बीजारोपण भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन के बाद होना शुरू हो गया था. पंजाबी भाषी स्वायत्त सिख राज्य की स्थापना की मांग उस समय भी उठी. फलतः साल 1966 में पंजाब राज्य का निर्माण किया गया और चंडीगढ़ इसकी राजधानी बनायी गयी.

 

80 के दशक में एक बार फिर खालिस्तान आंदोलन उभरा

1970 और 80 के दशक में एक बार फिर खालिस्तान आंदोलन उभरा. भारत और विदेशों में रहने वाले सिखों ने इसे उठाया. उन दिनों सिख विद्रोही नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले इसका नेतृत्व कर रहे थे. बाद में यह आंदोलन सशस्त्र विद्रोह बन गया. लेकिन भारत सरकार ने इसे दबा दिया. इस क्रम में प्रमुख सिख नेताओं सहित हजारों लोग मारे गये. 1984 में की घटना का उल्लेख उपर किया जा चुका है. कई खालिस्तानियों ने पंजाब के स्वर्ण मंदिर में शरण ले रखी थी. भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर पर धावा बोल दिया ताकि अलगाववादियों को बाहर निकाला जा सके. इस ऑपरेशन में लगभग 400 लोग मारे गए. मृतकों में भिंडरावाले भी शामिल था. भारत सरकार ने भिंडरावाले पर सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व करने का आरोप लगाया था.

 

इंदिरा गांधी की हत्या के शुरू हुए सिख विरोधी दंगे 

भिंडरावाले की मौत के बाद देश में सिख विरोधी दंगे शुरू हो गये. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या तक ये विरोध अपना उग्र रूप ले चुका था. स्वर्ण मंदिर ऑपरेशन का बदला लेने के लिए 1985 में एयर इंडिया की उड़ान संख्या 182 में बम विस्फोट किया गया. यह विस्फोट कनाडा स्थित सिख लड़ाकों ने रचा था और घटना में 329 लोग मारे गये थे.

 

आज की तारीख में खालिस्तान आंदोलन 

भारत इस माले में बेहद गंभीर है. सरकार ने कथित तौर पर आंदोलन से जुड़े कई संगठनों के दर्जनों नेताओं को गिरफ्तार कर लिया है. सरकार इसे देश की सुरक्षा के लिए खतरा मान रही है. इस आंदोलन को कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी कुछ सिखों का समर्थन मिल रहा है. तीन सालों से सिख फॉर जस्टिस ने कई देशों में खालिस्तान की स्थापना पर अनौपचारिक जनमत संग्रह किया. ऑस्ट्रेलिया में हुए मतदान के कारण खालिस्तान समर्थकों और हिंदू समर्थकों के बीच झड़पें भी हुईं. कनाडा और ब्रिटेन में भी प्रदर्शन हुए. भारत ने सभी देशों से अनुरोध किया है कि वे सिख कार्यकर्ताओं के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करें. कनाडा में सिखों की संख्या अधिक है. वहां की सरकार से कानूनी कार्रवाई का विशेष अनुरोध किया गया है. 

 

अलगाववादी नेता अमृतपाल सिंह ने पुनर्जीवित किया खालिस्तान की मांग 

वर्तमान स्थिति में माना जाता है कि खालिस्तान की मांग को 30 वर्षीय अलगाववादी नेता अमृतपाल सिंह ने पुनर्जीवित किया. सरकार ने उसे गिरफ्तार कर लिया है. इसकी गिरफ्तारी के बाद लंदन में प्रदर्शनकारियों ने उच्चायोग से भारतीय ध्वज उतार दिया. उन्होंने इमारत की खिड़कियां भी तोड़ दीं. ओटावा में भारत के उच्चायोग और उसके अन्य कार्यालयों पर हमला भी हुआ. कुछ हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ के भी आरोप लगे. 

 

कई खालिस्तान समर्थक बड़े नेताओं की हुई हत्या 

खालिस्तान समर्थक बड़े नेताओं में से एक माने जाने वाले 45 वर्षीय हरदीप सिंह निज्जर की हत्या कर दी गई है. तीन साल पहले भारत ने उन्हें आतंकवादी घोषित किया था. वह भारत में एक स्वतंत्र सिख राष्ट्र के लिए एक अनौपचारिक जनमत संग्रह का आयोजन कर रहे थे. इसके साथ प्रमुख अलगाववादी नेता अवतार सिंह खंडा और परमजीत सिंह पंजवार भी मारे गये. परमजीत की लाहौर में दो अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

 

खालिस्तान के कारण दो देशों के राजनयिक संबंधों में दरार 

फिलहाल जो समस्या आ रही है वो भारत और कनाडा के बीच विवाद का है. ट्रूडो ने दावा किया था कि निज्जर की हत्या में भारत की भूमिका थी. इस कारण कनाडा और भारत के बीच तनाव बढ़ गया. भारत ने कनाडाई नागरिकों को वीजा जारी करना निलंबित कर दिया. कनाडा में कार्यरत भारत की विदेशी खुफिया एजेंसी के सबसे वरिष्ठ सदस्य पवन कुमार राय को कनाडा ने निष्कासित कर दिया. भारत ने भी कनाडा के शीर्ष राजनयिकों में से एक को निष्कासित कर दिया. खालिस्तान के कारण दो देशों के राजनयिक संबंधों में हल्की दरार जरूर आ गई. लेकिन इससे खालिस्तान को बड़ा फायदा होता नजर नहीं आ रहा है. खालिस्तान के निर्माण के लिए न केवल भारत सरकार से बल्कि पाकिस्तान से भी खालिस्तानियों को संघर्ष करना होगा.

 


 

 
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