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रांची/डेस्क: पूरे देश की निगाहें इस वक्त paris olympics पर टिकी हुई है. वहीं इसी के चलते पूरे देश में उस वक्त खुशी मनाई गई जब पहलवान विनेश फोगाट ओलिंपिक में कुश्ती के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय पहलवान बन गई थी. हर तरफ विनेश की जीत का जश्न मनाया जा रहा था. विनेश ने क्यूबा की युसनेलिस गुजमैन जैसी उस खिलाड़ी को हराया जिन्हें आज तक कोई हरा नहीं पाया था. लेकिन विनेश ने गुजमैन को 5-0 से हरा दिया. इसके बाद पूरा भारत उस एक मैच का इंतजार कर रहा था, जिसमें विनेश gold के लिए मुकाबला करने वाली थी. लेकिन पुरे देश को 7 अगस्त की तारीख ने चौंका दिया. किसी को भी अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ जब विनेश को अयोग्य ठहराए जाने की खबर सुर्खियों में थी. पूरे देश को एकसाथ बड़ा झटका लगा. मगर भारत की बेटी आखिरी दम तक लड़ना और पछाड़ना जानती है वो इस पर कैसे रुक जाती. विनेश ने Court of Arbitration for Sports यानि CAS (कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स) में याचिका दायर की.
विनेश ने दायर की याचिका
पूरी दुनिया में जब कोई विवाद होता है, जिसके बाद कोई ऐसा फैसला सुनाया जाता है जिसे हम नहीं मानते है और उसे चुनौती देना चाहते है तो हम कोर्ट के पास जाते है. इसी प्रकार किसी भी खेल में जब विवाद होता है तो खिलाड़ी कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स(CAS) में अपनी याचिका दायर करता है. कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स में इसी तरह विनेश ने भी पानी याचिका दायर की. यह कोर्ट कैसे और क्या काम करता है इसे जानने से पहले, यह जानना जरुरी है कि कि ऐसा क्या हुआ कि विनेश फोगाट को अयोग्य ठहरा दिया गया और उन्होंने कोर्ट से क्या अपील की.
विनेश फोगाट को ठहराया गया अयोग्य
50 किलोग्राम फ्रीस्टाइल रेसलिंग कैटगरी के फाइनल मुकाबले में विनेश फोगाट पहुंच गई थी. उन्हें मैच से कुछ देर पहले ही अयोग्य ठहरा दिया गया. अयोग्य ठहराने के पीछे उनको वजह बताया कि विनेश फोगाट का वजन नियम से ज्यादा है. करीब 100 ग्राम उनका वजन ज्यादा है. इस वजह से नियम के कारण वह सेमीफाइनल जीतने के बाद भी गोल्ड मेडल से चूक गईं. इसके साथ ही विनेश ने वजन कम करने के लिए हर मुमकिन कोशिश की. मगर वजन 100 ग्राम फिर भी ज्यादा ही पाया गया. वहीं विनेश ने इस फैसले पर आपत्ति जताई. इसके साथ ही CAS में संयुक्त सिल्वर मेडल देने की मांग की. शुक्रवार को इस मामले को लेकर कोर्ट सुनवाई करेगा. इसके साथ ही कोर्ट में अधिवक्ता हरीश साल्वे विनेश फोगाट का पक्ष कोर्ट में रखेंगे.
क्या है CAS
पहली बार पूरी दुनिया में ग्रीस में 1896 में ओलंपिक खेला गया. इसके 84 साल बाद ओलंपिक में कुछ मुश्किलें सामने आने लगी. नियम को लेकर खिलाड़ियों में विवाद देखा गया. फिर इन विवादों के चलते यह सोचा जाना शुरू हुआ कि इनको कैसे हल किया जाए. जिसके बाद खेल के विवादों को हल करने के लिए Court of Arbitration for Sport (CAS) का गठन साल 1984 में किया गया. वहीं इस कोर्ट का हेड ऑफिस स्विट्जरलैंड में है.
CAS यानि इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट एक स्वतंत्र संस्था है. यह खेल जगत में हुए किसी भी विवाद के निपटारे के लिए काम करती है. खिलाड़ी, कोच किसी भी तरह की फैसले पर आपत्ति या और भी किसी तरह के विवाद होने पर इस कोर्ट में ही अपील कर सकते है. वहीं CAS में 87 देशों के लगभग 300 Arbitrators हैं, जिन्हें खेल कानून के विशेषज्ञ ज्ञान के लिए चुना गया है. बता दें कि CAS में हर साल लगभग 300 मामले दर्ज किए जाते हैं.
कौन-कौन कर सकता है याचिका दायर
खेल से जुड़े हर तरह के विवाद पर इस कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है. जैसे कि विनेश फोगाट को अयोग्य ठहराए जाने पर आपत्ति थी. इसके साथ ही इस कोर्ट में न सिर्फ खिलाड़ी बल्कि क्लब, खेल संघ, कोच, खेल आयोजक भी याचिका दायर कर सकते हैं. इस कोर्ट में याचिका दायर होने के बाद सुनवाई होती है, मामले में बयान भी दर्ज किए जाते है, सुनवाई के लिए पक्षों को बुलाया जाता है ताकि उन्हें सुना जा सकें, सबूत पेश किए जा सकें और इसके साथ ही मामले पर बहस किया जा सके.
मुख्य रूप से CAS में दो तरह के विवाद पर याचिका दायर की जाती है. पहला sponsorship को लेकर विवाद दाखिल किए जाते हैं. इसके साथ ही कोच, कल्ब, खिलाड़ी के बीच संबंध खराब होने पर या एक-दूसरे के प्रति किसी भी तरह की शिकायत को लेकर विवाद दायर किए जा सकता है. वहीं किसी एथलीट के साथ खेल प्रतियोगिता के दौरान दुर्घटना हो गई तो वो विवाद भी इसी कोर्ट में दायर किया जाता है.
वहीं जिस लिस्ट में विनेश फोगाट ने मामला दर्ज किया है वो इसमें अहम रोल निभाता है. ये है अनुशासन को लेकर कोई विवाद, कोई फैसला जिस पर खिलाड़ी को आपत्ति हो. इसके साथ ही इस लिस्ट में ड्रग्स लेने और डोपिंग के मामले मुख्य रूप से दर्ज किए जाते हैं. खेल के मैदान में हिंसा, रेफरी के साथ दुर्व्यवहार जैसे मामलों पर भी कोर्ट सुनवाई करता है.
कब तक आता है फैसला
कुछ हफ्ते बाद फैसले की सुनवाई पार्टियों को दे दी जाती है. 6 से 12 महीने के बीच सामान्य प्रक्रिया चलती है. मगर कोर्ट बहुत जल्दी मामलों पर सुनवाई करता है.