रांची : राजधानी सहित पूरे राज्य में भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना की जा रही है. झारखंड की राजधानी रांची में ब्रिटिश शासनकाल का विश्वकर्मा मंदिर है. वर्ष 1930 में इस मंदिर को विश्वकर्मा समाज के लोगों ने बनवाया था. तभी से विश्वकर्मा मंदिर में 17 सितंबर को विशेष पूजा होते आ रही है. यह मंदिर झारखंड का सबसे पूराना विश्वकर्मा मंदिर है. जिसे जयपुर के कलाकारों ने बनाया था. रांची के मेन रोड़ में यह मंदिर है. जहां यह मंदिर है उस लेन विश्वकर्मा लेन के नाम से जाना जाता है.
विश्वकर्मा मंदिर के मुख्य पुजारी राजा राम शास्त्री है, जो पिछले 22 वर्षों से मंदिर में पूजा अर्चना कर रहे हैं. राजा राम शास्त्री ने बताया कि मंदिर को बनवाने में अध्यक्ष स्व. बलदेव प्रसाद विश्वकर्मा तथा सदस्य स्व. बाबूलाल विश्वकर्मा का महत्वपूर्ण योगदान था. विश्वकर्मा भगवान का ऐसा भव्य मंदिर झारखंड में कहीं नहीं है. पुजारी जी के अनुसार 1928 में संत मौनी बाबा विश्वकर्मा भगवान की फोटो रखकर यहां पूजा करते थे. उस समय ही इस क्षेत्र के लोगों ने विश्वकर्मा मंदिर बनवाने का निर्णय लिया, और दो वर्ष में मंदिर का निर्माण करवाया.
ज्ञाता प्रजापति है भगवान विश्वकर्मा, क्या है मान्यता
रांची के पंडित संजय पाठक ने बताया कि भगवान विश्वकर्मा ज्ञाता प्रजापति है. विश्वकर्मा महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना, जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी, वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे सम्पुर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ. ऐसा कहा जाता है कि विश्वकर्मा मंदिर में एक बार वाहन खरीदने के बाद जब भी कोई यहां दर्शन करने आता है, तो उसके पास अगले साल दो वाहन हो जाते हैं. इसलिए यहां पर अक्सर भक्तों की काफी भीड़ देखी जाती है.