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रांची/डेस्क: नक्सलियों के खौफ से घरबार छोड़कर पलायन करने वाले लोग अब धीरे-धीरे अपने गांव लौटने लगे हैं. बूढ़ापहाड़ से लेकर बिहार सीमा तक, पिछले पांच सालों में बड़ी संख्या में लोग अपने गांव वापस लौट चुके हैं. गांव लौटने की यह प्रक्रिया तेजी से बढ़ रही है.
पलामू के नौडीहा बाजार थाना क्षेत्र के डगरा गांव में नक्सलियों के आतंक से 160 से अधिक लोग अपने गांव से पलायन कर गए थे. 2020 से अब तक, 120 से ज्यादा लोग वापस लौट चुके हैं. बूढ़ापहाड़ के बहेराटोली, नावाटोली और तिसिया में भी कई परिवार लौट चुके हैं. 2023 से बूढ़ापहाड़ इलाके में बड़ी संख्या में लोग अपने घरों की ओर वापस लौटे हैं.
बूढ़ापहाड़ के निवासी श्याम यादव का परिवार, जिनके पिता और भाई की 30 साल पहले माओवादियों ने हत्या कर दी थी, अब 30 साल बाद सुरक्षा बलों द्वारा बूढ़ापहाड़ पर कब्जा करने के बाद अपने गांव लौट पाया है.
क्या था खौफ?
90 के दशक के बाद नक्सलियों की हिंसक गतिविधियां बढ़ने लगी थीं, और 2000 तक यह हिंसा चरम पर पहुँच गई थी, जिसके कारण लोगों को अपने घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. 2004 में नक्सली संगठनों का विलय हुआ और 2006-07 के बाद टीएसपीसी, पीएलएफआई और जेजेएमपी जैसे नए नक्सली संगठन अस्तित्व में आए. इन संगठनों के आपसी संघर्ष और अन्य घटनाओं ने ग्रामीणों को परेशान किया. इसके अलावा, सुरक्षा बलों की कार्रवाई के बावजूद नक्सलियों ने ग्रामीणों को मुखबिर बताकर उन्हें पीटा या मार डाला. झारखंड के कई इलाकों में नक्सली एक दूसरे के समर्थन में ग्रामीणों को नुकसान पहुँचाते थे, जिससे लोग गांव में रहना छोड़ने लगे थे.
नक्सलियों की हिंसा और उत्पीड़न:
2004-05 के बाद नक्सलियों की हिंसा और भी बढ़ गई. नक्सल संगठन रात में गांवों में ठहरते थे और वहां के घरों से खाना मांगते थे. बूढ़ापहाड़ और बिहार सीमा के पास माओवादियों की संख्या कम होने के बाद, वे बच्चों को अपने दस्ते में शामिल कर लेते थे. जिन गांवों में नक्सली रुकते थे, वहां से बाहर जाने वाले लोगों को पुलिस का मुखबिर बताकर पिटाई की जाती थी. 2014-15 के बाद बूढ़ापहाड़ के इलाकों में माओवादियों ने बड़ी संख्या में बच्चों को अपने दस्ते में भर्ती किया.
नक्सल विरोधी अभियान और सुरक्षा बलों की कार्रवाई:
2015-16 के बाद नक्सल विरोधी अभियान तेज हुआ. पुलिस और सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के गढ़ों में योजनाबद्ध तरीके से काम करना शुरू किया. नक्सलियों की सप्लाई लाइन को बाधित करने के लिए पिकेट स्थापित किए गए. बूढ़ापहाड़ से छकरबंधा तक माओवादियों के रेड कॉरिडोर पर पिकेट लगाए गए, और 500 से अधिक जवानों को तैनात किया गया. जिन गांवों में नक्सलियों का ठिकाना था, वहां पिकेट बनाए गए. 2021-22 तक पलामू में 17, गढ़वा में 27 और लातेहार में 40 से ज्यादा पिकेट स्थापित किए गए थे. 2022 में बिहार के छकरबंधा और 2023 में बूढ़ापहाड़ पर सुरक्षा बलों ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया, जिसके बाद स्थिति में सुधार हुआ और लोग तेजी से गांव लौटने लगे.