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रांची/डेस्क: आज Supreme Court ने साल 2012 में पुणे में हुए ट्रिपल मर्डर केस में अपना फैसला सुना दिया है. बता दे कि कोर्ट ने मौत की सजा पाए दोषी को बरी कर दिया है. जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने यह फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह परिस्थितिजन्य साक्ष्य का मामला है, जहां अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे अपराध साबित करने में विफल रहा है, इसलिए हमने अपील स्वीकार कर ली है. दोषी विश्वजीत करबा मसलकर ने जुलाई 2019 के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2012 में अपनी मां, पत्नी और दो साल की बेटी की हत्या के लिए दोषी को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा था. आरोपी को अपने परिवार के सदस्यों की हत्या का दोषी पाया गया था, कथित तौर पर उनके सहकर्मी के साथ उसके विवाहेतर संबंध पर आपत्ति जताने के बाद. हत्या के बाद, दोषी ने पुलिस को सूचित किया था कि उसके घर में चोरी के दौरान उसकी माँ, पत्नी और बच्चे की हत्या कर दी गई थी. हालाँकि, जाँच के दौरान, पुलिस को घटनाओं का उसका संस्करण अविश्वसनीय लगा, खासकर यह देखते हुए कि घर में किसी भी सामान की चोरी या जबरन प्रवेश का कोई सबूत नहीं था. इसके अलावा, पुलिस को यह भी संदिग्ध लगा कि पड़ोसी फ्लैट में रहने वाले एक बुजुर्ग व्यक्ति को चोटें आई थीं.
पुलिस को आखिरकार पता चला कि आरोपी ने खुद अपने बुजुर्ग पड़ोसी को घायल कर दिया था ताकि वह हत्या की शिकायत न कर सके. उच्च न्यायालय ने इसे एक क्रूर हत्या माना और इस प्रकार निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सज़ा की पुष्टि की. अदालत ने पाया कि यह मामला "दुर्लभतम में से दुर्लभतम" श्रेणी में आता है. हालाँकि, इसने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 415(1) के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपील के निपटारे तक अपने फैसले पर रोक लगा दी.