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रांची/डेस्क: कल तक जो ग्रामीण महिलाएं झाड़ू-बर्तन जैसे घरेलू काम करती थीं, आज वहीं महिलाएं ग्रामीण उद्यमी बनकर अपने परिवार को आर्थिक रूप से सहारा दे रही हैं. उर्मिला देवी की कहानी भी कुछ इस तरह ही है, आज आजीविका के विभिन्न साधनों से जुड़कर लगभग 35 हजार की मासिक आमदनी कर रहीं है. उर्मिला गिरीडीह जिला के जमुआ प्रखण्ड की रहने वाली है जो की एक आकांक्षी प्रखण्ड भी है और प्रखण्ड अंतर्गत कई ग्रामीण विकास की योजनाओं का क्रियान्वयन कर ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार करने का प्रयास किया जा रहा है. उर्मिला भी सखी मण्डल की सहयोग से मिले ऋण एवं प्रशिक्षण से आज अपना फोटो स्टूडियों-सह-फोटो स्टेट का दुकान चला रही है साथ ही कृषि एवं सिलाई का भी कार्य किया करती है.
35,000 रुपये तक की आमदनी
उर्मिला बताती हैं, "मैं फोटो स्टेट, फोटो स्टूडियो और मशरूम उपजाने इन सारे कामों को कर रही हूं. साथ ही साथ सिलाई भी करते आ रही हूं. 5 अन्य महिलाओं को भी रोज़गार दिया है और सभी मिलकर पेटीकोट सिलने का काम करते है. जिसकी बिक्री हम प्रखण्ड के लोकल बाज़ार में करते हैं और उससे अच्छी आमदनी भी कर लेते हैं. आज मुझे कुल मिलाकर फोटो स्टूडियों, फोटो स्टेट, मशरूम उपजाने का काम और सिलाई करके लगभग 35,000 रुपये तक की आमदनी हो जाती है."
घर-घर जा कर ग्रामीण महिलाओं को कर रही जागरूक
उर्मिला की जिंदगी हमेशा से ऐसी नहीं थी, शादी के बाद ससुराल आते ही आर्थिक उलझनों में उलझ कर रह गई. सिर्फ पति के कमाई से पूरे 15 लोगों के परिवार का भरण- पोषण हुआ करता था. उर्मिला के सपने बड़े थे, पढ़ी-लिखी भी थी लेकिन कोई सहारा नजर नहीं आ रहा था जिसके बदौलत वह अपने परिवार को गरीबी की इस दलदल से बाहर निकाल सके. वर्ष 2016 में उम्मीद की किरण लेकर गाँव में स्वयं सहायता समूह गठन करने सीआरपी दीदियों का समूह आया, उनके द्वारा घर-घर जा कर ग्रामीण महिलाओं को जागरुक किया गया. उर्मिला भी लक्ष्मी आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ गई.
गांव में फोटो स्टेट की दिक्कत को देखते हुए फोटो स्टेट की दुकान खोली
उर्मिला ने गाँव में फोटो स्टेट की दिक्कत को देखते हुए फोटो स्टेट की दुकान खोलने की योजना बनाई, और अपने सखी मंडल से 15,000 रुपये की ऋण राशि ली और कुछ पूंजी घर से लगाकर एक डेस्कटॉप कम्प्यूटर और एक फोटो स्टेट मशीन खरीदी लिया. पढ़ी लिखी होने के साथ- साथ टेक्रोलॉजी की समझ रखने वाली उर्मिला ने गाँव में आधार बनाने तथा फोटो कॉपी करने का काम शुरू किया. इस दुकान से उन्हें अच्छी आमदनी होने लगी और ससमय समूह से लिया हुआ ऋण भी चुका दिया.
...और बढ़ने लगी आमदनी
उर्मिला अपनी आजीविका से खुश तो थी पर अब वह अपने रोज़गार को बढ़ाना चाहती थी जिसके लिए उन्होंने समूह से फिर 5000 रुपये कर्ज के रूप में लिया और मशरूम उपजाने का काम करने लगी. उससे उनकी आमदनी और बढ़ने लगी जिससे अब उर्मिला अपने परिवार को सुचारू रूप से चलने में अपने पति की सहायता करने लगी.
स्वरोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर बनी
उर्मिला राउत सक्षम होने के साथ ही एक सक्रीय महिला भी हैं, जिन्हें अपनी आजीविकाओं को बढाने का अवसर छोड़ना पसंद नहीं था और जब उन्हें समूह के माध्यम से मोमबत्ती बनाने और सिलाई के प्रशिक्षण के बारे में पता चला तो उन्होंने बिना देर किये खुद को इस प्रशिक्षण में एनरोल करवा लिया. प्रशिक्षण मिलते हीं उर्मिला सिलाई और मोमबत्ती बनाने का भी कार्य करने लगी. उर्मिला समूह की मदद से स्वरोजगार से जुड़कर आज आत्मनिर्भर हैं और औरों के लिए एक रोल मॉडल भी है.