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रांची/डेस्क: कहा जाता है कि जिसका कोई नहीं होता है उसके भगवान भोलेनाथ होते है. इसलिए शायद यही कारण है कि भूत और प्रेतों को भी भगवान भोलेनाथ अपने शरण में रखते है. मगर क्या आप जानते है भोलेनाथ अपने हाथ में त्रिशूल-डमरू, सिर पर चंद्रमा, गले में नाग और जटा में गंगा क्यों धारण करते है ? आइए आज इन्हीं पौराणिक कथाओं में वर्णित रहस्यों के बारे में जानते है.
भगवान शिव ने इसलिए धारण की थी गंगा
कथाओं में कहा गया है कि अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए महाराज भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया. मां गंगा इससे प्रसन्न हुई और पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हो गईं. मगर उन्होंने भागीरथ से कहा कि उनका वेग पृथ्वी सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जाएगी. भागीरथ ने यह सुनकर भगवान भोलेनाथ की आरधना की. इसके बाद भगवान शिव उनकी पूजा से प्रसन्न हुए और भागीरथ को वरदान मांगने को कहा. इसके बाद भागीरथ ने अपनी मनोरथ कही. फिर जैसे ही गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई भगवान भोलेनाथ ने उनका अभिमान चूर करने के लिए अपनी जटाओं में उन्हें कैद कर लिया. हालांकि माफी मांगने के बाद भोलेनाथ ने गंगा को मुक्त कर दिया.
भगवान शिव ने शीश पर क्यों धारण किया था चंद्रमा
भगवान भोलेनाथ के शीश पर चंद्रमा धारण करने को लेकर शिव पुराण में कथा मिलती है. कथा के अनुसार अपनी 27 कन्याओं का विवाह महाराज दक्ष ने चंद्रमा के साथ किया था. मगर चंद्रमा रोहिणी से अत्यधिक प्रेम करते थे. इसकी शिकायत दक्ष की पुत्रियों ने की. फिर दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रसित होने का श्राप दिया. चंद्रमा ने इससे बचने के लिए भगवान भोलेनाथ की पूजा की. चंद्रमा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उनके प्राणों की रक्षा की. इसके साथ ही चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया. मगर आज भी चंद्रमा के घटने-बढ़ने का कारण महाराज दक्ष का श्राप ही माना जाता है.
माहदेव के त्रिशूल धारण करने का रहस्य
पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि सृष्टि के आरंभ से ही भगवान भोलेनाथ के हाथों में त्रिशूल का जिक्र मिलता है. कहा जाता हैं कि जब भगवान भोलेनाथ प्रगट हुए तो उनके साथ ही तम, अरज और असर ये तीन गुण भी उत्पन्न हुए. यही तीन गुण त्रिशूल के रूप में परिवर्तित हुए. क्योंकि सामंजस्य बनाए रखना इन तीनों गुणों में बेहद आवश्यक था. इसलिए भगवान भोलेनाथ ने इन तीनों गुणों को त्रिशूल के रूप में धारण किया.
भोलेनाथ के डमरू का धारण करने का रहस्य
पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि जिस तरह से सृष्टि में सामंजस्य बनाए रखने के लिए असर, तेज और तम गुण को भगवान भोलेनाथ ने त्रिशूल रूप में धारण किया था. ठीक वैसे ही उन्होंने डमरू का धारण सृष्टि के संतुलन के लिए किया था. कहा जाता है कि जब देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ तो उन्होंने वीणा के स्वरों से सृष्टि में ध्वनि का संचार किया. मगर ऐसा कहा जाता है कि वह ध्वनी सुर और संगीत हीन थी. फिर भगवान भोलेनाथ ने नृत्य किया और 14 बार डमरू बजाया. ऐसी मान्यता है कि संगीत के धुन और ताल का जन्म डमरू की उस ध्वनी से ही हुआ. इसके साथ ही डमरू को ब्रह्मदेव का स्वरुप भी माना जाता है.
इसलिए नागराज वासुकी को भोलेनाथ ने किया था धारण
भगवान भोलेनाथ के गले में लिपटे नाग को देख कर आपको यकीनन ही यह ख्याल आता होगा कि भगवान भोलेनाथ ने नाग को अपने गले में स्थान क्यों दिया हैं ? पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि नागराज वासुकी भगवान भोलेनाथ के परम भक्त थे. नागराज वासुकी सदैव ही उनकी भक्ति में लीन रहते थे. जब सागर मंथन का कार्य हुआ तो नागराज वासुकी ने रस्सी का काम किया. भगवान भोलेनाथ उनकी भक्ति को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और वासुकी को अपने गले से लिपटे रहने का वरदान दिया. नागराज वासुकी इस तरह अमर भी हो गए.
भगवान भोलेनाथ इसलिए लगाते हैं भस्म
भगवान भोलेनाथ नाग, चंद्रमा, त्रिशूल की ही तरह शरीर पर भस्म भी लगाते है. इसको लेकर मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ को मृत्यु का स्वामी माना गया है. शव के जलने के बाद भोलेनाथ बची हुई भस्म को धारण करते है. इस प्रकार भोलेनाथ भस्म लगाकर संसार को यह संदेश देते है कि हमारा शरीर नश्वर है और इसी भस्म की तरह मिट्टी में मिल जाएगा. इसलिए अपने शरीर पर हमें गर्व नहीं करना चाहिए.