पत्नी से मिलने साइकल से ही स्वीडन निकल पड़े डॉ. प्रद्ययुम कुमार महानन्दिया
न्यूज11 भारत
रांची: प्यार वाकई में कमाल की चीज़ है. कहते है ना प्यार इंसान से कुछ भी करा सकती है. आज आप लोगों के लिए हम लेकर आए हैं एक रियल लव स्टोरी. जिसमें प्रेमी अपने प्यार के लिए साइकल से स्वीडन तक का सफर तय कर लिया. यकीनन यह बहुत कमाल की और दिलचस्प कहानी है. इस लव स्टोरी में मुख्य किरदार एक साइकल है जिसकी वजह से यह लव स्टोरी मुकम्मल हो पायी. तो कहानी शुरू होती है उड़ीसा के एक ऐसे शख्स से जो उड़ीसा के बुनकर दलित परिवार से संबंध रखते थे. प्रद्ययुम कुमार महानन्दिया का जन्म 1949 में अंगुल जिले के अठमालिक उप-मंडल के कंधापाड़ा गांव में हुआ था.
बचपन से उनको कला से बहुत लगाव था और वह कला में पढ़ाई करना चाहते थे. मगर पैसों की तंगी उनके रास्ते में कांटा बन गई जिसके चलते उनका एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन होने के बावजूद वह एडमिशन नहीं ले पा रहे थे. मगर वो कहते हैं ना कि “अगर किसी चीज़ को पूरी शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात आपको उससे मिलाने में जुट जाती है.” उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उनकी काबिलियत को देखते हुए उड़ीसा सरकार ने उनकी मदद की और 1971 में दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स में उन्हें पढ़ाई का मौका मिला ही गया. वे अपना खर्च निकलने के लिए अक्सर वो शाम को दिल्ली के कनॉट प्लेस पर कुछ लोगों के पोर्ट्रेट बनाया करते थे जिससे उन्हें अपने खर्चे के लिए पैसे मिल जाया करते थे.
शॉर्लेट के साथ बढ़ती प्रेम कहानी
डॉ. प्रद्ययुमकुमार महानंदिया एक बेहतरीन कलाकार होने के साथ-साथ उन्होंने खुद को एक सच्चा प्रेमी भी साबित किया है. यह किस्सा साल 1975 का है. 1975 में उनकी मुलाकात शार्लोट वॉन शेडविन से हुई थी. प्रद्ययुम जब शेडविन की तस्वीर बना रहे थे तब दोनों को एक दूसरे को प्यार हो गया. एक को उसकी सुंदरता पसंद आई तो दूसरे को उसकी सादगी. इसके बाद दोनों एक-दूसरे को प्यार करने लगे. शॉर्लेट और प्रद्ययुमने ने शादी करने का फैसला किया. प्रद्ययुमने शार्लोट को अपने घर वालों से मुलाकात कराई और फिर शादी की. जैसे ही शेडविन को वापस अपने देश लौटने का समय नजदीक आया उसने अपने पति को भी साथ चलने के लिए कहा. प्रद्ययुमको पहले अपनी पढ़ाई पूरी करनी थी. उसने उससे जल्द मिलने का वादा किया. करीब डेढ़ साल तक दोनों पत्रों के जरिए संपर्क में रहते थे.
शॉर्लेट से मिलने साइकल से ही स्वीडन निकल पड़े
आखिरकार, डेढ़ साल बाद 1977 में, उसने शेडविन से मिलने स्वीडन जाने का फैसला कर लिया लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह हवाई जहाज का टिकट ले पाते. ऐसे में उन्होंने अपना सब सामान बेच दिया जिससे उन्हें उसके 1200 रूपये मिले. फिर एक नए मोड़ की शुरुआत होती है. उन्होंने उन 1200 रूपये में से 80 रूपये से एक पुरानी साइकिल खरीदी और अपने 6000 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबे सफर पर बिना कुछ सोचे-समझे इतना लंबा सफर साइकिल से तय करने वाले थे. उनके पास सिर्फ स्लीपिंग बैग था.
अपने इस प्यार से मिलने के रास्ते पर उन्हें बहुत-सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. रास्ते में कभी- कभी साइकिल खराब हो जाती थी तो कभी कई दिनों तक बिना भोजन के रहना पड़ता था. वे इसी बीच स्केच बनाते जिसके बदले उन्हे खाना और किसी और के घर में रूक जाते थे. कभी- कभी कई रातें खुले आसमान में बाहर सोना पड़ता था. वह ईरान, तुर्की, अफगानिस्तान, बुल्गारिया जर्मनी, ऑस्ट्रिया जैसे देशों से गुजरते हुए पांच महीने के लंबे सफर के बाद आखिरकार स्वीडन की सीमा पर पहुंच गए.
जानिए, क्या हुआ स्वीडन पहुंचने के बाद
इमीग्रेशन वीजा ना होने से उनको वहीं पर रोक दिया जाता है. अपनी शादी का सर्टिफिकेट दिखाने के बाद भी स्वीडिश अधिकारियों ने अंदर जाने की अनुमति नहीं दी. अधिकारियों भी सोच में पड़ गए कि यकीन नहीं हो रहा था साइकिल के जरिये कोई व्यक्ति भारत से स्वीडन तक कैसे पहुंच सकता है? वह अपनी और शॉर्लेट शादी की कुछ तस्वीरें देखने के बाद अधिकारियों ने शॉर्लेट से संपर्क किया और कन्फर्मेशन के बाद ही प्रद्ययुम को सीमा में दाखिल होने की इजाज़त दी. शॉर्लेट अपने पति के पहुंचने की बात सुनकर शॉर्लेट खुद प्रद्ययुम को लेने आईं. बता दें, स्वीडन पहुंचने से पहले प्रद्ययुमको इस बात का ज़रा सा भी अंदाजा नहीं था कि उनकी शादी स्वीडन की एक रॉयल परिवार की अमीर लड़की से हुई हैं.
शॉर्लेट का सच जानने के बाद प्रद्ययुम के मन में कई सवाल आने लगे लेकिन पत्नी से मुलाकात के बाद सबकुछ समाप्त हो गया. साल 1989 में दोनों ने स्वीडिश कानून के हिसाब से दोबारा शादी की. हालांकि, प्रद्ययुम के लिए वहां सब कुछ नया था लेकिन उनकी पत्नी ने इसे समझने और वहां की लाइफ स्टाइल में ढलने की पूरी मदद की.
साइकल के बिना ये लव स्टोरी भी अधूरी रह जाती
बता दें, उन्होंने 22 जनवरी 1977 को अपनी यात्रा शुरू की और वह प्रतिदिन लगभग 70 किमी साइकिल चलाते थे. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में प्रद्ययुम ने बताया था कि 'मेरी कला मेरे काम आई. मैंने लोगों की तस्वीरें बनाईं और उन्होंने मुझे कुछ पैसे दिए. किसी ने खाना तो रहने के लिए जगह दिया'. बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा था, मुझे यूरोपी संस्कृति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी यह मेरे लिए बिल्कुल नया था, लेकिन शेडविन ने हर कदम पर मेरा साथ दिया. मेरे मन में अभी भी उसके लिए वही प्यार है जो 1975 में था.
उन दोनों की शादी के 40 साल से भी अधिक समय हो गया है और इनके दो बच्चे भी हैं. प्रद्ययुम स्वीडन के नागरिक हैं और वहां स्वीडिश सरकार के कला और सांस्कृतिक विभाग के सलाहकार के रूप में काम करते हैं. दुनिया भर में आज भी उनकी पेंटिंग की प्रदर्शनी लगती रहती है. साथ ही प्रतिष्ठित यूनिसेफ ग्रीटिंग कार्ड में भी उनकी पेंटिंग को जगह मिल चुकी है. आपको बता दें, उनकी यह कहानी इतनी दिलचस्प है कि इसपर किताब पहले ही लिखी जा चुकी है. इस कहानी की रियल हीरो एक पुरानी साइकल है. यदि उसका साथ नहीं होता तो यह लव स्टोरी भी शायद अधूरी ही रह गई होती.