प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/ डेस्क: टाटीझरिया प्रखंड क्षेत्र में जंगलों को बचाने और पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने के लिए 7 अक्टूबर 1995 में शुरू की गई वृक्षाबंधन कार्यक्रम ने इलाके में लोगों की सोच को बदल दिया हैं. जिसके सार्थक परिणाम भी दिखने लगे हैं. इससे ना सिर्फ जंगलों की रक्षा संभव हो पाई बल्कि जंगलों का दायरा भी बढ़ा हैं. 1990 के शुरूआती वर्षों में ग्रामीण हाथियों के उत्पात से परेशान थे. इसका कारण यह था कि जंगल उजड़ने लगे थे. ऐसे में टाटीझरिया के बेरहो निवासी पर्यावरणविद महादेव महतो ने मानव हाथी द्वन्द को कम करने एवं धार्मिकता से जोडकर वृक्ष रक्षाबंधन के माध्यम से अवकृष्ट हो रहे वनों को संरक्षित एवं संवर्धित करने का संकल्प लिया. इस पर सबसे पहले 7 अक्टूबर, 1995 को दूधमटिया वन का रक्षाबंधन कर वन बचाने का संकल्प लिया गया.
दूधमटिया के ही तर्ज पर टाटीझरिया के 16 इलाकों में वृक्षाबंधन कर जंगल बचाने के संकल्प को दुहराया जाता हैं. इसमें 11 जनवरी को आदिवासी टोला खैरिका, 15 जनवरी को बेडमक्का के घोडबिगवा जंगल, 5 फरवरी को धरमपुर के कोंडरा टांड-चेचाकी जंगल, 13 मार्च को जुल्मी के सियारी जंगल, 30 अप्रैल को बौधा का ढौंठवा जंगल, 9 मई को होलंग का मठवा जंगल, जन्माष्टमी के मौके पर झरपो कारीझरना चट्टान धाम में, 11 अगस्त को अमनारी जंगल, 6 अक्टूबर को तेलियाबाट जंगल, 7 अक्टूबर को दूधमटिया जंगल, 12 अक्टूबर को कोल्हू के कोन्डरा वन, 19 अक्टूबर को बंशी पेसरा गड्ढा जंगल, 31 अक्टूबर को पलटन टोंगरी मूरकी, 7 नवंबर को बेडम का रखौतिया वन, 15 नवंबर को भलुआ जंगल, 31 दिसंबर को डुंगो का रखौतिया एवं बेलतोरवा जंगल में प्रत्येक वर्ष वन महोत्सव का वर्षगांठ मनाया जाता हैं. इससे हजारों हेक्टेयर रकबा वन क्षेत्र को बचाने में सफलता साबित हुई हैं. इसमें सबसे प्रोत्साहित करनेवाला यह तथ्य रहा है कि ग्रामीणों की धार्मिक भावना को वनों से जोडकर उजडे हुऐ प्राकृतिक सखुआ के जंगलों को घने जंगलों में तब्दील करना संभव हुआ हैं.