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रांची/डेस्क: नहाय-खाय के साथ कल (17 नवंबर) से छठ महापर्व शुरु हो चुका है. बिहार-झारखंड के लोगों के लिए यह पर्व काफी महत्व रखता है. आज छठ पूजा का दूसरा दिन है. खरना के नाम से जाना जाता है, यह एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि भक्त सख्त उपवास रखते हैं. वे पूजा-अर्चना करने और खीर, फल और पूड़ी जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थ तैयार करने के बाद ही अपना उपवास तोड़ते हैं. मानना है कि यह अनुष्ठान उनकी इच्छाओं को पूरा करने में मदद करता है और समृद्धि और सौभाग्य लाता है. इस तरह से छठ पूजा चार दिनों तक चलती है, जिसको श्रद्धालु काफी उत्साह से करते हैं.
खरना का प्रसाद
इस दिन छठी मैया के लिए प्रसाद तैयार किया जाता है. खरना के दिन महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती हैं. शाम के समय मिट्टी के नए चूल्हे पर गुड़ की खीर प्रसाद के रूप में बनाई जाती है. खरना का प्रसाद बिल्कुल साफ सुथरे तरीके से तैयार करना चाहिए. इसी प्रसाद को व्रती ग्रहण करते हैं. इस खीर को खाने के बाद 36 घंटे का उपवास शुरू होता है. तीसरे दिन शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.
प्रसाद ग्रहण भी करते हैं विशेष नियम के साथ
खरना के प्रसाद विधि-विधान और पूरे नियम के साथ ग्रहण किया जाता है. इसके लिए एक विशेष नियम है. जैसा कि खरना में गुड़ और चावल की बनी खीर का भगवान को भोग लगाने के बाद सबसे पहले छठ व्रती दिन भर के व्रत के बाद इस प्रसाद का ग्रहण करती हैं. इस दौरान घर के सभी लोगों को बिल्कुल शांत रहना होता हैं. प्रसाद ग्रहण करते वक्त छठ व्रती के कान में जरा भी आवाज चली जाए तो वो खाना बंद कर देते हैं. छठ व्रती जब प्रसाद ग्रहण कर लेती हैं, उसके बाद ही प्रसाद का वितरण परिवार और अन्य लोगों में किया जाता है.
इस दिन इन बातों का रखें ध्यान
मान्यताओं के अनुसार, खरना का प्रसाद बिल्कुल साफ सुथरे तरीके से तैयार करना चाहिए. छठ पूजा का व्रत सभी व्रतों में सबसे कठिन माना जाता है. जो प्रसाद तैयार किया जाता है उसे भूल कर भी बनाते समय चखे नहीं. खरना पूजा के लिए प्रसाद ऐसे स्थान पर तैयार करें, जहां हर दिन खाना नहीं बनता हो. जलाने के लिए गन्ने के सूखे छिलके का इस्तेमाल प्रसाद बनाने के लिए करें. इन दिनों घर में प्याज और लहसुन का इस्तेमाल करना बंद कर दें. व्रती पलंग या चारपाई पर ना सोएं. जमीन पर कपड़ा बिछाकर ही सोएं. जो लोग इस व्रत को रखते हैं उन्हें कुछ भी खाने पीने से बचना है. नियम के अनुसार, सूर्य को अर्घ्य दिए बिना किसी भी चीज का सेवन करने से व्रत खत्म हो जाता है.
छठ पर्व की मान्यता व महत्व
आचार्य शिवम शुक्ला बताते हैं कि यह व्रत संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाता है. यह व्रत बहुत कठिन है. व्रत को कड़े नियमों का पालन करते हुए 36 घंटे तक रखा जाता है. इस व्रत को करने से महिलाओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. छठ पर्व षष्ठी तिथि से दो दिन पहले यानी चतुर्थी से नहाय-खाय के साथ शुरू होता है और सप्तमी तिथि को समाप्त होता है. आचार्य शिवम शुक्ला बताते हैं कि भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण ने स्वयं द्रौपदी को कठोर व्रत रखने को कहा था. द्रौपदी ने पूरे विधि-विधान से छठी मैया की पूजा करके यह कठिन व्रत किया था और इसी व्रत के कारण पांडवों को राजपाठ मिला था. इस पर्व में मुख्य रूप से माली सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है.
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, लोग कार्तिक महीने के दौरान त्योहार मनाते हैं, जो अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है. इस बार महापर्व छठ 17 नवंबर से शुरू और 20 नवंबर को समाप्त होगा. छठ के पहले दिन, जो चतुर्थी तिथि है, लोग अनुष्ठान करते हैं 'नहाय खाय' के बाद दूसरे दिन खरना होता है, जो पंचमी तिथि को पड़ता है. छठ का अंतिम दिन, सप्तमी तिथि, सुबह आयोजित उषा अर्घ्य समारोह के साथ समाप्त होती है, जो छठ पूजा उत्सव के अंत का प्रतीक है. इस त्योहार के दौरान, भक्त नदी में पवित्र स्नान करना, उपवास करना और सूर्य देव को प्रार्थना करना सहित विभिन्न अनुष्ठान करते हैं. माना जाता है कि छठ पूजा से सूर्य देव को प्रसन्न करने और समृद्ध जीवन के लिए उनका आशीर्वाद लेने का एक बेहद शुभ समय है.