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रांची/डेस्क: अपने गांव-प्रखण्ड ही नहीं, पूरे जिला के लिए प्रेरणा स्रोत है दुमका ज़िले के जरमुंडी प्रखंड की द्रौपदी देवी. कभी आर्थिक तंगी से घिरी लाचार द्रौपदी आज अपने मेहनत, लगन और कुछ कर दिखाने के जज्बे के कारण अच्छी आमदनी कर रहीं है और पूरे परिवार का भरण-पोषण कर पा रहीं है.
द्रौपदी के इस सफर में साथ दिया 'गोमाता आजीविका सखी मंडल' ने. द्रौपदी अपने समूह को अपनी माँ के समान मानती है और कहती है कि "समूह ने हमें इज्जत से जीना सिखाया है, एक माँ के जैसे हर-एक जरूरतों को पूरा करने में निःस्वार्थ मदद की है. आज मैं जो कुछ भी हूँ, मेरी जो पहचान है सब समूह के बदौलत ही संभव हो पाया है."
स्वयं सहायता समूह में जुड़ने से पहले द्रौपदी को खेती-बारी के लिए पूंजी जुटाना भी मुश्किल लगता था, लेकिन समूह में जुड़कर उन्होंने साप्ताहिक बचत करना सीखा, धीरे-धीरे उन्हें समझ आया कि कुछ करना है तो ऋण लेने के डर से जीतना पड़ेगा, और उन्होंने छोटे-छोटे ऋण लेकर खेती बारी में पूंजी लगानी शुरू कर दी. आजीविका कृषक सखी से खेती-बाडी करने के वैज्ञानिक विधि एवं तकनीकों की जानकारी मिली, और फिर क्या था, मुनाफा बढ़ने लगा साथ ही ससमय वह समूह को ऋण वापसी भी करने लगी.
समूह ने न सिर्फ उन्हें कृषि संबंधित प्रशिक्षण और वित्तीय सेवाएं प्रदान की बल्कि उन्हें उनके अंदर की क्षमता का भी एहसास कराया. जीवन को एक अलग स्तर पर ले जाने के लिए उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का सोचा, लेकिन फिर पूंजी की समस्या उनके आड़े आने लगी. स्वयं सहायता समूह की बैठक में ही द्रौपदी ने अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का जिक्र किया, द्रौपदी ने समूह की सदस्यों को बताया कि वह मसाला पीसने और बिक्री करने का व्यवसाय करना चाहती हैं जिसके लिए उन्हें एक मसाला पीसने वाली मशीन खरीदने की जरूरत है.
स्वयं सहायता समूह से द्रौपदी को 30 हजार रु का ऋण मिला, जिससे उन्होंने मसाला पीसने की मशीन की खरीदी, और बाकी जमा किए पूंजी से खड़ा मसाला खरीदा. कुछ ही महीनों में द्रौपदी का कारोबार चल पड़ा, ग्राहक जुड़ने लगे और आमदनी बढ़ने लगी. द्रौपदी ने धीरे-धीरे समूह से लिया ऋण चुकता कर दिया.
अपने रोज़गार की वृद्धि के लिए उन्होंने एक बार फिर अपने समूह से 50,000 ऋण लेकर एक और मशीन खरीदी. द्रौपदी एक मशीन से घर में मसाला पीसती और दूसरे मशीन को हाट बाज़ार में भाड़े के ऑटो में लेकर जाती थी और बाजार में ताजा मसाला पीसकर बेचती थी. कई किस्तों में उन्होंने समूह से लिया 50,000 रु का भी ऋण चुकता कर दिया. द्रौपदी को भाड़े के ऑटो पर अपना मशीन ले जाना अब कुछ ठीक नहीं लगने लगा और उन्होंने अपने समूह से 1.5 लाख रुपये ऋण लेकर और खुद से पैसे जोड़कर अपना एक ऑटो खरीदा. जिसमें उन्होंने एक मशीन को सेट कर दिया और लोकल हाट बाजार में पति के साथ में जाकर मसाला बेचने लगी. ऐसा करने से द्रौपदी की आमदनी में काफी इजाफा हुआ और उन्होंने अपनी बढ़ी हुई आमदनी से 8 महीने में समूह द्वारा लिए गए ऋण को चुकता कर दिया.
आगे द्रौपदी देवी ने अपने ग्राम संगठन में एक प्रस्ताव रखा जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें बाज़ार में दुकान खोलनी है जिसके लिए 4,00,000 (चार लाख) रुपये ऋण की जरूरत है. ग्राम संगठन में द्रौपदी की लोन रीपेमेंट के इतिहास को देखते हुए प्रस्ताव पारित कर संकुल संगठन में जमा किया जिसमें संकुल संगठन द्वारा ग्राम संगठन में उनके लिए चार लाख की ऋण स्वीकृति कर दी गई.
आज द्रौपदी और उनके पति मिलकर इस बिजनेस को काफी अच्छे से चला रही हैं दुकान पर द्रौपदी देवी बैठती है और उनके पति अपने ऑटो में मशीन को लेकर हाट बाजार में जाते हैं.
इस बिज़नेस से द्रौपदी के जीवन में काफी बदलाव आयें हैं. आर्थिक रूप से उन्हें बहुत लाभ भी हुआ है. उनकी सालाना आय 2-2.5 लाख रुपये हो गई है. आज उनके बच्चे अच्छे स्कूल जा रहे है और पूरा परिवार खुशहाल जीवन जी रहा है.
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