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रांची/डेस्क: हमारा देश आज 78वां बार स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. आज आजादी का दिन, हमारा भारत के लिए बहुत गर्व की बात है. आज ही के दिन हमारा भारत अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ था. हर बार की तरह इस साल भी पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा. आज के दिन प्रधानमंत्री लाल किला में राष्ट्रगान के साथ तिरंगा फहराया. आज हर स्कूल व कॉलेज में झंडा फहराने क बाद देश भक्ति गीत और नृत्य के साथ स्वतंत्र दिवस मनाते हैं. साथ ही लोग घरों व मोहल्लों में भी तिरंगा लहरा कर 'जय हिन्द' का नारा लगाते हुए स्वतंत्र दिवस को बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं.
वैसे बताते चलें कि हर एक हिंदुस्तानी ऐतिहासिक चीज़ों को जानने के लिए बहुत उत्सुक रहता है. हमारे मन में देश की आजादी के बाद की, और आजादी के पहले के अनुभवों को लेकर बहुत सवाल है, आखिर आजादी के बाद का समां क्या होगा. आजादी के एक दिन पहले क्या हुआ होगा, पहली बार लाल किला में झंडा फहराते देख लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी, और आजादी के बाद की पहली सुबह लोग क्या महसूस कर रहे होंगे और तो और हमारे पूर्वजों ने आजादी मुल्क में सांस ली होगी, कैसे पूरी रात जागकर लोगों ने उस पल को जिया होगा बल्कि देखा भी होगा. तो आइए हम 14-15 की रात और पहली सुबह के बारे में विस्तार से जानते हैं.
मशहूर लेखक डोमिनिक लैपीयरे और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब 'फ्रीडम एट मिडनाइट' में 14 अगस्त 1947 के ऐतिहासिक दिन का चित्रण करते हुए लिखते हैं- सैन्य छावनियों, सरकारी कार्यालयों, निजी मकानों आदि पर फहराते यूनियन जैक को उतार दिया जाने लगा. 14 अगस्त को जब शाम ढला तो देश-भर में यूनियन जैक ने ध्वज -दण्ड का त्याग कर दिया, ताकि वह भारतीय इतिहास के भूत-काल की एक चीज बनकर रह जाए. समारोह के लिए आधी रात को धारा सभा भवन पूरी तरह से तैयार किया गया था. जिस कक्ष में भारत के वायसरायों की भव्य ऑयल-पेंटिंग्स लगी रहा करती थीं, वहीं अब अनेक तिरंगे झंडे शान से लहरा रहे थे.'
लैपीयरे और कॉलिन्स लिखते हैं- 14 august की सुबह से देश में ख़ुशी की लहर थी, चारों तरफ से लोग दिल्ली के बाशिंदे घरों से निकलकर कारों, बसों, बैल गाड़ियों, इत्यादि से दिल्ली के इंडिया गेट पहुंच रहे थे. दूर देहात के ऐसे लोग भी आए जिन्हें गुमान तक नहीं था कि भारत देश पर अब तक अंग्रेजों का शासन था और अब नहीं है. देहात से आए बहुत से लोग पूछ रहे थे कि यह धूम-धड़ाका काहे का है? तो लोग बढ़-बढ़ कर बता रहे थे- अरे, तुम्हे नहीं मालूम, अंग्रेज जा रहे हैं. आज नेहरूजी देश का झंडा फहराएंगे. हम आजाद हो गए. वहां जाते ही लोग एक दूसरे को शुभकामनाएं दे रहे थे और हर तरफ राष्ट्रगान की धुन सुनाई पड़ रही थी.'
लोग अपने बच्चों को आजादी का मतलब अपने तरीकों से समझा रहे थे. किसी का कहना था अब अंग्रेजों का शासन नहीं होगा, और अब हमें कहीं जाने पे रोक नहीं है. ग्वालें0 अपनी पत्नियों को बोल रहे थे अब हम आज़ाद हो गए. अब हमारे पास ज्यादा दूध होगा. जब एक भिखारी आज़ादी के समारोह में समिलित होने गया तो वहां के सिपाही ने पूछा' तुम्हारा आमंत्रण पत्र कहां है?' उसने जवाब में कहा 'आमंत्रण पत्र?' अब कैसा आमंत्रण पत्र?', हम सब आज़ाद है. अब कोई छोटा और बड़ा नहीं है- सब बराबर है. आज़ादी को लेकर सबकी एक नजरिया थी. सब देखना चाहते थे कि आज़ादी के बाद की जिंदगी में कैसी परिवर्तन आएगी.
मशहूर लेखक राजेंद्र लाल हांडा ने अपनी 'किताब दिल्ली में दस वर्ष' में 1940 से 1950 के बीच की दिल्ली की जिंदगी के बारें में विस्तार से लिखा है. उन्होंने आज़ादी के रात को अपने आंखों से देखा था उसपे आधारित उन्होंने लिखा है. उन्होंने लिखा कि, रात के लगभग 2 बजे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू धारा सभा से निकल कर वायसराय भवन की ओर गवर्नर जनरल को आमंत्रित करने गए. उनके पीछे उत्साह की भीड़ भी पीछे जा रही थी, इतनी भीड़ होने के बावजूद मुश्किल था पता लगाना कि लोग कहां जा रहे हैं.
आजादी की पहली सुबह का ये जश्न आधी रात से ही जारी था. 14-15 अगस्त की आधी रात के जश्न ने लोगों को उत्साहित कर दिया था. उस रात को 'जन गण मन' और 'वंदेमातरम' के राष्ट्रीय गीतों की मधुर ध्वनि पूरे आसमान में गूंज रही थी. उस रात को 'जन गण मन' और 'वंदेमातरम' के राष्ट्रीय गीतों की मधुर ध्वनि कैसी स्वर्गीय सी जान पड़ती थी. नेहरूजी सूती जोधपुरी पायजामे और बण्डी में थे. वल्लभभाई पटेल सफेद धोती में प्रकट हुए थे. अगले दिन यानी 15 अगस्त की सुबह आठ बजे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर यूनियन जैक की जगह भारत का तिरंगा झंडा फहराया.
समारोह को बहुत शानदार तरीके से आयोजित किया गया था. दिल्ली पुराना शहर है. आजादी की पहली सुबह का ये उत्सव रात से ही शुरू था. 14-15 अगस्त की आधी रात के जलसा ने लोगों को उत्साहित कर दिया था. जब 'जन गण मन' शुरू हुआ तो इसकी ललित लय में हजारों सिर मनमोहक हो उठे. किन्तु जैसे ही राष्ट्र गान में पंजाब और सिंध का उल्लेख हुआ एकत्रित भीड़ में सैंकड़ों आदमियों ने सिर उठाकर एक-दूसरे को देखने लगे. वहां उपस्थित जनों को विभाजन की बात याद आ गई जो दूसरी ओर पाकिस्तान नाम के मुल्क के रूप में हो चुकी थी और सरहदों पर हिंसा और बैर शुरू हो चुकी थी.