प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: धर्म के नाम पर होने वाले आयोजनों में अश्लीलता और फूहड़ता के आरोप अक्सर लगाए जाते हैं. इस संदर्भ में हजारीबाग के तकिया मजार के उर्स में चादर पोशी के लिए निकाले गए जुलूस की चर्चा करते हैं. तकिया मजार के उर्स के अवसर पर हजारीबाग के विभिन्न मोहल्लों से चादर पोशी की यात्रा निकाली गई. इस यात्रा में क़रीब 20 मोहल्लों से शामिल होने वाले सभी युवा, जो अधिकतर 20 वर्ष से कम आयु के थे, डीजे के धुन पर जमकर नाच रहे थे. इस तरह का दृश्य देखकर यह समझना कठिन नहीं था कि वे धार्मिक स्थल पर चादर चढ़ाने नहीं बल्कि किसी शादी-ब्याह के बारात में शामिल होने जा रहे हैं. इस परिप्रेक्ष्य में सबसे पहले सवाल उठता है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? सबसे पहले जिम्मेदारी इन बच्चों के माता-पिता पर आती हैं.
बच्चों को धार्मिक आयोजनों के महत्व और उनके अनुशासन की जानकारी देना माता-पिता का कर्तव्य है लेकिन वर्तमान परिदृश्य में ऐसा प्रतीत होता है कि बच्चों को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा हैं. इसके बाद तकिया मजार मैनेजिंग कमिटी की भूमिका पर भी सवाल खड़े होते हैं. अगर इस तरह के आयोजनों में अनुचित गतिविधियां हो रही है, तो मैनेजिंग कमिटी की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस पर सख्त कदम उठाएं लेकिन पिछले चार-पांच वर्षों से यह परंपरा चल रही है और मैनेजिंग कमिटी इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रही हैं. हजारीबाग में सभी मस्जिदों के इमाम का एक संगठन है, जिसका नाम है उलेमाए अहले सुन्नत एजुकेशनल एंड वेलफेयर ट्रस्ट हज़ारीबाग अगर यह संगठन चाहे तो इस नई परंपरा पर संज्ञान लेकर इसे रोकने के लिए कदम उठा सकता हैं. हालांकि, अब तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई हैं. करीब साल भर पहले झारखंड में मुस्लिम संगठनों द्वारा यह ऐलान किया गया था कि जिस मुस्लिम की बारात में नाच-गाना, डीजे, बैंड बाजा और आतिशबाजी होगी. वहां इमाम निकाह पढ़ाने नहीं आएंगे.
इस फैसले का असर यह हुआ कि आज मुस्लिम बारातों में 95 प्रतिशत तक ऐसी गतिविधियां नहीं हो रही हैं. इसी प्रकार चाहे वह जश्ने ईद मिलादुन्नबी का जुलूस हो या उर्स में चादर पोशी के लिए निकाले गए जुलूस, इस पर भी ऐसा ही नियम बनाया जाना चाहिए. इससे इन आयोजनों में होने वाली अश्लीलता और फूहड़ता पर रोक लगाई जा सकेगी. धार्मिक आयोजनों में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने के लिए समुदाय के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी हैं. माता-पिता, धार्मिक संगठनों और मैनेजिंग कमिटी को मिलकर इस दिशा में कार्य करना होगा ताकि धार्मिक आयोजनों की पवित्रता और गरिमा बनी रहे.