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झारखंड » सिमडेगा


सिमडेगा में नदियों का हो रहा चीरहरण, पर्यावरण को पंहुचता नुकसान बजाने लगी है खतरे की घंटी

बालू माफिया धड़ल्ले से कर रहे हैं बालू का अवैध खनन
सिमडेगा में नदियों का हो रहा चीरहरण, पर्यावरण को पंहुचता नुकसान बजाने लगी है खतरे की घंटी

आशीष शास्त्री/न्यूज11भारत


सिमडेगा/डेस्क: सिमडेगा में नदियों से हो रहे बालु का बेतहाशा अवैध खनन अब नदियों के लिए काल बनते जा रहा हैं. जिससे मानव जीवन के लिए एक बडा खतरा मंडराने लगा है. खतरे की ये घंटी और कोई नहीं बालू तस्कर बजा रहा है. सिमडेगा में बालु तस्करों ने नदियों का चीरहरण कर रहे है. कई नदियां बालू विहिन हो गई है. नदियों में बालू नहीं होने से ईको सिस्टम प्रभावित होने लगा है. 


मानव जीवन के लिए ये खतरे की घंटी है. सिमडेगा में सरकारी नियमों को ताक पर रख कर जिस तरह बालू तस्करों के द्वारा नदियों से बालू का अवैध तरीके से दोहन किया जा रहा है. उससे अब नदियां काल की गाल में समाने की सीमा रेखा तक पंहुच चुकी है. नदियां अब खुद अपना अस्तित्व बचाने के लिए बालू को तरसने लगी है. सिमडेगा के पालामाडा नदी आज इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि किस तरह तस्करों ने नदी का चीरहरण कर दिया है.


पालामाडा नदी में हलवाई पुल से तामडा पुल तक चले जाइए. आपको नदी के बीच में हर तरफ मिट्टी, बडे बडे घासों और कुछ पौधों के बीच नदी के अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में लगे कुछ-कुछ बालू नजर आएगें. बालू की मात्र इतनी कि बोरी में भर जाए. बालू के ये कण भी इसलिए बचे हुए हैं कि इसमें मिट्टी के बडे अंश मिले हुए हैं और ये बालु तस्करों के लिए अनुपयोगी थे.


प्रकृति ने हमें नदी दी थी जल के लिए लेकिन बालू के तस्करों ने उसे रूपय कमाने का जरिया बना लिया और अधिक रूपया कमाने की लालच में तस्करों ने नदियों को हीं बालू विहिन बनाते हुए समाज के लिए एक बडा खतरा खड़ा कर दिया है. 


उत्तर और मध्य भारत की अधिकांश नदियों का उथला होते जाना और थोड़ी सी बरसात में उफन जाना, तटों के कटाव के कारण बाढ़ आना और नदियों में जीव-जंतु कम होने के कारण पानी में ऑक्सीजन की मात्र कम होने से पानी में बदबू आना, ऐसे ही कई कारण हैं जो मनमाने तरीके से बालु उत्खनन से जल निधियों के अस्तित्व पर संकट की तरह मंडरा रहे हैं. आज उतर और मध्य भारत के जैसा सिमडेगा में भी नदियों की हालत इन बालू तस्करों के लालच के कारण हो गई है. हालात यह है कि कई नदियों में ना तो जल प्रवाह बच रहा है और ना ही बालू.


सभी जानते हैं कि देश की बड़ी नदियों को विशालता देने का कार्य उनकी सहायक छोटी नदियां ही करती हैं. बीते एक-डेढ़ दशक में देश में कोई तीन हजार छोटी नदियां विलुप्त हो गईं. इसका असल कारण ऐसी मौसमी छोटी नदियों से बेतहाशा बालू को निकालना रहा है. जिसके चलते उनका अपने उद्गम व बड़ी नदियों से मिलन का रास्ता बंद हो गया. देखते ही देखते वहां से पानी रूठ गया. यही हाल सिमडेगा के पालामाडा नदी का होने लगा है. यह नदी बालु के बिना धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोने लगी है. इस नदी में बालु की जगह मिट्टी हर तरफ दिखने लगी है. जिससे नदी कम यह मैदान ज्यादा नजर आने लगी है.


सिमडेगा पर्यावरण विद शंकर सिंह का कहना है कि प्रवाहित नदियों की भीतरी सतह में बालू की मौजूदगी असल में उसके प्रवाह को नियंत्रित करने का काम करते हुए नदी के पानी को शुद्ध रखने के लिए यह छन्ना का काम करती है. यही नहीं बालु नदी में कीचड़ रोकने की दीवार भी होती है. नदियों के तटों तक बालू का विस्तार नदी को सांस लेने में सहयोग करती है. उन्होंने कहा नदी केवल एक बहते जल का माध्यम नहीं होती, बल्कि उसका अपना एक पारिस्थितिकी तंत्र होता है जिसके तहत उसमें पलने वाले जीव, उसके तट के सूक्ष्म बैक्टीरिया सहित कई तत्व शामिल होते हैं और उनके बीच सामंजस्य का कार्य बालू का होता है.


लेकिन सिमडेगा में नदियों की कोख को अवैध और अवैज्ञानिक तरीके से खोदने के चलते यह पूरा तंत्र अस्त-व्यस्त हो रहा है. तभी अब नदी में रेत भी नहीं आ पा रही है, पानी तो है ही नहीं. पर्यावरण विद की माने तो बालु विहिन नदियां ईको सिस्टम को सीधे तौर पर प्रभावित करती है. जिससे जलवायु का उतार चढाव मानव जीवन के लिए खतरा बन जाएगा.


पालामाडा नदी की स्थिति देखने जब हम उसके करीब गए तो नदी के हालात हमारे भविष्य में मंडराते जल संकट की तरफ इशारा करने लगे. हमारे साथ नदी तक गए विज्ञान के शिक्षक अभिषेक रंजन और प्रेम शर्मा ने नदी की हालत देख बहुत अफसोस जताते हुए पैसे के लोभ में बालू तस्करों की कारस्तानी पर हैरान भी हुए. उन्होने कहा कि नदियों में बालू नहीं होगा तो बारिश के लिए जरूरी वाष्पीकरण चक्र पुरी तरह रूक जाएगी. उन्होने कहा नदियों के बालू के नीचे पानी के कण बालु के गर्म होने पर वाष्प बन आसमान तक जाकर बादल का निर्माण करते हैं. बालू नहीं होगा तो यह चक्र रूक जाएगा और बारिश कम होगी जिससे खेती कम होंगे. बारिश नहीं होने से जल श्रोत खत्म हो जाएगें जिससे पेयजल संकट गहराता और खेती नहीं होने से आकाल और भूखमरी की स्थिति पैदा हो जाएगी.


पर्यावरण विद ने भी बताया कि नदियों के बालू के नीचे बहने वाली पानी अंडरग्राउंड वाटर लेबल को मेंटेन रखती है. बालू खत्म होने से अंडरग्राउंड वाटर लेबल खत्म होता चला जाएगा और मानव जीवन को घोर जल संकट से गुजरना पड़ेगा. लेकिन भविष्य के आने वाले खतरे को अनदेखा कर बालू तस्करों के पैसे का लोभ जल संकट और भूखमरी लाकर मानव सभ्यता को खत्म करने में तुला है. 


सिमडेगा में हर दिन सुबह पौ फटते हीं जिसे हम ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं. इस ब्रह्म मुहूर्त के बारे में हमारे बुजुर्गों ने कहा था कि ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सुख शांति और समृद्धि आती है. लेकिन बचपन में सुनी आज याद आती है तब लगता है कि ब्रह्म मुहूर्त का फायदा हम उठा सके या नहीं नदियों से बालू उठाव करने वाले जरूर उठा रहे हैं. अब ये ब्रह्म मुहूर्त से हीं अपना फायदा कर नदियों के आस पास वालों की नीद में खलल अपनी ट्रैक्टर की खडखडाहट से जरूर डालते हैं. सिमडेगा के पंडरीपानी में एनएच के किनारे छींदा नदी, पालामाडा नदी और शंख नदी से हर दिन अहले सुबह से आपकों ट्रैक्टर के खडखडाने की आवाज सुनाई देगी. नदियों का चीर हरण कर बालू उठाव करने वालों के द्वारा छाती ठोक कर इस तरह बालू उठाव करते देख कर तो यही लगता है कि इन्हे किसी का डर है हीं नहीं. तभी तो ये सुबह से शाम तक बडे आराम से नदियों का बालू उठाव करते रहते हैं. वह भी एनएच के किनारे जहां से हर वक्त शहर की सुरक्षा में लगाए गए दर्जनों सीसीटीवी सभी स्थानीय लोगों की हजारों निगाहें इन्हे इस तरह अवैध रूप से बालू ले जाते देखती है. अब इस अवैध बालू के खुलेआम चल रहे धंधे में दाल में कुछ काला है या पुरी दाल काली है. ये तो खैर जांच का विषय है.


सिमडेगा में चल रहे बालू के इस अवैध धंधे को देख कर भविष्य के लिए उठते चिंता के बीच महान कवि दुष्यंत की चार पंक्तियां कहना चाहुंगा "हो गई है पीर पर्वत सी अब पिघलनी चाहिए. इस हिमालय से फिर से गंगा निकलनी चाहिए. हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं. मेरी कोशिश है कि बस सुरते हाल बदलनी चाहिए".

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