अशिस शास्त्री/न्यूज़11 भारत
सिमडेगा/डेस्क: शारदीय नवरात्र पर शहर के प्रिंस चौक सहित विभिन्न दुर्गा पूजा पंडालों में अष्टमी नवमी की संधि काल में विधि विधान से संधि पूजन कर संधि बली प्रदान की गई. नवरात्र की अष्टमी को महाष्टमी या दुर्गाष्टमी कहते है जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण होती हैं. इस दिन नवमी की संधि बेला में संधि पूजा का बहुत ज्यादा महत्व माना गया हैं. संधि पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधि काल कहते हैं.
इसी दौरान पंडालों में संधि की पूजा होता हैं. शारदीय नवरात्र पर आज सुबह 06:58 बजे सिमडेगा के सभी पंडालों में संधि बली प्रदान की गई. प्रिंस चौक दुर्गा पंडाल के पुरोहित आचार्य श्याम सुंदर मिश्र ने बताए कि संधि पूजा करने से अष्टमी और नवमी दोनों ही देवियों की एक साथ पूजा हो जाती हैं. इस पूजा का खास महत्व माना जाता हैं. माना जाता है कि इस काल में देवी दुर्गा ने सुर चंड और मुंड का वध किया था. उसके बाद अगले दिन महिषासुर का वध किया था. संधि पूजा के समय केला, ककड़ी, कद्दू और अन्य फल सब्जी की बलि दी जाती हैं. संधि काल में संधि पूजा में 108 दीपक, 108 कमल, 108 बेल के पत्ते, गहने, पारंपरिक कपड़े, गुडहल के फूल, चावल अनाज और एक लाल फल व माला का उपयोग कर मां दुर्गा का श्रृंगार किया जाता हैं. इसके बाद मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करके उनकी आरती की जाती हैं. इस दौरान संधि पूजा का शुभारंम घंटी बजाकर किया जाता हैं.
एक कथा के मुताबिक, जिस समय मां चामुण्डा और महिषासुर के बीच में भयंकर युद्ध हो रहा था. उस वक्त चण्ड और मुंड नाम के दो राक्षसों ने माता की पीठ पर वार कर दिया था. जिसके बाद क्रोध के कारण माता का मुख नीला पड़ गया और माता ने दोनों राक्षस का वध कर दिया था, जिस समय उनका वध संधि काल में हुआ. यह मुहूर्त काफी शक्तिशाली माना जाता है क्योंकि मां दुर्गा ने इस समय अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग कर चण्ड और मुंड का वध कर दिया था. शहर के प्रिंस चौक दुर्गा पूजा पंडाल में आचार्य श्याम सुंदर मिश्र ने मंत्रोच्चार करते हुए संधि पूजन संपन्न कराए. यजमान अनुप केशरी ने कोंहडे और गन्ने की बली प्रदान की.