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रांची/डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक विवादस्पद टिप्पणी पर रोल लग दी, जिसमें रेप के आरोप की परिभाषा को लेकर आपत्ति उठाई गई थी. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय की टिप्पणी पर गंभीर चिंता व्यक्त की और उसेव स्थगित कर दिया. यह मामला जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया था कि नाबालिग के स्तनों को पकड़ना और उसके पायजामे का नाड़ा खींचना रेप या रेप के प्रयास के अपराध की श्रेणी में नहीं आता. कोर्ट का मानना था कि ऐसा व्यवहार तो महिला के खिलाफ हमला या आपराधिक बल के तहत आता है लेकिन इसे रेप के तौर पर नहीं लिया जा सकता. यह बयान जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की ओर से दिया गया था, जिन्होनें कासगंज के एक स्पेशल जज के आदेश को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका पर यह निर्णय सुनाया था.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की इस टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह निर्णय लेखक की ओर से संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है और इसे न्यायिक विवेक की कमी के रूप में देखा गया. कोर्ट ने कहा कि यह आदेश 4 महीने सुरक्षित रखने के बाद सुनाया गया था, जिसका उद्देश्य न्यायिक तटस्थता से अधिक किसी अन्य प्रकार की सोच का परिचायक था.