न्यूज11 भारत
रांची/डेस्कः- कर्ज के चपेट में आने से एक हंसता खेलता हुआ परिवार पूरी तरह से खत्म हो गया. यूपी के सहारनपुर से एक सनसनीखेज खबर सामने आ रही है जहां एक सर्राफा के कारोबारी सौरभ बब्बर व उनकी पत्नी ने गंगा नदी में छलांग लगा कर खुदकुशी कर ली. कूदने से पहले दोनों ने सेल्फी भी ली है. उसे अपने दोस्तों को भी भेजा और एक सुसाइड नोट भी लिख कर डाला है जिसमें लिखा है कि कर्ज में काफी डूबे हुए हैं और ब्याज दे देकर परेशान हो गए हैं, अब और ब्याज नहीं दिया जाता. इसलिए हमने मौत को गले लगाया. नोट में लिखा है कि जहां पर भी हम आत्महत्या करेंगे वहां की सेल्फी लेकर भेज देंगे. बता दें कि सौरभ व मोना कि शादी करीब 18 साल पहले हुई थी. दोनों के दो बच्चे भी हैं. एक लड़की 12 साल का व दूसरा लड़का 7 साल की. पूरे देश की अगर बात करें तो कर्ज लेकर आत्महत्या करने वालें की तादाद दिनोदिन बढ़ती नजर आ रही है. बता दें कि पिछले दिनों भोपाल में एक पूरा परिवार इसी वजह से खत्म हो गया था. यहां सबसे पहले दो बच्चे को जहर दिया गया फिर खुद जहर खा कर आत्महत्या भी कर ली. इंटरनेट पर यदि आप ढूढेंगे तो ऐसे कई मामले हैं जिसमें आर्थिक परेशानी की वजह से पूरा का पूरा परिवार खत्म हो गया है.
NCRB जो कि केंद्र सरकार की एजेंसी है इसके आंकड़ों से आप अँदाजा लगा सकते हैं कि कर्ज किस तरीके से पूरे देश में जानलेवा बनता जा रहा है. 2022 में पूरे देश भर मे 1.70 लाख लोगों से भी ज्यादा लोगों ने खुदकुशी कर ली थी. इनमें से 7 हजार लोग ऐसे हैं जिन्होने कर्ज लेकर आत्महत्या की है. ऐसे में हर दिन लगभग 19 लोगों ने आत्महत्या की है. आंकड़े कहते हैं कि 2018 से 2022 तक में कर्ज से परेशान होकर लगभग 29 हजार लोगों ने आत्महत्या की है.
कर्जदार हो रहे लोग
भारतीय परिवार में कर्ज की संमस्या लगातार बढ़ती जा रही है. सरकारी आंकड़ो को देखे तो भरात के परिवारों की बचत लगातार कम हो रही है. 2020-21 की बात करें तो घरेलू बचत 23.29 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी थी, वहीम अब इसके आँकड़े में लगातार गिरावट आ रही है. 22-23 में ये गिरकर करीब 14.16 लाख करोड़ रुपए तक हो गई है.
बचत इसलिए कम हो रही है क्योंकि लोगों में कर्ज लगातार बढ़ रही है. उनकी कमाई का एक बड़ा सा हिस्सा कर्ज चुकाने में जा हा है.
NSSO के एक सर्वे के अनुसार आंकड़ा है कि 2012 में शहरी इलाकों मे 22.4% परिवार पर कर्ज था वहीं 2028 में भी ये आंकड़ा इतना ही रहा. लेकिन वहीं इस दौरान कर्जदार ग्रामीण परिवार का आंकड़ा 31 प्रतिशत से बढ़ कर 35 प्रतिशत हो गया था.