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रांची/डेस्क: कल यानी सोमवार,1 जुलाई से देश में तीन नए आपराधिक कानून लागू होंगे. तीनों नए कानून वर्तमान में लागू ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे. यह नए कानून के नाम भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) हैं. इसी साल फरवरी में इन तीनों आपराधिक कानूनों को लेकर गजट नोटिफिकेशन जारी किया गया था. संसद से दिसंबर 2023 में पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी 25 दिसंबर 2023 को इसे मंजूरी मिल गयी है. साल 2020 में दिल्ली के एनएलयू के पूर्व कुलपति डॉ रणबीर सिंह की अध्यक्षता में सरकार ने तीनों कानूनों में बदलाव के लिये कमिटी गठित की थी. इन कानून के लागू होने से कई बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे.
दुष्कर्म के दोषियों को फांसी तक की सजा
नए आपराधिक कानून के अंतर्गत नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने वाले दोषियों को फांसी की सजा तक दी जा सकती है. वहीं नाबालिग के साथ गैंगरेप करने को नए अपराध की श्रेणी में रखा गया है. इस कानून के अनुसार राजद्रोह को अब अपराध नहीं माना जाएगा. इन नए कानून में मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) के दोषियों को को भी सजा के प्रावधान हैं. जब 5 या उससे ज्यादा लोग जाति या समुदाय के आधार पर किसी की हत्या करते हैं तो उन्हें उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी.
भारतीय न्याय संहिता (BNS)
भारतीय न्याय संहिता (BNS) 163 साल पुराने आईपीसी (IPC) की जगह लेगा. इस कानून के सेक्शन 4 के अंतर्गत सजा के तौर पर दोषी को सामाजिक सेवा करनी होगी. शादी का धोखा देकर यौन संबंध बनाने पर 10 साल की सजा और जुर्माना का प्रावधान है. साथ ही नौकरी या अपनी पहचान छिपाकर शादी के लिए धोखा देने पर भी सजा होगी. संगठित अपराध जैसे अपहरण, डकैती, गाड़ी की चोरी, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग, आर्थिक अपराध, साइबर-क्राइम के लिए भी कड़े सजा का प्रावधान किया गया है. भारतीय न्याय संहिता (BNS) में राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले काम पर भी कड़ी सजा दी जाएगी.
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 1973 के सीआरपीसी (CRPC) की जगह लेगा. इस कानून के जरिए प्रक्रियात्मक कानून में महत्वपूर्ण बदलाव किये गए हैं. इस कानून के मुताबिक अगर किसी को पहली बार अपराधी माना गया तो वह अपने अपराध की अधिकतम सजा का एक तिहाई पूरा करने के बाद जमानत हासिल कर सकता है. ऐसे में विचाराधीन कैदियों के लिए तुरंत जमानत पाना मुश्किल हो जाएगा. हालांकि, यह कानून आजीवन कारावास की सजा पाने वाले अपराधियों पर लागू नहीं होगा. इस कानून के अंतर्गत कम से कम सात साल की कैद की सजा वाले अपराधों के लिए फोरेंसिक जांच अब अनिवार्य हो जाएगा. फोरेंसिक एक्सपर्ट्स अपराध वाली जगह से सबूतों को इकट्ठा और रिकॉर्ड करेंगे. वहीं अगर किसी राज्य में फोरेंसिक सुविधा का अभाव होने पर दूसरे राज्य में इस सुविधा का इस्तेमाल किया जाएगा.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) 1872 के साक्ष्य अधिनियम की जगह लेगा. इस कानून में कई बड़े बदलाव किये गए हैं. इसमें इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को लेकर नियमों को विस्तार से बताया गया है और द्वितीय सबूत को भी शामिल किया गया है. अब तक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स की जानकारी एफिडेविट तक ही सीमित होती थी. पर अब इसके बारे में कोर्ट को विस्तृत जानकारी देनी होगी. कोर्ट को बताना होगा कि इलेक्ट्रॉनिक सबूत में क्या-क्या शामिल है.
ब्रिटिश काल से चलते आ रहे थे यह कानून
ब्रिटिश शासन काल से चले आ रहे इन तीन कानूनों के बारे में वकीलों, न्यायिक पदाधिकारियों और पुलिस पदाधिकारियों को करीब-करीब सभी जानकारियां कंठस्थ थी. वहीं आम जनता भी इसमें से कई कानूनों के बारे में जानती थी. अब कानूनों में हुए बदलाव के बाद उनलोगों को नये सिरे से सभी कानूनों को बारीकियों से जानना होगा.
कई राज्यों ने केन्द्र से इन कानूनों को स्थगित करने का किया आग्रह
1 जुलाई से लागू होने वाले इन नये कानूनों को फिलहाल स्थगित करने का कई राज्यों ने केन्द्र से आग्रह किया है. साथ ही कहा है कि इन नये कानूनों पर पुनर्विचार होना चाहिये. इसमें कई कानून ऐसे हैं जो जनहित में सही नहीं हैं और इसके लागू होने से पुलिस प्रशासन को ज्यादा अख्तियार मिल जायेंगे. जिससे कि कहीं न कहीं लोगों को किसी भी मामले में आरोपी बनाये जाने पर जमानत लेने के लिये काफी मशक्कत करनी पड़ेगी. 14 दिनों की चली आ रही रिमांड की अवधि में भी इजाफा किये जाने को भी लोग सही नजरिया से नहीं देख रहे हैं.