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झारखंड


स्वच्छ भारत मिशन में 5 करोड़ का घोटाला, विभाग में नहीं हैं कोई रिकार्ड, दस्तावेज भी गायब

स्वच्छ भारत मिशन में 5 करोड़ का घोटाला, विभाग में नहीं हैं कोई रिकार्ड, दस्तावेज भी गायब
राजदेव/न्यूज़11 भारत

रांची/डेस्क:  5 करोड़ से उपर का खर्च, लेकिन विभाग के पास खर्च का हिसाब नहीं है. विभाग में ये भी संधारित नहीं है कि राशि किस मद में खर्च हुई, किस दर पर कार्य आवंटन हुआ, कहां-कहां काम हुए और किस एजेंसी को कार्य आवंटन किया गया. विभाग में ये भी संधारित नहीं है कि दर का निर्धारण और एजेंसी का चयन किस प्रकार हुआ मामला कोडरमा के स्वच्छ भारत मिशन, ग्रामीण का है. इस योजना के तहत शौचालयों का निर्माण कराया जाता है. लेकिन घोटाला प्रचार-प्रसार मद में हुआ है यही नहीं. इसी जिले में सारे नियमों को ताक पर रख कर कर्मचारियों की नियुक्ति भी की गई है.  




सबसे ज्यादा गड़बड़ी एक्जीक्यूटिव इंजीनियर बिनोद कुमार के समय हुआ

स्वच्छ भारत मिशन, ग्रामीण घोटालों की योजना बन गई है. कोडरमा में बिना किसी नियम के 5 करोड़ के आस-पास की राशि प्रचार-प्रसार मद में खर्च कर दी गई. किसने कार्य आदेश दिया, कौन सी एजेंसी का चयन हुआ, दर क्या थी और किस आधार पर एजेंसी का निर्धारण हुआ, वर्क अप्रूवल हुआ था या नहीं, इससे जुड़े कोई दस्तावेज कार्यालय के पास नहीं हैं. कार्यालय में नही तो इस अवधि के बीच आयोजित नुक्कड़ नाटकों, दीवार लेखन और मुद्रण का कोई ब्योरा है? आरटीआई में पूछे गये सवाल के जवाब में एक्जीक्यूटिव इंजीनियर ने कहा कि साल 2014-2020 यानी 6 साल में खर्च हुई राशि का कोई ब्योरा कार्यालय में मौजूद नहीं है. सबसे ज्यादा गड़बड़ी एक्जीक्यूटिव इंजीनियर बिनोद कुमार के समय हुआ है, जब घोटाले की बात सामने आई तो अफसरों ने इससे जुड़े दस्तावेजों को ही गायब करा दिया  इस संबंध में में कई बार विभाग के उच्चाधिकारियों को पत्र लिखा गया, सरकार का ध्यान आकृष्ट करवाया गया और अखबारों में खबरें भी छपीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. 


 

400 संचिकायें हुईं गायब

तत्कालीन एक्जीक्यूटिव इंजीनियर ने बिना किसी टेंडर के ही मनमाने तरीके से कई एजेंसी को मनमाने दर पर कार्य आवंटन दे दिया टेंडर, वर्क अलॉटमेंट समेत अन्य कार्यों से जुड़ी 400 संचिकाएं 2020 में जिला समन्वयक ने विभाग को सौंपा था. इसमें से कुछ संचिकाओं को छोड़कर बाकी गायब हैं. संचिकाओं को गायब करने का एक और उद्देश्य यह भी है कि बहुत सारे कार्यक्रम हुए ही नहीं, लेकिन उसके नाम पर फर्जी निकासी कर ली गई. 

 

पीआरडी की निर्धारित दर से डेढ़ गुणा ज्यादा भुगतान

इन 6 सालों में पीआरडी दर पर भी मनमानी की गई पहले पीएआरडी दर पर काम का आदेश दिया गया और फिर दर से डेढ़ गुणा अधिक भुगतान किया गया. एक प्रखंड में दीवार लेखन के 1.80 लाख का काम बिना टेंडर के जीवन ज्योति नाम की कंपनी को दे दी गई. पीआरडी की दर उस समय 20 रूपये प्रति वर्ग फुट थी, लेकिन 30 रूपये प्रति वर्ग फुट के आधार पर उसका भुगतान किया गया था. आरटीआई एक्टिविस्ट अजय कुमार पांडेय ने आरटीआई से मिली यह जानकारी पत्र लिखकर तत्कालीन डीसी रमेश घोलप को दी मीडिया में भी खबरें आई, लेकिन डीसी ने इसपर कोई कार्रवाई नहीं की.

 

कैसे चली कार्यपालक अभियंता की मनमानी

एक्जीक्यूटिव इंजीनियर को 10 लाख रुपये तक के अंदर की योजना को सेंक्शन करने का अधिकार है तात्कालीन एक्जीक्यूटिव इंजीनयर बिनोद कुमार ने अपने अधिकार का पूरा फायदा उठाया प्रचार-प्रसार से जुड़े अधिकांश काम 10 लाख रुपये के अंदर के कराये गये. मतलब सभी वर्क ऑर्डर, टेंडर और भुगतान के आदेश उन्हें ही दिये गये जिन्हें वे चाहते थे. 

 

स्टॉक रजिस्टर में गड़बड़झाला

सभी भुगतान बिना स्टॉक रजिस्टर पर इंट्री करवाये किये गये नियमतः बिना स्टॉक रजिस्टर में इंट्री कराये भुगतान नहीं किया जा सकता. इससे बचने के लिए कार्यपालक अभियंता ने स्टॉक रजिस्टर रखा ही नहीं. इसके साथ किसी भी एक कर्मचारी को फाइल बढ़ाने की जिम्मेवारी नहीं दी गई, जिससे मन में आया उससे संचिकायें अग्रसारित करवाई गईं. आरटीआई में पूछे गए सवाल के जवाब में एक्जीक्यूटिव इंजीनियर ने कहा है कि किस कर्मचारी को फाइलों को बढ़ाने और उसके मूवमेंट के जिम्मेदारी दी गई थी, इसकी कोई सूचना विभाग के पास नहीं है. 

 

नियुक्ति में गड़बड़झाला

कार्यालय में नियुक्ति में भी जम कर धांधली हुई सारे नियमों को ताक पर रख कर मनमाने तरीके से नियुक्ति की गई संविदा पर नियुक्त सभी जिला समन्वयक न तो निर्धारित अहर्ता रखते हैं और न ही निर्धारित अनुभव. यहां तक कि झारखंड के बाहर के लोगों को भी मनमाने तरीके से रखा गया जिसे कई जिलों ने रिजेक्ट कर दिया. उदाहरण सुमन कुमारी का है जो आइईसी काटॉडिनेटर के रूप में चयनित हुई इनकी स्थानीयता ही झारखंड की नहीं है इसलिए धनबाद और गिरिडीह जिलों ने इन्हें रिजेक्ट कर दिया लेकिन यहां के कार्यपालक अभियंता ने वैसे लोगों को भी रख लिया. सपर्युक्त सभी विषयों की जानकारी तात्कालीन जिला समन्वयक ने डीसी को दिया था. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई यदि निष्पक्ष जांच की जाय तो कई अन्य मामले भी इस कार्यालय में मिलेंगे जिन पर अब तक किसी ने ध्यान नहीं दिया. 

 


 

 
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