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रांची.डेस्क: पूर्व जिला परिषद सदस्य एवं भाजपा नेता अनिल टाइगर को 26 मार्च को दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया गया. उनका नाम भले ही टाइगर था लें वह काफी शांत स्वभाव के व्यक्ति थे, वह काफी मिलनसार थे. उनके सहयोगी प्रवीण प्रभाकर के मुताबिक, एक समय में अनिल टाइगर रांची यूनिवर्सिटी के काफी जुझारू व्यक्ति थे. अगर किसी के साथ कुछ गलत होता था तो उनसे बर्दाश्त नहीं होता था और वह टाइगर की तरह मौके पर आक्रामक हो जाते थे.
अनिल ने अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत आजसू पार्टी से की, अनिल जिला पार्षद भी रहे और उस जमाने में उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों से बेपनाह प्यार हासिल किया. अनिल फिलहाल बीजेपी में थे, उनके हत्या के 2 दिन पहले ही महावीर मंडल कांके क्षेत्र के वह अध्यक्ष भी चुने गए थे. आज जब अनिल टाइगर की शव यात्रा निकाली तो उनके शव यात्रा में टोपी पहने दाढ़ी रखे हुए कई मुसलमान भी दिखाई दिए. इसका मतलब यह है कि जो शेर दिल होगा जिसके अंदर हौसला होगा और जो समाज के लिए कुछ करने की सोच रखता होगा उसे झारखंड की राजनीति में टाइगर के नाम से जाना जाने लगता है.
अनिल की हत्या की क्या वजह है इसको लेकर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन अनिल की मौत के बाद जिस तरह से सभी पार्टियों सभी समाज के तत्वों से प्रतिक्रिया आई और जिस तरह से रांची बंद हुआ. इससे अंदाजा होता है कि अनिल टाइगर की राजनीतिक यात्रा अभी बहुत लंबी थी. परिसीमन के बाद संभवत कांके क्षेत्र इंडिपेंडेंट भी होने वाला है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या अनिल की हत्या राजनीतिक दृष्टि से की गई है? कांके क्षेत्र में जमीन का विवाद को लेकर भी दुश्मनी के सिलसिले रहते हैं. ऐसे में यह भी हो सकता है कि कहीं ना कहीं जमीन की खरीद बिक्री के किसी पक्ष से अनिल का कोई लिंक हो. पुलिस जल्द ही हत्या के मकसद का खुलासा करेगी.
झारखंड की राजनीति के और भी हैं कई टाइगर
कोल्हान टाइगर चंपाई सोरेन
चंपाई सोरेन, इन्हें कोल्हान टाइगर भी कहा जाता है. झारखंड आंदोलन में चंपई सोरेन ने दिशोम गुरु शिबू सोरेन के साथ और उनके निर्देश में एक लंबा संघर्ष किया. जल जंगल जमीन और आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ी, सिंहभूम क्षेत्र में फैक्ट्री मजदूरों की हक की आवाज बुलंद की. कभी आंदोलन को बेचा नहीं, शायद इसीलिए बूढ़े होने के बाद भी चंपई सोरेन का जलवा कायम है.
टाइगर जगन्नाथ महतो
दिवंगत जगन्नाथ महतो, दिवंगत जगन्नाथ महतो अब इस दुनिया में नहीं है. लेकिन जनप्रतिनिधि के तौर पर जो प्रतिष्ठा और जो प्यार जगन्नाथ महतो ने जीता है वह आज बहुत कम दिखाई देता है. पारस क्षेत्र में हर जंगलों में मोटरसाइकिल लेकर पहुंच जाना, नौजवान जगन्नाथ महतो की आदत थी. अपने क्षेत्र के लिए और उसके विकास के लिए किसी हद तक भी गुजर जाना पारस टाइगर की विशेषता थी. जब तक वह जिंदा रहे डुमरी के विधायक रहे. वह मंत्री भी थे. लेकिन जब कोरोना ने पंजा मारा तब भी उन्होंने जीवन के लिए जबरदस्त संघर्ष किया. मगर पारस टाइगर जिंदगी की जंग हार गए.
टाइगर जयराम महतो
अब बात करते है जयराम महतो कि, झारखण्ड के नए टाइगर के रूप में जयराम महतो चर्चित है. वह नौजवान है और गर्म खून के व्यक्ति है. उन्होंने इस बात को साबित किया है कि जन संघर्ष को लेकर पूरे समाज को आंदोलन किया जा सकता है. जयराम महतो खर्खंड की राजनीति में एक आंधी की तरह उठे और राज्य में ऐसा चुनाव लड़ा, जिसके कारण पूरे राज्य की राजनीतिक समीकरण बदल गई. भारतीय जनता पार्टी जैसी मजबूत और साधन संपन्न पार्टी का खेमा उखड़ गया.इस चुनाव में आजसू सुप्रीमो जिनकी दावेदारी कुर्मी वोटों पर थी वह भी खुद अपनी सीट नहीं बचा सकें. बेहद आक्रामक अंदाज में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले जयराम महतो, झारखंड के नए टाइगर के रूप में आगे बढ़ रहे हैं. बजट सत्र में उन्होंने अपनी मौजूदगी का एहसास भी दिलाया. हालांकि जयराम महोतो अकेले है, उनका सफ़र काफी लंबा है. मगर टाइगर तो टाइगर ही होता है, जिस तरह टाइगर दूसरों का शिकार करता है कभी-कभी टाइगर शिकारी का शिकार बन जाता है, शायद अनिल टाइगर के साथ यही हुआ है.