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रांची/डेस्क: भारत, एक समय जो सोने की चिड़ीया कहलाता था, अंग्रेजों के काबू में आने के बाद धीरे-धीरे अपनी समृद्धि खोता गया. 1757 से 1947 तक, यानी करीब 200 सालों तक ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत को अपने नियंत्रण में रखा और इस दौरान भारतीय संसाधनों की ऐसी लूट मचाई कि इतिहासकारों के मुताबिक, अंग्रेजों ने करीब 45 ट्रिलियन डॉलर (80 हजार खरब रुपये) लूट लिए. क्या आप इस बात से हैरान नहीं हैं? अंग्रेजों ने न केवल भारत की समृद्धि को नष्ट किया, बल्कि इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को भी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया.
कब हुई बुरे दिन की शुरुआत
भारत पर अंग्रेजों के शासन की शुरुआत 1757 में हुई प्लासी की लड़ाई से हुई थी. जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराज-उद-दौला को हराया, तो भारतीय उपमहाद्वीप पर अंग्रेजों का नियंत्रण स्थिर हुआ. इसके बाद अंग्रेजों ने पूरी तरह से अपनी पकड़ मजबूत की और 1858 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन रानी विक्टोरिया के हाथों में गया, तब तक ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत को अपनी आर्थिक उपनिवेशीता के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था.
45 ट्रिलियन डॉलर की लूट
इतिहासकारों की मानें तो 1765 से 1938 के बीच, यानी लगभग 170 वर्षों में, ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत से लगभग 45 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति लूटी. यह रकम आज के समय में ब्रिटेन के सालाना सकल घरेलू उत्पाद से करीब 15 गुना ज्यादा है. कई ब्रिटिश नागरिक आज भी यह मानते हैं कि भारत पर शासन करने से ब्रिटेन को कोई बड़ा आर्थिक लाभ नहीं हुआ, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत के संसाधनों की ऐसी लूट ने ब्रिटेन को आर्थिक रूप से शक्ति दी और भारतीय समाज को तोड़कर रखा.
उपनिवेशवाद का काला दौर
भारत पर ब्रिटिश साम्राज्य ने केवल आर्थिक शोषण ही नहीं किया, बल्कि राजनीतिक उत्पीड़न और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का भी दौर शुरू किया. भारत के लोग कठिनाइयों से जूझ रहे थे, लेकिन अंग्रेजों ने यहाँ के संसाधनों को अपने देश भेजकर अपनी संपत्ति बढ़ाई. इस दौरान कई उद्योगों की शुरुआत तो हुई, लेकिन उन उद्योगों का उद्देश्य केवल ब्रिटेन को लाभ पहुंचाना था. भारतीय जनजीवन के लिए ये केवल बुरे दिनों की शुरुआत थी.
15 अगस्त 1947 को भारत को मिली आजादी
15 अगस्त 1947 को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वर्षों बाद भारत को ब्रिटिश शासन से आज़ादी मिली. यह एक ऐतिहासिक दिन था, क्योंकि इस दिन ने भारत को अपने पैरों पर खड़ा होने का मौका दिया. हालांकि आज़ादी के बाद भी अंग्रेजों की लूटी हुई संपत्ति और खोई हुई समृद्धि का मूल्य कभी भी चुकता नहीं हो सका.