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रांची/डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संविधान के तहत खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार राज्यों के पास है. सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आज गुरुवार को 8:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि खनिजों पर देय रॉयल्टी कर नहीं है.
CJI की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, रॉयल्टी टैक्स नहीं है
CJI की अध्यक्षता वाली बेंच का कहना है कि रॉयल्टी टैक्स नहीं है. झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर-पूर्व के खनिज समृद्ध राज्यों को कोर्ट के फैसले से फायदा होगा. वहीं यह भी अदालत ने स्पष्ट किया कि संसद के पास निकाले गये खनिजों पर कर लगाने की सीमाएं, प्रतिबंध और यहां तक कि रोक लगाने की शक्ति है.
1989 में 7 न्यायाधीशों की संविधान पीठ का दिया गया फैसला सही नहीं
अपने और पीठ के सात न्यायाधीशों के फैसले को CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने पढ़ा जिसमें कहा गया कि खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति संविधान की दूसरी सूची की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत संसद को नहीं है. उच्चतम न्यायालय ने बहुमत के फैसले में कहा कि सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा वर्ष 1989 में दिया गया वह फैसला सही नहीं है, जिसमें कहा गया था कि खनिजों पर रॉयल्टी कर है. इसके साथ ही प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पीठ ने दो अलग-अलग फैसले दिये हैं. असहमतिपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने दिया है.
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना फैसले से असहमत
फैसला पढ़ते हुए न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा कि राज्यों के पास खदानों तथा खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार नहीं है. प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति नागरत्ना के अलावा पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्ज्ल भुइयां, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह हैं.
इन विवादास्पद मुद्दे पर पीठ ने फैसला सुनाया कि क्या खनिजों पर देय रॉयल्टी खान तथा खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 के तहत कर है. ऐसा कर लेने का क्या केवल केंद्र को ही अधिकार है या राज्यों को भी अपने क्षेत्र में खनिज युक्त भूमि पर कर लेने का अधिकार है.