न्यूज11 भारत
रांची/डेस्क: मद्रास उच्च न्यायालय ने ईशा फाउंडेशन के सद्गुरु जग्गी वासुदेव से उनकी शिक्षाओं पर सवाल पूछे. मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति वी शिवज्ञानम ने 30 सितंबर को सुनवाई के दौरान उनसे पूछा कि वे युवतियों को संन्यास के मार्ग अपनाने के लिए क्यों कह रहे हैं? मद्रास उच्च न्यायालय ने पूछा कि जब सद्गुरु की अपनी बेटी विवाहित है और अच्छा जीवन जी रही है, तो वे अन्य युवतियों को सिर मुंडवाने, सांसारिक जीवन त्यागने और अपने योग केंद्रों में संन्यासी जैसा जीवन जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं?
दरअसल, ये सवाल कोयंबटूर के एक कृषि विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज द्वारा हाईकोर्ट में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान उठाए गए. याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उनकी दो शिक्षित बेटियों का ब्रेनवॉश किया गया और उन्हें ईशा फाउंडेशन के योग केंद्र में रखा गया. याचिकाकर्ता के अनुसार, उनकी दो बेटियों की उम्र 42 और 39 साल है. हालांकि, कथित तौर पर बंदी बनाई गई दो युवतियां 30 सितंबर को मद्रास हाईकोर्ट पहुंचीं. इस दौरान उन्होंने पीठ को बताया कि वे अपनी मर्जी से कोयंबटूर के योग केंद्र में रह रही थीं और उन्हें किसी ने बंदी नहीं बनाया था. हालांकि, मद्रास हाईकोर्ट ने युवतियों से कुछ देर बात करने के बाद इस मामले की आगे जांच करने का फैसला किया. हाईकोर्ट के इस फैसले से हैरान ईशा फाउंडेशन के वकील ने कहा कि कोर्ट इस मामले का दायरा नहीं बढ़ा सकता. इस पर जस्टिस सुब्रमण्यम ने जवाब दिया कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हुए अदालत से पूर्ण न्याय की उम्मीद की जाती है और मामले की तह तक जाना जरूरी है.