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रांची/डेस्क: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ऐसी चाल चली है, जिसने पड़ोसी देश की नींद उड़ा दी हैं. गोली-बंदूक की जगह इस बार भारत ने पानी को अपना हथियार बनाया हैं. सिंधु जल समझौते पर रोक लगाकर भारत ने 'जल कूटनीति' का ऐसा दांव चला है, जिसकी गूंज इस्लामाबाद से लाहौर तक सुनाई दे रही हैं.
क्या है सिंधु जल समझौता? (Indus Water Treaty)
9 साल की लंबी बातचीत के बाद साल 19 सितंबर, 1960 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने विश्व बैंक की मध्यस्थता में इस ऐतिहासिक जल समझौते पर दस्तखत किए थे. इस समझौते के तहत 6 नदियों के पानी को दोनों देशों में बांटा गया था. सिंधु नदी प्रणाली में कुल छह नदियां शामिल हैं. इनमें सिंधु, सतलज झेलम, चिनाब, रावी और ब्यास शामिल हैं. इस समझौते के अनुसार भारत सिंधु नदी प्रणाली के पानी का केवल 20% ही इस्तेमाल कर सकता हैं. बाकी 80% पानी पाकिस्तान को मिलता हैं. इसलिए सिंधु पाकिस्तान की लाइफलाइन मानी जाती हैं.
पश्चिमी नदियां: सिंधु, झेलम, और चेनाब का जल अधिकार पाकिस्तान को मिला.
पूर्वी नदियां: रावी, ब्यास और सतलुज का जल अधिकार भारत को मिला.
भारत को पश्चिमी नदियों का सीमित उपयोग ही करने की छूट है, जैसे सिंचाई, घरेलू जरूरतें और रन-ऑफ-द रिवर हाइड्रोपावर यानी बिना जल रोके बिजली उत्पादन.
आखिर क्यों भारत ने लिया ये बड़ा फैसला?
पहलगाम हमले ने एक बार फिर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की ओर उंगली उठाई. जिसके बाद प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में हुई सीसीएस बैठक में निर्णायक कदम उठाया गया. भारत ने सिंधु जल समझौते पर रोक लगाकर पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि अब खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते.
क्या होगा पाकिस्तान पर असर?
पहले से ही बदहाल अर्थव्यवस्था और बिजली संकट सेर जूझ रहे पाकिस्तान के लिए यह एक और बड़ा झटका हैं. यह पहली बार है जब भारत ने सिंधु जल समझौते पर रोक लगाया हैं. क्योंकि पंजाब और सिंध में पीने के पानी का बड़ा हिस्सा इस नदी प्रणाली से आता हैं. पाकिस्तान की 80% कृषि सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर हैं. इसके अलावा सिंधु नदी से जुड़े पाकिस्तान के कई हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट है, जिनमें जलपूर्ति बाधित होने से ऊर्जा संकट गहरा सकता हैं.
सिंधु जल समझौते पर भारत की रोक न सिर्फ पाकिस्तान को झकझोर रही है बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी एक बड़ा संदेश हैं. भारत अब अपने हितों से समझौता नहीं करेगा. अब देखना होगा कि पाकिस्तान इस जल संकट का हल खोज पाता है या नहीं.