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जोरी गांव खुद गढ़ रहा समृद्धि का नया अध्याय, सुगंधित चावल के धान से लहलहा रहे खेत

जोरी गांव खुद गढ़ रहा समृद्धि का नया अध्याय, सुगंधित चावल के धान से लहलहा रहे खेत

न्यूज़11 भारत 


रांची/डेस्क: ढाई दशक पूर्व तक जोरी गांव के 200 आदिवासी परिवारों का गुजारा पूर्णतः स्थानीय बाजार महुआडाड़ में जलावन की लकड़ी बेचकर चलता था. आज उन आदिवासियों के खेत खलिहान जीरा फूल जैसे सुगंधित चावल के धान से लहलहा रहे हैं. सिर्फ यही नहीं इस गांव के किसान रब्बी फसल के रूप में बटुरा (छोटा मटर), मसूर और गेहूँ की ऊपज भी वृहद पैमाने पर करने लगे हैं. हर किसान औसतन साल भर में 2 लाख रूपये का धान उपजा ले रहा है.

 

आर्थिक सामाजिक समृद्धि की यह यात्रा कम जोखिम भरा नहीं

लातेहार जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दक्षिण में अवस्थित महुआडाड़ प्रखण्ड के रेगाईं पंचायत का जोरी गांव की आर्थिक सामाजिक समृद्धि की यह यात्रा कम जोखिम भरा नहीं है. पहाड़ की तराई में बसा यह गांव दो तरफ से पहाड़ियों से घिरा है. पहाड़ियाँ कई दफा ग्रामीणों के दैनिक जीवन को पहाड़ बना देती है. लेकिन पारंपरिक ज्ञान, आपसी सूझ-बूझ और दूरदर्शिता से ग्रामीण अपने सपनों को आकार देने लगें तो यही पहाड़ ग्रामीण जीवन के लिए वरदान साबित होने लगते हैं. जोरी गांव के तीन पीढ़ी के बुजुर्गों ने अपने भावी पीढ़ियों के लिए ऐसे ही सुनहरे सपने बुने थे, जिसे वर्त्तमान पीढ़ी उपभोग कर रही है. ग्राम प्रधान छलकू नागेसिया की माने तो वर्त्तमान पीढ़ी भी अपने पूर्वजों के आदर्शों को अपनाते हुए उनके बताए मार्ग पर चलने का भरसक प्रयास कर रहे हैं. 

 


 

दो बाँध धान खेत में तब्दील 

जोरी गांव की आर्थिक समृद्धि की असल कहानी गांव से करीब 1 किलोमीटर पश्चिम में लेटो नदी में घघरी नामक स्थान में पहाड़ी नदी से नहर निर्माण से शुरू होती है. आज ये दोनों बाँध धान खेत में तब्दील हो चुके हैं. उन दिनों बुजुर्गों ने अपने खुद के ज्ञान से उसी घघरी के पास बड़े पत्थरों से लेटो नदी के पानी को डायवर्ट कर पहले हर्रा बांध तक पहुंचाया फिर बाद में हगरी बांध में पानी को संग्रहित किया करते थे. 

 

गांव के 500 एकड़ से अधिक खेतों में पानी की सुविधा 

समय बीतने के साथ पूर्वजों द्वारा निर्मित पारंपरिक सिंचाई नहर मरम्मत के अभाव में जहां - तहाँ विखंडित हो गए थे. इसी बीच 2020 में वैश्विक महामारी संकट कोविड 19 का कहर आया. संयोगवश 2022 में घाघरी में एक अन्य सरकारी योजना से पक्का चेकडेम का निर्माण भी किया जा चुका है. यही वजह है कि आज जोरी गांव का लगभग 500 एकड़ से अधिक खेतों में नहर का पानी 24 घंटे सुलभ है. 

 


 

ग्राम प्रधान स्वयं तैयार करते हैं जड़ी - बूटी

ग्रामीणों के संघर्ष और सफलता की कहानी यहीं समाप्त नहीं हो जाती है. जोरी ग्राम सभा को वन अधिकार कानून 2006 के तहत 252.04 एकड़ का पट्टा भी जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार निर्गत किया जा चुका है. हालांकि जोरी एवं मेढ़ारी ग्राम सभा के लोग 5 साल पूर्व से ही अपने वन संसाधनों का बेहत्तर प्रबंधन कार्य करने लगे हैं. जहाँ आज बाँस, महुआ, घर बनाने हेतु कंडी, नाना प्रकार के औषधीय जड़ी - बूटी, फल - फूल पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं, जिसका ग्रामीण ग्राम सभा द्वारा तय नियमानुसार उपयोग करते हैं. ग्राम प्रधान स्वयं स्थानीय जड़ी बूटियों से गंभीर बीमारियों यथा पत्थरी, पागलपन, मिरगी, लाँघन का अचूक ईलाज करते हैं. उनका दावा है कि वे टूटी हड्डियों का ईलाज सिर्फ 3 खुराक से ठीक कर देते हैं. वे सांप और बिच्छू द्वारा डंसे विष के ईलाज का भी दावा करते हैं. यहां कुछ दिनों पहले सामाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज और उनकी टीम ने दौरा किया था.

 


 
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