देश-विदेशPosted at: मार्च 23, 2025 बस एक पेज.. ये थी शहीद-ए-आजम भगत सिंह की फांसी लगने से पुर्व आखिरी इच्छा
किताब को हवा में उछाला और कमरे से निकल पड़े, जैसे कोई जरुरी काम निपटाने जा रहे हों

न्यूज11 भारत
रांची/डेस्क:- 23 मार्च को ही भारत के तीन सपूत को फासी की सजा आनन फानन में लाहोर के जेल में दे दी गई थी. शहीद-ए-आजम भगत सिंह. राजगूरू व सुखदेव इन तीनों को एक साथ फांसी के फंदे से लटकाना ये दर्शाता है कि किस हद तक अंग्रेजी हूकूमत डरी हुई थी. इन दौरान भले पूरा जेल गमगीन हो गया था पर भगत सिंह व उनके साथी के माथे पर शिकन तक नहीं थी. अपने अंतिम समय में बगत सिंब ने फांसी के फंदे को चुम कर इंकलाब जिंदाबाद कहते हुए मौत को अपना गले लगा लिया.
फांसी की तारीख अंग्रेजों ने 24 मार्च को रखी थी पर उन्हें इन तीनों से इतना डर था कि 12 घंटे पहले ही उन्हे फंसी दे दी गई. भगत सिंह किताब पढ़ने के बड़े शौकीन थे फांसी के पहले जब उनके वकील उनसे मिलने जोल गए तो अपने साथ एक किताब लेकर गए थे किताब लेनिन के जीवनी के उपर लिखा हुआ था द स्टेट एंड रिवाल्यूशन. कहा जाता है कि भगत सिंह ने ही ये किताब मंगवाई थी फांसी की परवाह किए बिना ही वे किताब पढ़ने में मशगूल हे गए थे. जब उन्हे फांसी के लिए बुलाया जाने लगा तो उन्होने कहा कि थोड़ रुकिए कुछ पेज रह गया है इसे खत्म कर लेता हूं. उनकी आखिरी ख्वाहिश बस यही थी कि एक क्रांतिकारी दूसरे से बात कर रहा था. किताब खत्म करते हू उसने किताब को हवा में उछाला और कहा कि चलो अब चला जाए. इसके बाद वे तुरंत कमरे से ऐसे निकले कि जैसे कोई रोजमर्रा की जिंदगी निपटाने जा रहे हों. उन्होने हंसते हंसते फांसी को गले लगा लिया और हमेशा के लिए अमर हे गए.