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रांची/डेस्क: राजधानी रांची में रामनवमी के दिन शोभा यात्रा और जुलूस, विशाल महावीरी झंडे का साथ हर साल निकाली जाती है. ढोल और नगाड़ो की गूंज के साथ शहर के विभिन्न अखाड़ो के जुलूस आपस में मिलते हुए विशाल शोभा यात्रा की रूप में तपोवन मंदिर पहुंचते है. तपोवन मंदिर शहरवासियों के लिए आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है. तपोवन मंदिर में पहली बार साल 1929 में महावीरी झंडे की पूजा हुई थी. इस झंडे को महावीर चौक स्थित महावीर मंदिर से लाया गया था. यह झंडा आज भी सुरक्षित है और हर साल इस झंडे की पूजा भी होती है.
बता दे कि तपोवन मंदिर का निर्माण कब और किसने कराया यह आज भी एक रहस्य है. मंदिर के परिसर में महंत बंटेकेश्वर दास(1604) और महंत रामशरण दास(1686) की समाधि भी है. इसके बाद जीतने भी महंत हुए, उनकी इच्छानुसार उन्हें बनारस में जल समाधि दे दी गई. अयोध्या से तपोवन मंदिर के महंत का चयन किया जाता है.
फिलहाल जिस जगह तपोवन मंदिर से उस स्थान पर बकटेश्वर महाराज तपस्या करते थे. किंवदंतियों की माने तो महाराज के भजन के वक्त जंगली जानवर भी आते थे. एक दिन एक अंग्रेज अफसर ने बाघ को गोली मार दी. जिसके बाद बाबा ने गुस्सा हो कर अफसर को श्राप दे दिया. जब अफसर ने अपनी भूल मान ली तो बाबा ने उन्हें शिव मंदिर की स्थापना करने के लिए कहा. यह शिवलिंग मंदिर परिसर में आज भी मौजूद है. मंदिर में कई और देवी-देवताओं की भी प्रतिमा स्थापित है. मंदिर के गर्भ गृह में सौ साल पुरानी भगवान राम और माता सीता की प्रतिमा भी है. इसके साथ ही रातू महाराज के किले से पूर्वजों की लाई हुई बजरंग बली की मूर्ति भी है. मंदिर आने वाले श्रधालुओं का ये मानना है कि वे जो भी मन्नत मानते है वो सभी पुरी होती है.