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झारखंड


जन्माष्टमी विशेष: झारखंड में विराजमान हैं 32 मन सोने के भगवान मनमोहन मुरलीवाला, भक्तों की लगती है कतार

जन्माष्टमी विशेष: झारखंड में विराजमान हैं 32 मन सोने के भगवान मनमोहन मुरलीवाला, भक्तों की लगती है कतार

न्यूज़11 भारत 


रांची/डेस्क: नगर उंटारी राज्य के राजा भवानी सिंह की धर्मपत्नी रानी शिवमणि कुंवर थी. रानी शिवमणि कुंवर बाल विधवा और निसंतान भी थी. 1778 ईस्वी में भारत में मुगलों का साम्राज्य हुआ करता था और उसी दौर में अंग्रेज भी हिंदुस्तान के विभिन्न राज्यों में  सत्ता हथियाने  के लिये संघर्ष कर रहे थे. उसी समय रानी शिवमणि कुंवर नगर उंटारी राज्य की रानी बनी.

 

नगर उंटारी से बिहार, उत्तर प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ तीनों प्रदेश की सीमा जुड़ती है 

झारखंड राज्य का नगर उंटारी नगर बाँकी नदी के किनारे स्थित है. इस से 16 किलोमीटर दूर कनहर नदी है, जिसके  पार छत्तीसगढ़ है और 6 किलोमीटर पश्चिम  चलने पर मतिया  नदी बहती है और वहीं से उत्तर प्रदेश की सीमा की शुरुआत हो जाती है. नगर उंटारी गढ़वा जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में अंबिकापुर रेलखंड के अंतर्गत आता है.

 

नगर उंटारी का धरोहर शाही महल और चार चांद लगाता श्री बंसीधर मंदिर

नगर उंटारी एक शाही धरोहर है, जिस पर देव परिवार शासन  करते थे और भैया रुद्र प्रताप देव इस नगर उंटारी पर शासन करने वाले अंतिम शासक थे. उनके परिवार के पास शहर में एक भव्य महल है. इसी महल की भव्यता पास में बना श्री बंसीधर मंदिर और बढ़ा देता है. श्री बंसीधर मंदिर दर्शनीय है. कई राज्य ही नहीं बल्कि देश-विदेश से श्रद्धालुओं  की भीड़ यहां जुटती है. राज परिवार के सदस्य अभी भी महल में रहते है.

 

रानी शिवमणि कुंवर कराया था श्री बंशीधर मंदिर का निर्माण  

श्री बंशीधर मंदिर के मूर्ति की स्थापना तथा मंदिर का निर्माण नगर उंटारी राज्य के राजा भवानी सिंह की धर्मपत्नी रानी शिवमणि कुंवर ने कराई थी. रानी शिवमणि कुंवर बाल विधवा थी और उनकी कोई संतान नही थी. रानी शिवमणि प्रजा के बीच काफी लोकप्रिय भी थी और राज्य के संचालन के साथ -साथ धार्मिक दान पुण्य के लिये भी वह विख्यात रही. वह कृष्ण भक्ति में लीन रहने वाली थी. 

 

रानी अक्सर कृष्ण भजन कीर्तन और अनुष्ठान करवाते रहती थी. भगवान कृष्ण भी उनकी भक्ति से प्रसन्न हो गए. यह अवसर था कृष्ण जन्माष्टमी का श्री कृष्ण नाम का लगातार जाप करते-करते हुए रानी बेहोश हो गई. इस बेहोशी में ही श्री कृष्ण भगवान ने उनको दर्शन दिए. भगवान श्री कृष्ण की मनमोहक छवी देख रानी रोने लगी और भगवान के चरणों में गिर पड़ी. इसपर भगवान कृष्ण ने कहा कि मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हो गया हूं. इस वरदान को देने के लिए तुम्हारे समक्ष आया हूं. मांगो रानी शिवमणि मनचाहा वर मांग लो. रानी को कृष्ण दर्शन के अलावे कुछ भी नहीं भाया इसलिए रानी ने कहा कि मैं आपका दर्शन हर पल कर पाऊँ बस यही चाहती हूं. उसी बेहोशी की हालत में भगवान ने कहा कि कनहर के पास शिव पहाड़ी की चोटी पर मैं विश्राम कर हूं. वहीं पर मेरी प्रतिमा का स्वरूप है, उसको लाकर इस नगर उंटारी राज्य में विधिवत स्थापित कर दो. तुम्हारी हर मनोकामना पुरी हो जाएगी. उसके साथ ही भगवान अंतर्ध्यान हो गए. 

 

दुसरे दिन अहले सुबह रानी अपने महल के सदस्यों और कर्मियों के साथ-साथ  पण्डितों के साथ उक्त स्थल पर पहुंच कर भगवान का स्मरण कर अपने हाथो से ही मिट्टी हटाया तो भगवान की मूर्ति का शीर्ष भाग दिखाई दिया तो रानी ने विधिवत पूजा अर्चना की और मंत्रोचार के साथ खुदाई मूर्ति को निकलवाया तो सभी की आंखें अचरज से फैल गई. 4 फीट शुद्ध सोने के भगवान मुस्कुराते हुए दर्शन दिए. मूर्ति का वजन 32 मन था. रानी ने आसपास भी खुदाई करवाई, लेकिन इलाके में मनमोहन की इकलौती प्रतिमा ही थी. यह भव्य प्रतिमा के नाग के फन पर कमल फूल है और उसके  उपर श्री बंशीधर की प्रतिमा विराजमान है. प्रतिमा को राज दरबार लाने के लिए हाथी के उपर होज में रखा गया. इसका इतना वजन था कि हाथी थक जा रहे थे. इसलिये कई हाथियों को बदल-बदल के लाना पड़ रहा था. रानी किले के पीछे अंतिम वाला हाथी भी बैठ गया और काफी प्रयास के बाद भी नहीं उठा तो इसे भगवान कृष्ण की मर्जी मान कर वहीं पर मंदिर बनाया गया. हाथी जहां अभी मंदिर स्थित है वहीं आकर बैठ गया. लाख प्रयत्न करने के बाद भी हाथी वहां से नहीं उठ सका. यह देख कर सभी ने भगवान की इच्छा मानकर उसी स्थल पर मूर्ति स्थापित कर दी गईं. उस समय से इसी स्थल पर मंदिर में मूर्तियां स्थापित की गई है. किसी भी मंदिर में सिर्फ बंशीधर की मूर्ति स्थापित नहीं की जाती है इनके साथ राधा जी की भी मूर्ति स्थापित की जाती है. कृष्ण की अनन्य भक्त शिवमणि कुंवर द्धारा शीघ्र ही काशी से राधा की अष्ट धातु निर्मित मूर्ति बनवा कर श्री कृष्ण की मूर्ति के बगल में स्थापित कराई गई है.

 

नगर उंटारी  में स्थित मनमोहन श्री बंशीधर मंदिर में विशेष मूर्ति स्थापना के बाद से  ही पर्यटकों और भक्तों को आकर्षित कर रहा है. 32 मन सोने के विशुद्ध कृष्ण साथ ही अष्टधातु की माता राधिका की साक्षात प्रतिमा भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं. मूर्ति के तीन राज्‍यों के संगम स्‍थल पर होने के कारण इसकी ख्याति कई राज्यों में और देश-विदेश में है. जन्माष्टमी में इस मंदिर में वृंदावन की तर्ज पर श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है. हर वर्ष इस मौके पर वृंदावन से आए विद्वान पंडित भागवत कथा करते हैं. इस कथा में काफी भक्त पहुंचते हैं. 24 पंखुड़‍ियों वाले विशाल कमल पुष्प पर विराजमान भगवान की छटा निराली है. 1885 ईस्वी की यह प्रतिमा अभी भी उसी चमक-दमक के साथ विराजमान है.

 

प्रतिमा को मराठ शासकों ने बनवाया था

इतिहासकारों के अनुमान के अनुसार प्रतिमा मराठा शासकों के द्वारा बनवाई गई होगी. मराठा वैष्णव धर्म के उपासक भी रहे है. वैष्णव धर्म प्रचार प्रसार में इनकी अहम भूमिका रही और उन्होंने भगवान विष्णु के अवतारों की कई मूर्तियां  और बहुत मंदिर भी बनवाये. आक्रमणकारी मुगलों के से बचाने के लिए मराठों ने इस अनूठी प्रतिमा को शिवपहरी नामक पहाड़ी पर अंदर छुपा कर रख दिया होगा. लेकिन कालांतर में छुपाने वाली पीढ़ी नही बची होगी. परंतु भगवान ने रानी के सपनो में आकर अपनी मूर्ति की उपस्थिति दर्ज करा कर श्रद्धालुओं को कृतारथ कर दिया. बताया जाता है कि इस मंदिर में वर्ष 1930 के आसपास चोरी भी हुई थी. इसमें चोर भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी और छतरी चोरी कर ले गए थे. बाद में चोरी करने वाले सभी चोर अंधे हो गए थे. चोरो ने अपराध स्वीकार कर लिया लेकिन लेकिन चोरी की हुई वस्तुएं बरामद नहीं हो पाई. बाद में राजा का परिवार ने दोबारा स्वर्ण बांसुरी और छतरी  का निर्माण करा कर मंदिर में पुनः लगवाया.

 

बिरला ग्रुप ने 60-70 के दशक में नव निर्माण करवाया. सबसे बड़ी विशेषता है कि इस प्रतिमा पर आज तक किसी तरह का पोलिस नहीं किया गया है. बावजूद शुद्धता के कारण प्रतिमा की चमक-दमक बरकरार है. वहीं, झारखंड सरकार ने राज्य बनने के बाद इस नगर का नाम श्री बंशीधर नगर कर दिया. यह यहां के लोगों के लिए गौरव की बात है.

 

कृष्ण जन्मोत्सव

मंदिर के पुजारियों व श्री बंशीधर सूर्य मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टियों द्वारा ही भव्य तरीके से कृष्ण जन्मोत्स जन्माष्टमी को कई वर्षों से मनाया जा रहा है है. यहां प्रतिवर्ष फाल्गुन महीने में पूरे महीने तक आकर्षक विशाल मेला लगता है और फागुन के महीने में रंगो उत्सव की धूम रहती है.

श्रीकृष्ण कॉरिडोर से जुड़ा है.

 

श्रीबंशीधर नगर मंदिर श्रीकृष्ण कॉरिडोर से जुड़ गया है. फिलहाल कृष्ण के तमाम मंदिरों वृंदावन, मथुरा और खाटू श्याम कॉरिडोर से जोड़ दिया जाएगा. श्री बंशीधर नगर मंदिर में हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं. श्रीबंशीधर नगर को पर्यटन सर्किट से जोड़ने के लिए बातें चल रही है. प्रत्येक वर्ष श्रीबंशीधर नगर महोत्सव का भी धूमधाम से आयोजन किया जाता है.

 


 
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