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रांची/डेस्क: आज के जमाने में अक्सर लोग कांस्य के बर्तन का उपयोग पूजा अर्चना के लिए करते है. ऐसा मन जाता है कि कांस्य के बर्तन में पानी रखने के बाद इसे पीने से कई सारी बीमारियां ठीक हो जाती है. आज भी कांस्य के बर्तनों का बहुत महत्व होता है. लेकिन आपको पता है कि इन बर्तनों को बनाने के लिए कितनी मेहनत लगती है. आइए आपको हम इन बर्तनों के निर्माण और निर्माण करने वाले लोगों के बारे में बताते है.
कहां है ये गांव?
झारखंड राज्य में के ऐसा गांव है, जिसे ब्रॉनज़ विलेज ऑफ झारखंड कहा जाता है. जब पूरी दुनिया रात में चैन की नींद सोती है, तब इस गांव के लोग कांस्य के बर्तन बनाते है. यहां के लोगों का कहना है कि रात में कांस्य का बर्तन बनाना उनकी मजबूरी है. राजधानी रांची से करीब 50 किलोमीटर दूर खूंटी जिले में जरियागढ़ गांव में रहने वाले लोग रात में जागकर अपने पेट की आग बुझाने के लिए गरम भट्टी की आग सुलगाते है. वह रातब्भर जागकर कांस्य के बर्तन बनाते है. इस गांव के तक़रीबन 80 प्रतिशत लोग कांस्य के बर्तन बनाने का का करते है. यहां के लोगों का कहना है कि वह यह काम मजबूरी में करते है.
रात में ही क्यों बनाते है बर्तन?
यहां के लोगों का कहना है कि वह रात के वक़्त ही केवल कांस्य के बर्तन का निर्माण कर सकते ह. ऐसा इसलिए क्योंकि रात के वक़्त ही भट्ठी की तपिश और उसकी लाली से धातु के तैयार होने के संकेत मिलते है. यह चीज़ दिन में होना संभव नहीं है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस गांव के लोगों के पास तापमान मापने का कोई उपकरण नहीं है. इस्लियेअ रात के वक़्त धातु की लाली से वह पता लगते है कि उसेपीत्कर बर्तन बनाया जा सकता है की नहीं.
मिली जानकारी के अनुसार, इस गांव में करीब 300 परिवार रहते है. इनमे से करीब 200 परिवार कांस्य के बर्तन के निर्माण का काम करते है. गांव के लोगों का कहना है कि उनके समाज यानी आदिवासी समाज के बेटियों की शादी में कांस्य के बर्तन ही दिए जाते है. यहां के बर्तन छतीसगढ़ और ओडिशा राज्य में भी सप्लाई होते है. ऐसे में यहां के कांस्य के बर्तन की बिक्री काफी अधिक होती है.