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रांची/डेस्क: वर्तमान में झारखंड में जल संकट एक अत्यंत ही गंभीर समस्या हो गई है, राज्य के तमाम शहर और गांव जल स्तर के गिरते स्तर से जल संकट से गुजर रहे हैं. यहां तक कि राज्य में बहुतायत डैम और झरनों आदि के होने के बाद भी जल की व्यापक कमी हो गई है. राज्य की राजधानी रांची सहित अनेक शहरों में अक्सर ही पानी की कमी की वजह से "वाटर राशनिंग" का सहारा लिया जाता है. जल की कमी एक अत्यंत ही विचारणीय और गंभीर समस्या है और अगर इसपर ध्यान नहीं दिया गया तो निकट भविष्य में हम सब बूंद-बूंद जल के लिए तरसेंगे. तमाम वैज्ञानिक प्रयोगों और अनुसंधान के बाद यह स्पष्ट हो चुका है कि जल संकट का सबसे भीषण कारण यूकेलिप्टस के वृक्ष होते हैं.
यूकेलिप्टस वृक्ष भूमि से जल का दोहन करके आसपास की भूमि को नुकसान पहुंचाते हैं और उसे बंजर बना देते हैं. यूकेलिप्टस के पेड़ एक दिन में 12 लीटर पानी सोखते हैं. हालांकि, यह बात इस बात पर निर्भर करती है कि पेड़ को कितनी मात्रा में पानी मिल रहा है. सूखे जैसी परिस्थितियों में, इसकी जड़ें 20-30 फ़ीट तक फैल सकती हैं और ज़्यादा पानी सोख सकती हैं. यूकेलिप्टस के पेड़ों की पत्तियाँ और जड़ें, अन्य पेड़-पौधों को उनके नीचे उगने और पनपने से रोकती हैं, जिससे मिट्टी का व्यापक कटाव भी होता है. असल में यूकेलिप्टस के वृक्ष दलदली क्षेत्रों में इसलिए लगाए जाते थे जिससे कि भूमि को उपयुक्त बनाया जा सके और झारखंड राज्य में स्वयं ही जल की कमी है और बिना सोचे विचारे इन वृक्षों को सामान्य भूमि पर लगा दिया गया, जिससे कि पानी की समस्या एक अत्यंत ही विकराल रूप झारखंड राज्य में ले चुकी है.
यूकेलिप्टस के वृक्षों के पर्यावरणीय दुष्प्रभाव:
- भूमि से जल का अत्यधिक दोहन
- भूमि के जलस्तर को एकदम से नीचे गिराना
- जल की कमी की गंभीर समस्या उत्तपन्न करना
- मिट्टी का अत्यधिक कटाव
- अन्य पेड़-पौधों को उगने और पनपने से रोकना
- भूमि को बंजर बनाना
समाधान:
- पर्यावरण के दुश्मन यूकेलिप्टस वृक्षों को हटाना
- हरियाली युक्त, फलदार,ऑक्सीजन से भरपूर वृक्ष लगाना
- जैव विविधता को बढ़ावा देना
इस विषय पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को व्यापक विचार करना चाहिए और युकेलिप्तस वृक्षों द्वारा होने वाले निरर्थक और अत्यधिक जल दोहन को रोकने हेतु त्वरित कदम उठाकर अगली पीढ़ी का भविष्य संरक्षित करने का प्रबंध करना चाहिए.
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