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रांची/डेस्क: आज, 13 फरवरी 2025 को 'शब- ए- बारात' है. यह मुस्लिम समुदाय के प्रमुख पर्वों में से एक है. शब-ए-बरात को इबादत की रात कहते हैं. इस पर्व पर रात में चांद को देखकर इबादत की जाती हैं. बता दें कि शब-ए-बारात 13 फरवरी यानी आज शाम से शुरू होकर अगले दिन 14 फरवरी तक रहेगी. इस्लाम धर्म में शब-ए-बारात को अल्लाह की इबादत की रात माना जाता है. इस्लाम धर्म में इस दिन लोग पूरी रात अल्लाह की इबादत में बिताते हैं. इस्लाम में इस रात को काफी पाक माना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, शब-ए-बारात शाबान महीने की 15वीं तारीख की रात को मनाई जाती है. यह दीन-ए-इस्लाम का आठवां महीना होता है. इसे माह-ए-शाबान यानी बहुत मुबारक महीना माना जाता है. कहते हैं, जो शब-ए-बारात में इबादत करता है, उनके सारे गुनाह माफ हो जाते हैं. इसलिए लोग शब-ए-बारात में रात भर जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं. आइए जानते हैं शब-ए-बारात को मनाने का तरीका और महत्व..
शब-ए-बारात का महत्व
शब-ए-बारात को मनाने का इस्लाम में विशेष महत्व है क्योंकि शब-ए-बारात इस्लाम के सबसे पाक यानी पवित्र अवसरों में से एक है. हर साल भारत समेत दुनिया भर के मुसलमान धर्म के लोग इस पर्व के लिए विशेष तैयारी करते हैं. हर साल, भारत में शब-ए-बारात की सही तारीख जानने के लिए चंद्रमा को देखने का बेसब्री से इंतजार करते हैं. शिया और सुन्नी समुदाय के लोगों की अलग है मान्यता शब-ए-बारात की शुरूआत शिया मुसलमानों के बारहवें इमाम मुहम्मद अल-महदी के जन्म से मानी जा सकती है. शिया समुदाय में इस रात को उनके जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है. वहीं सुन्नी मुस्लिम समुदाय इस पर्व को इसलिए मनाते है क्योंकि उनका मानना है कि इस दिन, खुदा ने नूह के सन्दूक को जलप्रलय से बचाया था, यही वजह है कि दुनिया भर के लोग इस दिन को मनाते हैं.
शब-ए-बारात यानी क्षमा की रात
शब का अर्थ रात होता है और बरआत का अर्थ बरी होना होता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक यह रात साल में एक बार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है. इस्लाम में यह रात बेहद फजीलत की रात मानी जाती है. इस रात को मुस्लिम दुआएं मांगते हैं और अपने गुनाहों की तौबा करते हैं. शब-ए-बारात की सारी रात इबादत और तिलावत का दौर चलता है. इस रात अपने उन परिजनों, जो दुनिया से रुखसत हो चुके हैं, उनकी मगफिरत की दुआएं की जाती हैं.'
इस्लाम धर्म में शब-ए-बरात पर्व का बहुत महत्व है. मान्यता है कि इस रात अगर कोई इंसान शब-ए-बारात की रात सच्चे दिल से अल्लाह की इबादत करते हुए अपने पापों के लिए माफी मांगता है तो अल्लाह उसके सारे पापों को माफ कर देता है.
कैसे मनाया जाता है शब-ए-बारात
शब-ए-बारात शब-ए-बारात की सारी रात इबादत और तिलावत का दौर चलता है. इस रात लोग अपने मृत परिजनों के लिए मगफिरत की दुआएं की जाती हैं. लेकिन कुछ लोग इस रात को शोर-शराबा करते हैं, जश्न मनाते हैं और आतिशबाजियां भी छुड़ाते हैं. लेकिन उलेमा इस दिन आतिशबाजियां छुड़ाना हराम मानते हैं. उनके अनुसार शब-ए-बरात की रात जश्न नहीं केवल इबादत और प्रार्थना की जाती है. वहीं, इस दिन मस्जिदों में विशेष तैयारी की जाती है. मस्जिदों में इबादत के लिए आने वालों के लिए विशेष रूप से व्यवस्था की जाती है. शाम से लेकर फजर की नमाज तक लोगों की भीड़ जुटी रहती है. लोग कब्रिस्तान भी जाते हैं और फातिहा पढ़ते हैं. शब-ए-बरात के ठीक पंद्रह दिनों के बाद रमजान शुरू हो जाएगा. शाबान और रमजान का महीना मुसलमानों के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. यही वजह है कि शब-ए-बारात पर्व का काफी महत्व दिया जाता है.
दुनिया भर में इस्लाम धर्म के लोग मनाते हैं यह त्योहार
शब-ए-बारात इस्लाम की सबसे पवित्र रातों में से एक है और इसे दुनिया भर में इस्लाम धर्म के लोग मनाते हैं. शब-ए-बारात भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, अजरबैजान और तुर्की सहित पूरे दक्षिण एशिया में खास तौर पर मनाया जाता है. साथ ही मध्य एशिया, जिसमें उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और किर्गिस्तान शामिल हैं.