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सिमडेगा/डेस्क: महज एक सप्ताह के बाद वर्ष 2024 को अलविदा कर हम नए वर्ष 2025 में प्रवेश कर जाएगें. नव वर्ष के आगमन पर सभी लोग कुछ रोमांचक तरीके से जश्न मनाना चाहते हैं, तो प्रकृति की गोद में बसे सिमडेगा जिला के पर्यटन सह पिकनीक स्थलों से आपके लिए एक बेहतर पिकनिक डेस्टीनेशन साबित होगा.
आज हम आपको सिमडेगा के खुबसुरत स्थल दानगद्दी से रूबरू कराएगें. ये जितनी खुबसुरत है यहां का इतिहास उतना हीं रोमांचक है. ये एक बेहतर रोमांचक पिकनीक डेस्टीनेशन के रूप में चुना जा सकता है. सिमडेगा जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर बोलबा केरसई मुख्य मार्ग से एक किलोमीटर अंदर मनोरम वादियों के बीच दानगद्दी स्थित है. बड़े छोटे चट्टानों के बीच अठखेलियां करती पहाडों से उतरती शंख नदी की निर्मल जलधाराऐं दानगद्दी की सुंदरता में चार चाँद लगा देती है.
सिमडेगा के बोलबा में स्थित यह खुबसूरत पर्यटन स्थल दानगद्दी अपने अंदर कई घटनाओं और कुर्बानियों के राज दफन कर रखी है. जितनी खुबसुरत यह जगह है, उतनी हीं रोचक यहाँ का इतिहास है. आज आपको हम बताएगें हीरों के खजाना हीरादह से इसके दानगद्दी बनने का इतिहास. सिमडेगा जिला कालांतर में बीरु -7 केशलपूर राज्य था.
इस के शासक बीरुगढ के राजा हुआ करते थे. मुगल बादशाह जहांगीर ने साम्राज विस्तार के क्रम में छोटा नागपुर के महाराजा दुर्जनशाल को पराजित कर खलियार के किले में कैद कर लिया था. उन्हें कैद से छुड़ाने के लिए बीरु के राजा असली एवं नकली हीरा लेकर बादशाह जहांगीर के दरबार में पहुंचे. जहांगीर ने हीरो की पहचान के लिए लड़ने वाले भेड़ों के माथे पर हीरों को बंधवा दिए. असली हीरे सुरिक्षत रह गई और नकली हीरे टूट गए. जहांगीर की आत्मकथा तुजुक ए जहांगीर में इसका वर्णन किया गया है.
हीरों को महाराजा दुर्जनसाल ने हाथ में लेकर पहले ही परख लिया था. जहांगीर ने उसकी परख की सत्यता जांच रहे थे. दुर्जनशाल ने हीरों की परख से जहांगीर खुश होकर उन्हें कैद से छोड़ दिए. साथ में उत्तर भारत के अन्य राजा भी उनकी कैद से छुट गए. उन्हीं राजाओं ने छोटा नागपुर साम्राज के लिए नवरत्नगढ़ किला बनवाई. जो वर्तमान में गुमला जिला के सिसई के पास है. जिसके खंडहर अभी भी विद्यमान है. उसके बाद छोटा नागपुर एवं बीरुगढ के राजाओं से हीरों की मांग लगातार जारी रही. बादशाह जहांगीर ने छोटानागपुर महाराजा पर दबाव बनाया एवं महाराजा ने बीरु राजा पर दबाव बनाया.
अंततः हीरों के लिए दानगद्दी जो उस समय हीरादह के रूप में जाना जाता था, पर डैम बनवाया गया. डैम को देखने के लिए महाराजा भी आ रहे थे. शंख नदी का पानी रोक कर झोरा समाज के लोग दह के भीतर नीचे हीरा चुन रहे थे. किसी कारणवश उस वक्त बांध टूट गया और हीरा पहचानने और निकालने वाले सभी लोग वहां डुब गए. इतने लोगों की कुर्बानी के कारण यह स्थल दानगद्दी कहलाया. दह के उपर बांध बनाने का चिन्ह अभी भी मौजुद है. दानगद्दी है, दह है, हीरे भी है.
आज यह जगह अपनी खुबसूरती और कलकल नदी तीरे बसे शिवधाम के कारण बहुत प्रसिद्ध हो गया है. जिला प्रशासन भी यहाँ पर्यटन की संभावनाएं तलाशते हुए इसके विकास की दिशा में प्रयत्नशील है. नववर्ष की खुशियां बांटने यहां लोग काफी संख्या में पंहुचते हैं. इस बार भी एक जनवरी पर यहां खासी भीड़ होने के अनुमान लगाए जा रहे हैं. तो इस बार आप जब भी दानगद्दी जाइए तो एक बार यहां के इतिहास में झांकते हुए यहाँ का दिदार कीजिए. निश्चित रूप से खुबसुरती के साथ एक अनोखे ऐतिहासिक रोमांच का अनुभव होगा.
नव वर्ष पर इस स्थल को पिकनीक डेस्टीनेशन के रूप में आप चुन कर जाना चाह रहे तो आप सुबह सात बजे के बाद ऐसे समय पर जाएं कि शाम तीन बजे तक वहां से वापस लौट जाए. बोलबा का क्षेत्र फिलहाल जंगली हाथियों के विचरण के कारण शाम होते खतरा बढा देती है. हालाकि नव वर्ष पर एक जनवरी को वहां पुलिस बल तैनाथ रहेगी. दानगद्दी में नेटवर्क की भी समस्या रहती है. इन बातों का ध्यान रखते हुए आप अपना प्रोग्राम बनाएं.