प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: सोहराय व वंदना पर्व झारखंड की सभ्यता व संस्कृति का प्रतीक का पर्व हैं. यह पर्व देश के कृषि आर्थिकी की रीढ़ कृषक पालतू पशुओं व मानव किसानों के बीच का प्रेम स्थापित करता हैं. दीपावली पर्व वैसे तो पूरे भारत देश में धूमधाम व हर्षोउल्लास के साथ देश भर के विभिन्न राज्य में धूमधाम के साथ मनाया जाता है लेकिन झारखंड में दीपावली व सोहराय की एक अलग पहचान हैं. पूरे झारखंड में इस पूजा को कार्तिक अमावस्या को मनाए जानेवाला यह पर्व आदिवासी मूलवासियों का एक विशिष्ट पर्व है, क्योंकि झारखंड के ग्रामीण अधिकांश खेती बारी पर निर्भर हैं. इसलिए यह पर्व झारखंड में विधि-विधान पूर्वक के साथ मनाया जाता हैं.
दीपावली के अंतिम दिन घर के पालतू गाय, बैल व अन्य मवेशी व जानवरों की गोवर्धन पूजा लोगों के द्वारा बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता हैं. वैसे सोहराय पर्व झारखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक त्योहार हैं. यह पर्व दीपावली के एक दिन बाद मनाया गया हैं. सोहराय कला चित्र की कार्य प्रखंड के सुदूरवती इलाके में एक विशेष पहचान हैं. सुदूरवती गांव में आज भी शहरों की तुलना में विशेष चित्रकारी सोहराय कला, दिवार निपाई, पोताई की जाती हैं. दीपावली की अगले दिन सुबह उठकर किसानों ने अपने जानवरों को नदी, तालाब सहित अन्य जल स्रोतों में जाकर नहलाते का काम करते हैं. उसके बाद किसानों ने अपने घर लाकर उसे महिलाओं द्वारा विधिवत श्रृंगार, पैर पूजन व रंगो से गाय, बैल को रंगने व पांच प्रकार का खाना (पखेवा) बनाकर खिलाया जाता हैं. जानवरों के सिंग में श्रृंगार लगाते हैं. उसके बाद गले में फूल की हार एवं उनके शरीर में विभिन्न प्रकार का चित्रकारी, रंग बिरंगी रंगोली बना कर गौशाला में जानवरों को प्रवेश करने के लिए उनके विभिन्न शरीर में तेल लगाकर खाने के लिए विभिन्न प्रकार की अनाज जिसे पखेवा कहा जाता है, उसे खाने के लिए दिया जाता हैं. उसके बाद दिन भर किसान सोहराई की संस्कृति गीत गाकर ढोल, नगाड़े व पटाखे के साथ बजाकर जानवरों को खूंटा में बांधकर नचवाया व खेलवाया जाता हैं. सोहराय कला में विभिन्न पंचायत व गांवो में बड़ी ही धूमधाम से मेला लगाकर कार्यक्रम आयोजन करते हैं. ज्ञात हो की सोहराय पर्व सुख समृद्धि की कामना पशुओं से करते हैं. गाय के माथे व सींगो में सिंदूर टीका लगाया जाता हैं. लाल रंग से पशुओं पर गोलाकार बनाते हैं. उसके बाद उनकी पूजा की जाती हैं. सात प्रकार से बने पकवान बनाकर पशुओं को खिलाया जाता हैं.
आज भी गांव देहात इलाके में सोहराय के दिन गाय चरवाहा या गोरखिया को भी नए नए कपड़ा, चावल व पैसा देकर उसे सम्मानित किया जाता हैं. इसके अलावा आदिवासी बहुल इलाके में ढोल-बाजा के साथ खूब झूमते गाते इस दिन अनाज पैसा व कई खादय समाग्री इकठ्ठा करने का काम रात भर करते हैं. तो वहीं कई इलाके में बैलों को खूंटा में बांधकर नचाने का काम किया जाता हैं. कई जगह में मेला का भी आयोजन किया जाता हैं. भारत के अधिकांश मूलनिवासी खेती-बारी पर निर्भर करता हैं. खेती जाताबारी का काम बैल व भैंस के माध्यम से की जाती हैं. इसलिए सोहराय पर्व में पशुओं पूजा अर्चना विधि विधान के साथ किया जाता हैं. पूजा के दिन (गोंडा बोंगा)जानवरों को रखने वाला गोहाल में पूजा की जाती है, वही इष्ट देवता स्थल में मांझी हड़ाम के द्वारा स्नानकर जाहेरस्थान में मुर्गा बलि दी जाती हैं.