प्रतिवर्ष विश्व एड्स दिवस पूरे विश्व में 1 दिसम्बर को लोगों को एड्स के बारे में जागरुक करने के लिये मनाया जाता है. एड्स ह्यूमन इम्यूनो डेफिशियेंसी (एचआईवी) वायरस के संक्रमण के कारण होने वाला महामारी का रोग है. संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने साल 1995 में विश्व एड्स दिवस के लिए एक आधिकारिक घोषणा की थी. जिसके बाद से दुनिया भर में विश्व एड्स दिवस मनाया जाने लगा. एड्स एक ऐसी बीमारी है जिसमें इंसान की संक्रमण से लड़ने की शरीर की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है. इतने सालों बाद भी अबतक एड्स का कोई प्रभावी इलाज नहीं है.
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कोरोना काल में एड्स के मरीजों को उनके हाथ छोड़ दिया. कोरोना संक्रमण की वजह से एड्स रोगी जिला अस्पताल के एआरटी सेंटर पर नहीं पहुंचे. इससे यह हुआ कि दवा लेने वाले रोगियों की संख्या घट गई. 181 लोगों ने ही कोरोना काल में रजिस्ट्रेशन कराया हैं, जबकि पिछले साल इन दिनों का आंकड़ा 245 का था.
जिले में एड्स रोगियों को चिह्नित करने के लिए जिला अस्पताल में एआरटी सेंटर 2013 से स्थापित है. इसके अलावा देवबंद, सरसावा, नानौता, गंगोह, राजकीय मेडिकल कॉलेज, फतेहपुर में आईसीटीसी संचालित है. जहां पर एचआईवी की जांच की जाती है. इस दौरान काउंसिलिंग भी की जाती है. जिसमें लोगों को एड्स से बचाव के प्रति जागरुक किया जाता है.
जिले में कोरोना ने वैसे तो दो अप्रैल को दस्तक दी थी, लेकिन देशभर में कोरोना के फैलते संक्रमण को देखकर मार्च माह में लॉकडाउन लगा दिया. आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर अन्य स्कूल-कॉलेज, ट्रेन, बाजार बंद कर दिए गए. कोरोना काल में जिला अस्पताल में स्थापित एआरटी सेंटर प्रतिदिन खुला, लेकिन एचआईवी एड्स का इलाज कराने वाले मरीजों की संख्या न के बराबर रही. एआरटी सेंटर से मिली रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च से अब तक 181 ने रजिस्ट्रेशन कराकर इलाज शुरू कराया. इनमें 124 पुरुष, 48 महिला, पांच किशोर व चार किशोरी शामिल हैं. इन नौ महीने में एड्स से आठ पुरुष, एक महिला और किशोर की मौत हुई. यह आंकड़ा पिछले साल इन दिनों की तुलना में काफी कम है. कोरोना संक्रमण से एड्स रोगियों की संख्या में 30 फीसदी कम हुए हैं.