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रांची/डेस्कः- डमांड औऱ सप्लाई किसी भी व्यवसाय को बेहतर बनाने में अहम रोल निभाता है. चाहे किसी भी क्षेत्र से हो.गुजरात में राजकोट ज़िले के गौपालकरमेश भाई रूपारेलिया ने कि देश में प्रकृतिक उत्पाद व दूध के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ता नजर आ रहा है, इसी को देखते हुए उसने प्रकृतिक तरीके से डेयरी खोलने का विचार बनाया. और आज के डेट में इनके पास कुल 250 से ज्यादा गायें हैं. इन गायों के दूध से कई तरह के उत्पाद बनते हैं विदेशों में जिनकी काफी डिमांड होती है. इनका कारोबार आज 123 देशों में फैल चुका है. हर साल 6 करोड़ का टर्नओवर बताया जा रहा है. लग्न, औऱ मेहनत को सुनियोजित तरीके से किया गया तब जाकर ये सफलता मिल पाई है. इसके बाद इनका एक अलग ब्रांड बन गई है. रमेश मात्र 7वीं कक्षा पास है, एक समय इन्हे काफी गरीबी का सामना करना पड़ा था. रमेश भाई ने दूसरे के भी गायों को चराने का काम किया. किसी तरह उसने एक एकड़ जमीन खरीद कर उसमें खुद से खेती करना शुरु किया और गौ पालण की भी शुरुआत की. रमेश भाई ने गौ आधारित कृषि के सिद्धांत को अपनाया. उसने गिर और अन्य स्वदेशी गाय को पालना शुरु किया जो कम आहार मे अधिक दूध देती है. गिर गाय की विशेषता ये है कि ये उष्णकटिबंधिय बीमारी के प्रति प्रतिरोध होती है और इसका दूध उच्च गुणवत्ता की होती है.
250 गायों से सालाना 6 करोड़
आज रमेश के पास 250 से अधिक गायें हैं, चारा भी इन्हे वो पूरी तरह से प्रकृतिक खिलाते हैं. इनकी गौशाला को देखने के लिए देश विदेश से लोग आते हैं. इनके यहां के मक्खन, मिठाई, घी की बहुत डिमांड है. इनका एक विशेष प्रकार का घी 51 हजार रुपए प्रतिकिलो का बिकता है. विदेशों में इसकी काफी मांगे हैं. रमेश ने अपनी उत्पादों की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जरुरी प्रमाण पत्र व लाइसेंस प्रप्त करवाए. उत्पादों को सही ढंग से लेबलिंग व पैकेजिंग भी करवाए. सोशल मीडिया पर मार्केटिंग शुरु की. रमेश ने बताया कि गौ आधारित कृषि और आधुनिक तकनिक से 20 गुणा कमाई बढ़ गई है.
तकनीक से लैश रमेश
रमेश ज्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं है पर आधुनिक शिक्षा व तकनीक की समझ रखता है. शुरु शुरु में कंप्युटर सीखने में दिक्कत तो आई थी पर अब कंप्युटर चलाने में माहिर हो चुके हैं. आज इनके खुद के युट्यूब चैनल, वेबसाइट, व सोशल मीडिया है. रमेश की कहानी बताती है कि यदि आप किसी भी काम को लेकर दृढ़संकल्पित है तो आप किसी भी मुकाम को हासिल कर सकते हैं. रमेश का सफलता का मंत्र है कि प्रैक्टिस ऐसे करें जैसे आपने कभी जीता नहीं, और परफॉर्म ऐसे करें जैसे आपने कभी हारा नहीं. नवाचार व पारंपरिक ज्ञान के संयोजन से हम खुद के साथ साथ विश्व को भी बेहतर बना सकते हैं.