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यूपी बिहार तक फैल रहा सिमडेगा के कटहल का स्वाद, हर वर्ष 24 सौ टन कटहल पंहुचता है यूपी और बिहार

यूपी बिहार तक फैल रहा सिमडेगा के कटहल का स्वाद, हर वर्ष 24 सौ टन कटहल पंहुचता है यूपी और बिहार

आशीष शास्त्री/न्यूज़11 भारत


सिमडेगा/डेस्क: अपने वनोपज के लिए राज्य में विशेष स्थान रखने वाला सिमडेगा अपने कटहल के स्वाद के लिए भी बिहार यूपी तक मशहूर है. एक रिपोर्ट

 

सिमडेगा के कटहल का स्वाद बिहार तक पंहुचता है. सिमडेगा के कटहल की पटना में खास डिमांड होती है. अच्छी तरह पकने और स्वादिष्ट होने कारण इसकी मांग है. वैसे तो कटहल झारखंड के लगभग हर जिलों में पाया जाता है और खास कर झारखंड का दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल में कटहल बहुतायत पाया जाता है. सिमडेगा में लगभग हरेक किसान के पास चार से दस पेड कटहल के होते हैं. एक पेड़ से चार से सात क्विंटल कटहल उत्पादन होता है. सिमडेगा की कटहल का विशेष स्वाद के लिए अधिक डिमांड में रहती है. सिमडेगा की कटहल का सबसे बडा खासियत है कि यहां अन्य जगहों से पहले कटहल की फसल आती है. जिसके चलते यहां की कटहल हाथों हाथ बिक जाती है. सब्जी के बडे व्यवसायी भरत प्रसाद ने बताया कि सिमडेगा से हर दिन औसदन 20 टन कटहल बिहार और यूपी तक भेजे जाते हैं. किसान अपने कटहल की फल तोड कर सीधे व्यापारियों तक पंहुचा देते हैं. उत्पाद अधिक होने पर व्यवसायी सीधे किसान के पेड़ से ही फसल खरीद लेते हैं. इसके बाद व्यापारी अलग अलग बॉक्स में पैक कर बिहार और यूपी तक पंहुचाते हैं. सिमडेगा बाजार समिति से भरत प्रसाद हरेक दिन कटहल की पैकिंग करवा बिहार यूपी तक भेज रहे हैं. 

 

कटहल की फसल सिमडेगा में जल्दी होती है, तो किसानों का भी अच्छी आमदनी हो जाती है. सिमडेगा में कटहल दिसंबर माह से हीं निकलने लगती है. जो मार्च अप्रैल तक जारी रहती है. शुरूआती दिनों में यहां किसानों को 60-70 किलो तक कटहल के दाम मिल जाते हैं. अभी यहां 30-35 रूप प्रति किलो किसानों को मिल रहे हैं. कटहल की आमदनी से किसान में खुश हैं. व्यापारी भरत प्रसाद के पास कटहल बेचने किसान विपिन ने कहा यहां कटहल पहले निकलने से किसानों को सीधा लाभ मिल जाता है. उन्होंने कहा देर से फसल आएगी तो यही कटहल 10-15 रू किलो बेचना पड़ता लेकिन अन्य जगहों से पहले फसल निकलने से कटहल का दाम 70 रूप से शुरू हो अंतीम समय तक 20 रूपए किलो तक मिलती है.  उन्होने बताया कि अन्य जगहों पर कटहल मार्च के बाद निकलना शुरू होता है जबकि सिमडेगा में कटहल दिसंबर से शुरू होकर अप्रैल तक खत्म होता है. सिमडेगा की आबोहवा और प्रकृति का भरपुर साथ सिमडेगा में फलों को अन्य जगह से पहले उत्पादित करती है. यह यहां के किसानों के लिए वरदान बन जाती है. जो इनके आर्थिक सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

 

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