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झारखंड


धनबाद में तरबूज के तीन किस्म की हो रही खेती, लाल नहीं पीला तरबूज की बाजारों में है खूब डिमांड

धनबाद में तरबूज के तीन किस्म की हो रही खेती, लाल नहीं पीला तरबूज की बाजारों में है खूब डिमांड

न्यूज 11 भारत


रांची/डेस्क: धनबाद में सेहत के लिए गर्मियों में लोग तरबूज खाना बेहद पसंद करते हैं. गर्मी के साथ ही बजारों में लाल तरबूज हर चौक चौराहों पर उपलब्ध है, लेकिन हम पीले तरबूज की बात कर रहें हैं. पीले तरबूज की खेती धनबाद में की जा रही है. महज 70 से 90 दिनों में यह तैयार हो जाती है. तरबूज की तीन किस्मों की खेती की जा रही है. एक ऊपर से हरा और अंदर लाल दिखने वाली तरबूज, दूसरा ऊपर पिला और अंदर लाल वहीं, तीसरा आमतौर पर बाजारों मिलने वाली तरबूज की खेती जा रही हैं. बरवाअड्डा जीटी रोड से सटे आसनबनी में मनोज कुमार महतो तरबूज की तीनों किस्मों की खेती कर रहें हैं. 



वहीं, किसान मनोज महतो का कहना है कि हम पारंपरिक खेती शुरू से करते आ रहे हैं. लेकिन 2018 से आधुनिक खेती की शुरुआत की है. 5 एकड़ भूमि पर खेती का काम कर रहें हैं. तरबूज की तीन तरह की किस्में उगाई जा रही हैं. एक तरबूज बाहर से पिला और अंदर से लाल है. दूसरा बाहर से हरा और अंदर से पिला है. तीसरा सामान्य तरबूज है,जो बाहर से हरा और अंदर से लाल है. जो तरबूज अंदर से पिला है,उसे सिरोही कहा जाता है. जिस तरबूज का ऊपरी भाग पीला और अंदर में लाल है, उसे सिंजेंटा कहा जाता है. ऊपर से हरा और अंदर लाल तरबूज,यह भी सिंजेंटा ही है. बैंगलोर से बीज लाकर दिसंबर महीने में इसे खेतों में लगाया गया था. 70 से 90 दिनों में यह तरबूज के रूप में तैयार हो जाता है. 

 

उन्होंने यह भी बताया कि मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर रहने वाले तारा चंद बेल हमारे गुरु हैं. उनके द्वारा मुझे इसके खेती करने की ट्रेनिंग दी गई. उन्होंने बताया कि पहली बार देखने पर लोग इसे समझ नहीं पाते हैं. लेकिन इसे खाने के बाद इसका स्वाद लोग काफी पसंद कर रहें हैं. बाजार में इसकी मांग बढ़ रही है. जो इसे एक बार ले जाता है, फिर से दोबारा लेने के लिए आते हैं. अभी तक पांच टन बाजार में बिक्री कर चुके हैं. खेतों में और 5 टन तरबूज होने के अनुमान हैं. उसकी भी मांग आ रही है. कृषि विभाग के पदाधिकारी भी खेती में मदद की है. 

 


 

 

परिवार में भाई अनिल महतो सपन महतो व अन्य सदस्यों का भरपूर सहयोग खेती में मिला है. सरकार से थोड़ा और सहयोग की जरूरत उन्होंने बताई है. उन्होंने कहा कि पानी के यहां संसाधन की जरूरत है. पानी के संसाधन की थोड़ी कमी है. ताकि गांव के अन्य युवाओं को खेती के लिए प्रोत्साहित कर सके।लागत ज्यादा आने के कारण लोग खेती से भागते हैं. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में इसकी खेती होती है. उन्होंने बताया कि झारखंड में पहली बार इसकी खेती हम कर रहें हैं.



वहीं, डॉक्टर इशिता भट्टाचार्य ने बताया कि सामान्य तरबूज की तरह ही यह भी तरबूज हैं. सामान्य तरबूज की तरह ही इसमें भी न्यूट्रीशन पाए जाते हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि लाल की अपेक्षा पीले तरबूज के शुगर की मात्रा थोड़ा अधिक है. इसके स्वाद थोड़ा शहद की तरह होता है. पिला तरबूज विटाकिरिटीन के कारण पिला होता है. जबकि लाल तरबूज में लाइकोटिन होता है. ये दोनों पाइटो कैमिकल हैं. प्लांट को कलर देने का काम पाइटो केमिकल्स का है. टमाटर भी लाइकोटिन के कारण ही लाल दिखता है।जैसे हरी घास या हरि पत्तियां क्लोरोफिल के कारण हरी होती है. सामान्य तरबूज भी 90 से 100 दिन में तैयार होते हैं.

 

 

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